कृषि विभाग के मुताबिक़ अक्टूबर-नवंबर के महीने में केले की फसल में अक्सर पीला सिगाटोका रोग, काला सिगाटोका और पनामा विल्ट रोग का प्रभाव देखा जाता है। यह फफूंद जनित रोग है, जिसकी पहचान और प्रबंधन करना किसानों के लिए बहुत जरूरी होता है। इनके एक बार लग जाने से किसान की पूरी फसल बरबाद हो सकती है।
केला एक ऐसा फल है जो शायद ही किसी को ना पसंद हो, और जिन्हें बहुत ज़्यादा पसंद है उनके लिये ये अच्छी बात है कि ये फल सभी मौसम में पूरे साल मिलता है। बाजार में ये बहुत महंगा भी नहीं मिलता और 50-70 रुपए दर्जन को बहुत सस्ता भी नहीं कहेंगे। बहुत महंगा ना होने से इसको हर वर्ग के लोग खाने में समर्थ हैं। इसीलिए इसकी खेती में किसानों को खूब मुनाफ़ा होता है।
लेकिन अक्टूबर-नवंबर के महीने में केले की फसल में रोग लगने का भी खतरा बढ़ जाता है। इस महीने में केले की फसल में पीला सिगाटोका रोग, काला सिगाटोका और पनामा विल्ट रोग का प्रभाव देखा जा रहा है। जो फफूंद जनित रोग है, जिसकी पहचान और प्रबंधन करना किसानों के लिए बहुत जरूरी है वरना पूरी फसल चौपट हो सकती है। इन रोगों के लगने से किसानों को कई बार नुकसान का सामना करना पड़ता है, इन्हीं समस्याओं के निजात के लिए बिहार कृषि विभाग ने केले में लगने वाले रोग से बचाव के उपाय बताए हैं। इस उपाय को अपनाकर किसान केले की फसल को बर्बाद होने से बचा सकते हैं।
रोग के लक्षण
पीला सिगाटोका- इस रोग के कारण केले के नए पत्ते के ऊपरी भाग पर हल्का पीला दाग या धारीदार लाईन के रूप में दिखता है। बाद में ये धब्बे बड़े और भूरे रंग के हो जाते हैं, जिनका केंद्र हल्का कत्थई रंग का होता है। इस रोग के लगने से फलों के उत्पादन पर असर पड़ता है।
काला सिगाटोका- इस रोग के कारण केले के पत्तियों के निचले भाग पर काला धब्बा, धारीदार लाईन के रूप में होता है। ये बारिश के दिनों में अधिक तापमान होने के कारण फैलता है और इनके प्रभाव से केले पकने से पहले ही पक जाते हैं, जिसके कारण किसानों को उचित लाभ नहीं मिल पाता है।
पनामा विल्ट- अचानक पूरे पौधे का सूखना या नीचे के हिस्से की पत्ती का सूखना इस रोग का प्रमुख लक्षण है। इस रोग के लगने पर पत्तियां पीली होकर रंगहीन हो जाती हैं, जो बाद में मुरझा कर सूख जाती हैं।उसके बाद तने सड़ जाते हैं और अंदर से सड़ी मछली की दुर्गंध आती है।
बचाव के उपाय
1. कृषि विभाग की सलाह है कि सिगाटोका और पनामा विल्ट रोग से बचाव के लिए प्रतिरोधी किस्म के पौधे लगाएं। साथ ही खेत को खरपतवार से मुक्त रखें। खेत से अधिक पानी की निकासी कर लें और 1 किलो ट्राईकोडर्मा विरिडे को 25 किलो गोबर खाद के साथ प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में मिला दें।
2. काला सिगाटोका रोग से बचाव के लिए रासायनिक फफूंदनाशक कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
3. पनामा रोग से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम डब्लू.पी. 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल बनाकर छिड़काव करें। केले की पत्तियां चिकनी होती हैं। ऐसे में घोल में स्टीकर मिला देना लाभदायक होता है।अधिक जानकारी के लिए किसान कॉल सेंटर के टोल फ्री नंबर 18001801551 पर या अपने जिले के सहायक निदेशक, पौधा संरक्षण से सम्पर्क कर सकते हैं।
आंध्र प्रदेश केले का सबसे बड़ा उत्पादक
भारत में आंध्र प्रदेश केले का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। यहां की मुख्य फसल केला है। इसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश हैं। ये पांच राज्यों ने वित्तीय वर्ष 2022-2023 में भारत के केला उत्पादन में सामूहिक रूप से लगभग 67 प्रतिशत का योगदान दिया।
लेकिन केले का सबसे बड़ा वैश्विक उत्पादक होने के बावजूद, भारत बड़ी मात्रा में विश्व को केले निर्यात नहीं करता। APEDA के मुताबिक़ वैश्विक बाजार में भारत का निर्यात हिस्सा केवल एक प्रतिशत है, जबकि विश्व के केला उत्पादन (35.36 मिलियन मीट्रिक टन) में देश की हिस्सेदारी 26.45 प्रतिशत है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में, भारत ने 176 मिलियन अमरीकी डॉलर केले का निर्यात किया, जो 0.36 मिलियन मीट्रिक टन के बराबर है।
25,000 से अधिक किसानों को होगा फायदा
अगले पांच वर्षों में भारत से केले का निर्यात में एक बिलियन अमरीकी डॉलर का लक्ष्य हासिल करने की उम्मीद है। यह उपलब्धि किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित करेगी और 25,000 से अधिक किसानों की आजीविका में सुधार करेगी। इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े 50,000 से अधिक एग्रीगेटर्स के लिए रोजगार सृजन का अनुमान है।
इन देशों में होता है एक्सपोर्ट
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, APEDA ताजे फलों और सब्जियों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। भारतीय केले के प्रमुख एक्सपोर्ट्स में ईरान, इराक, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, उज्बेकिस्तान, सऊदी अरब, नेपाल, कतर, कुवैत, बहरीन, अफगानिस्तान और मालदीव शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, अमेरिका, रूस, जापान, जर्मनी, चीन, नीदरलैंड, ब्रिटेन और फ्रांस भारत को प्रचुर निर्यात के अवसर देते हैं।
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