जलवायु परिवर्तन कैसे दरका रहा है किसानों की उम्मीद, कृषि मंत्री के ऐलान से क्या बदलेगा?

जैसे जैसे वक्त बीत रहा है दुनिया भर में क्लाइमेट चेंज से जुड़ी समस्याओं के लिए उठने वाली आवाज़ें और स्पष्ट हो रही हैं. कुछ दशक पहले तक ये केवल अन्तराष्ट्रीय मंचों पर सुनाई देता था लेकिन अब जब इंसानों को क्लाइमेट चेंज ने डायरेक्ट सताना शुरू किया है, अलग अलग वर्ग के लोगों ने बात करनी शुरू कर दी है. सरकारी दफ्तरों के गलियारों से लेकर संसद तक. देर(?) से ही सही, सरकारों की ये चिंता दुरुस्त है. सोमवार को देश की संसद में कृषि मंत्री कृषि क्षेत्र में समस्याओं को लेकर अपनी सरकार का पक्ष रख रहे थे. इसी दौरान उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार जलवायु के अनुकूल फसलों की 1500 नई किस्में तैयार करेगी.

क्यों ज़रूरी है जलवायु अनुकूल फसलें?

बदलते जलवायु की रफ्तार ने पूरी दुनिया को परेशान किया हुआ है. पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञ कई मौकों पर कह चुके हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही दक्षिण एशिया में खाद्यान्न और नकदी फसलों की पैदावार में कमी आने की आशंका है. इससे जाहिर है कि इस इलाके में फूड सिक्योरिटी प्रभावित होगी. 1.4 बिलियन लोगों का घर भारत, ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 116 देशों में से 101वें स्थान पर है. और ये आंकड़ा बहुत बड़ी शांसत है. अब समझिए कि स्थिति ऐसी है कि साइंटिस्ट्स और रिसरचर्स का अनुमान है कि देश भर के तापमान में अगर 2.5 से 4.9 डिग्री सेल्सियस भी बढ़ा तो गेहूं की उपज में 41%-52% और चावल में 32%-40% की कमी आ सकती है.

अंतर्राष्ट्रीय मक्का एवं गेहूं सुधार केंद्र (सीआईएमएमवाईटी) में एशिया के प्रतिनिधि अरुण जोशी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण जहां तापमान में वृद्धि हो रही है, वहीं मौसमी वर्षा में कमी आ रही है और भयंकर बारिश में वृद्धि. वे कहते हैं कि “इससे मक्का जैसी फसलों पर भी असर पड़ेगा, जो तापमान और नमी के प्रति संवेदनशील होती हैं।” अरुण जोशी ने कहा कि 2030 तक वैश्विक मक्का की पैदावार में 24% तक की गिरावट आने की उम्मीद है और इसका एक मात्र कारण होगा जलवायु परिवर्तन. ऐसा ही अनुमान गन्ना और चावल जैसी फसलों की पैदावार के बारे में भी है. अभी भारत विश्व में गन्ना उत्पादन के सबसे बड़े देशों में से एक है और भारत में गन्ने के खेती से लगभग 50 लाख किसान जुड़े हुए हैं. ऐसे में खेती ज्यों ही प्रभावित होगी, इसका असर इन किसानों की जिंदगी पर पड़ेगा.

इसलिए भी ज़रूरी है इस दिशा में बढ़ के सोचने की क्योंकि जो किसान सारी दुनिया का पेट भर रहे हैं, उनके इस पेशे पर क्लाइमेट चेंज की तेज़ आंच डरावनी है. केंद्र सरकार की ये पहल सकारात्मक तो है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि क्लाइमेट चेंज के खतरों से निपटने के लिए ऐसी पहलों की गति तेज करनी होगी.


इस उम्मीद के साथ जैसा कभी हरित क्रांति के जनक और वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने कहा था

“यह सच है कि भारत में कृषि उत्पादकता अब भी कम है. हम वियतनाम जैसे देशों से पीछे हैं। हालांकि, यह आशावादी होने का एक कारण भी है, क्योंकि अगर हम अपनी उत्पादकता में सुधार कर आत्मनिर्भर बन सकते हैं तो फूड सिक्योरिटी (खाद्य सुरक्षा) जैसी समस्याओं को भी ठीक किया जा सकता है. हम कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से भी लड़ सकते हैं यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि देश में कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे।”

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