स्थाई कृषि (Sustainable Agriculture) तक पहुँचने के लिए क्यों आसान नहीं है भारत की राह?

साल 2021 में कॉप 26 की समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लक्ष्य रखा. लक्ष्य ये कि 2070 तक भारत नेट जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा. नेट जीरो उत्सर्जन का मतलब है कि कोई देश जितना कार्बन उत्सर्जन करता है, उतना ही कार्बन खत्म करने की व्यवस्था भी करे. अब इसके दायरे में औद्योगिक क्षेत्रों के साथ साथ कृषि क्षेत्र भी आता है. अंतर्राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्रियों की 32वीं प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने यही बात कही. उन्होंने कहा कि जीरो एमिशन के लक्ष्य को हम पारंपरिक खेती के बजाय सस्टेनेबल फ़ार्मिंग (स्थाई कृषि) के जरिए पाया जा सकता है. लेकिन सस्टेनेबल फ़ार्मिंग (स्थाई कृषि) की ये राह भारत में इतनी आसान है क्या?

क्या है स्थाई कृषि? (Sustainable Agriculture)


दुनिया भर में कृषि क्षेत्र अब एक ऐसे मुकाम पर पहुँच चुका है जहां बढ़िया फसल उत्पादन के साथ साथ इस पर बात होने लगी है कि वो कौन से तरीके हैं जो पर्यावरण के लिए भी मुफीद हैं. सस्टेनेबल फ़ार्मिंग (स्थाई कृषि) इसी तरीके का नाम है. साधारण भाषा में कहें तो खेती का वो तरीका जो वर्तमान की सारी मांगों को पूरा करते हुए ये भी सुनिश्चित करे कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सब कुछ अच्छा रखें. यानी, पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए की जाने वाली खेती जो उत्पादन भी बढ़ाए.

स्थाई कृषि (Sustainable Agriculture) के लक्ष्य

  1. जैविक खेती (Organic Farming)

जब भी Sustainable Agriculture की बात होगी सबसे पहले जैविक खेती का ही जिक्र आएगा क्योंकि पर्यावरण के लिए सबसे सुरक्षित खेती का तरीका यही है.

खेती का ये तरीका सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल को खत्म करता है जिससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बनी रहती है. जैविक खेती न केवल पर्यावरण की दृशीति से कृषि उत्पादन का अच्छा तरीका है, बल्कि फसलों से जुड़े प्रदूषण और स्वास्थ्य जोखिमों को भी कम करने में भी मददगार है.

2. फसल चक्र (Crop Rotation):

बहुत सारे मौकों पर वैज्ञानिकों और किसानों ने खुद ये माना है कि कम होती मिट्टी की उत्पादकता और लगातार पौधों में बढ़ रहे रोगों के बीच फसलों को नियमित अंतराल पर बदलना किसानों के लिए एक बढ़िया विकल्प हो सकता है. ये ना सिर्फ किसानों की रासायनिक उत्पादों पर निर्भरता घटाएगी बल्कि ये मिट्टी की उत्पादकता बनाए रखने में भी मदद करेगी.

  • 3. शून्य जुताई (Zero Tillage) :

बिना जुताई वाली खेती धीरे-धीरे ही सही, खेती का एक ऐसा तरीका बनती जा रही है जो मिट्टी के लिए फायदेमंद है. ये तरीका मिट्टी की उर्वरकता को भी बढ़ाता है.

इस तरीके से बीज को सीधे मिट्टी में उपकरणों की मदद से बोया जाता है. ये विधि मिट्टी के कटाव को काफी हद तक कम करती है और मिट्टी की पानी स्टोर करने की क्षमता में सुधार करती है.

लेकिन चुनौतियाँ भी हैं

  1. जलवायु में परिवर्तन:

भारतीय कृषि ज्यादातर बारिश पर ही निर्भर है और वह जलवायु में हो रहे परिवर्तन से बहुत प्रभावित हो रही है. सूखे और बाढ़ की घटनाएं बढ़ रही हैं जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित कृषि क्षेत्र ही है.  ऐसे में कृषि कैसे स्थाई बनने की ओर बढ़ेगी, ये सवाल बहुत पेचीदा होता जा रहा है.

2. बढ़ती जनसंख्या:

बढ़ती जनसंख्या मतलब ज्यादा डिमांड. ज्यादा डिमांड का मतलब ज्यादा सप्लाई. पहले से ही ऑर्गैनिक फ़ार्मिंग करने वाले किसानों की ये चिंता रही है कि जैविक खेती पैदावार कम दे रही है. अब भारत की बढ़ती आबादी के लिए फसलों की सप्लाई क्या जैविक खेती के जरिए हो सकेगी? ये एक बड़ी चुनौती है.

3. ज्यादा पूंजी की जरूरत

स्थिरता महंगी कीमत पर आती है. स्थाई कृषि (Sustainable Agriculture) के साथ भी यही है. पारंपरिक खेती के मुकाबले यहाँ अब भी ज्यादा उपकरण, ज्यादा लागत जरूरी है. छोटे किसानों के पास इसके लिए जरूरी लागत का ना होना, स्थाई कृषि (Sustainable Agriculture) अब तक किसानों की एक बड़ी आबादी के लिए दूर की कौड़ी बनी हुई है.

4.  जानकारी की कमी 
नई तकनीकों और तरीकों को अपनाने का सीधा संबंध इससे है कि किसान उस बारे में जानता है या नहीं ? इसे सरकारें, एनजीओज अपने अभियानों से बढ़ाने की कोशिश तो कर रहे हैं लेकिन अभी भी बड़े संख्या में किसान इस जागरूकता से दूर हैं.

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