भारत सूरजमुखी तेल का एक बड़ा हिस्सा उक्रेन और रूस से आयात करता है, जिससे आने वाले समय में इसकी खेती में संभावनाए दिख रही हैं।
सोलापुर, महाराष्ट्रः सूरजमुखी जिसे अंग्रेजी में सन सनफ्लावर और मराठी में सूर्य फूल भी कहते हैं। भारत में उगाई जाने वाली 7 प्रमुख तिलहनी फसलों में सूरजमुखी भी शामिल हैं। सूरजमुखी की खास बात ये भी हैं कि इसे साल में तीन बार उगाया जा सकता हैँ। सूरजमुखी उन फसलों में शामिल है, सरकार जिनका न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है, साल 2023 के लिए सूरजमुखी बीज की एमएसपी 6400 रुपए प्रति कुंटल है।
सूरजमुखी की खेती में आने वाले समय में संभावनाएं दिख रही हैं। जो किसानों का मुनाफा बढ़ा सकता है। उऩके लिए कमाई वाली फसल बन सकती है। हम और आप जो रिफाइंड खाते हैं, उसमें सोयाबीन और सूरजमुखी के बीज अहम हैं, लेकिन सूरजमुखी का 80-90 फीसदी कच्चा माल विदेश से आता है। और ये सबसे ज्यादा यूक्रेन से आता है। रुस-यूक्रेन युद्ध के बाद बिगड़े हालातों में देशी किसानों के लिए एक मौका है कि वो सूरजमुखी की खेती न सिर्फ अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं बल्कि आत्मनिर्भर भारत में अपना योगदान दे सकते हैं।
सूरजमुखी का नाम सूरजमुखी इसलिए पड़ा क्योंकि यह सूर्य की ओर झुका कहता है, दिन में इसका मुंह हमेशा सूरज की ओर होता है। हालांकि सनफ्लावर को भले ही सूर्य फूल कहा जाता है लेकिन वैज्ञानिक इसे फूल नहीं मानते।
इन राज्यों में होती है खेती
सूरजमुखी वैसे तो अमेरिकी मूल की फसल है लेकिन भारत के कई राज्यों में इसकी बड़े पैमाने पर खेती होती है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, बिहार, हरियाणा, पंजाब में हजारों हेक्टेयर में इसकी खेती होती है। जबकि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के भी कुछ इलाकों में इसकी खेती होती है, जो आगे तेजी से बढ़ सकती है।
सूरजमुखी की फसल किसी भी तरह की मिट्टी में हो सकती है लेकिन रेतीली दोमट मिट्टी और काली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक सूरजमुखी अम्लीय या क्षारीय दोनों तरह की मिट्टी में पैदा की जा सकती है, लेकिन मिट्टी का पीएच- 6.5 से 8.0 के बीच होना चाहिए।
सूरजमुखी की बुवाई
सूरजमुखी को देश के अलग-अलग राज्यों में जलवायु के अनुकूल तीनों सीजन, रबी, खरीफ और जायद में बोया जा सकता है। सूरजमुखी की उन्नत किस्में- बीएसएस-1, केबीएसएस-2, ज्वालामुखी, मॉडर्न, एमएसएफएच-19 और सूर्या प्रमुख हैं। 90-115 दिनों की ये फसल 2-4 सिंचाई में तैयार होती है। बारिश होने पर उसकी भी जररुत नहीं होती है। एक एकड़ खेत की बुवाई के लिए 2 से 3 किलो बीज की जरुरत होती है। लाइन से बुवाई करने से पैदावार अच्छी होती है और खरपतवार निकालने में भी आसानी होती है। किसानों को कोशिश करनी चाहिए कि पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर और लाइन से लाइन की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें। बीजों की बुवाई से पहले बीज का शोधन जरुर करना चाहिए।
सूरजमुखी में लागत और मुनाफा
सूरजमुखी की खेती को कम खर्च वाली खेती माना जाता है। महाराष्ट्र समेत कई राज्यों के किसानों के मुताबिक बीज, निराई, कीटनाशक, उर्वरक खर्च से लेकर थ्रेसिंग तक सामान्य परिरिस्थियों में इसमें 10 हजार से 11 हजार रुपए प्रति एकड़ का खर्च आता है जबकि 7 कुंटल प्रति एकड़ से लेकर 10 कुंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन मिल जाता है। ऐसे में प्रति एकड़ 40 से 60 हजार रुपए मिलते हैं।
सूरजमुखी के जोखिम
सूरजमुखी की पूरी दुनिया में करीब 70 प्रजातियां प्रचलित हैं, भारत में पीले वाली प्रजाति ही लोकप्रिय है। इसके पौधे एक मीटर से ज्यादा ऊंचे होते हैं। डंठल नाजुक होते हैं, तेज हवा या आंधी से नुकसान हो सकता है। सूरजमुखी का एक-एक फूल 30 सेंटीमीटर तक चौड़ा हो सकता है। इन पीले रंग के फूलों पर इल्ली का हमला हो सकता है। टुबैको कैटेपिलर इनमें प्रमुख है। वहीं रोग की बात करें तो रतुआ, डाउनी, मिल्यूज, हेट राट, राइजोपस हेड राट जैसी समस्याएं आती हैं। पत्तियों में झुसला रोग भी लग सकता है लेकिन सही समय पर रासायनिक या बॉयो कीटनाशक का छिड़काव कर आसानी से फसलों को बचाया जा सकता है। सूरजमुखी की फसल को परिगलन बीमारी जिसे नेक्रोसिस बोलते हैं, ने भी भारी नुकसान पहुंचाया है। कई राज्यों में इसकी कम खेती के पीछे एक वजह ये भी रही है। वहीं यूपी जैसे राज्यों में छुट्टा और जंगली पशु सूरजमुखी के लिए नुकसान दायक साबित हुए हैं। सूरजमुखी को सबसे ज्यादा नुकसान तोते पहुंचाते हैं क्योंकि दाने जब पकने लगते हैं तो ये बहुत हमला करते हैं।
सेहत के लिए फायदेमंद
सूरजमुखी के तेल को स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है। जानकारों के मुताबिक इसका सेवन ह्दय को स्वस्थ रखता है और शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जो कैंसर जैसे रोगों से लड़ने में भी मददगार होती है। तेल चाहे सरसों का हो या सोयाबीन का या फिर सूरजमुखी का किसी स्वस्थ व्यक्ति को सेहतमंद रहने के लिए पूरे साल में सिर्फ 7 किलो तेल चाहिए। इससे ज्यादा का सेवन नुकसानदायक हो सकता है।
अब सवाल ये है कि अगर सूरजमुखी की खेती और तेल में इतना ही फायदा है तो देश में इसकी खेती में सोयाबीन की तरह रकबा क्यों नहीं बढ़ा। इसका जवाब, किसान, आंकड़े और विशेषज्ञ देते हैं। देश में पिछले तीन दशक के दौरान सूरजमुखी की खेती में बहुत तेजी से गिरावट हुई है। 1992-93 में देश में 26.68 लाख हेक्टेयर में सूरजमुखी की खेती होती थी, जो 2021-22 में घटकर 2.53 लाख हेक्टेयर रह गई है। किसान इसके लिए अच्छी किस्मों के बीज की कमी, एमएसपी पर फसल का न बिकना मुख्य कारण बताते हैं।
तिलहन क्षेत्र के विशेषज्ञ डॉ. मुक्ति सधन बसु इसके लिए सरकारी नीतियों को जिम्मेदार बताते हैं। बसु के मुताबिक सरकार ने विदेशों से सस्ता तेल आयातकर किसानों का भारी नुकसान किया वर्ना टेक्नॉलजी मिशन ऑन ऑयल सीड के दौरान पूरा पंजाब एक समय पीला नजर आने लगा था। उनके मुताबिक सोयाबीन की तरह सूरजमुखी में बहुत संभावनाएं हैं, हम आयात की जगह निर्यात कर सकते हैं, किसानों को बड़ा फायदा पहुंचा सकते हैं, बशर्ते सरकार किसानों को सुविधाएं दें और नीतियां बदलें।
हालांकि इस बीच अच्छी खबर है सरकार ने तिलहन मिशन के तहत सूरजमुखी की खेती को बढ़ावा देने का फैसला किया, जिसके तहत किसानों को कई सुविधाए दी जानी है। साल 2022 में कई राज्यों के कृषि मंत्रियों और अधिकारियों के साथ केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री के साथ अहम बैठकें भी हुई थीँ। जिसमें ड्रिप इरीगेशन से सिंचाई और एमएसपी पर सूरजमुखी की ज्यादा खरीद शामिल है। इसकी खेती में तो है ही फायदा और इसके खेत भी इतने सुंदर होते हैं कि लोग दूर से खिंचे चले आते हैं। केरल समेत कई राज्यों में किसानों ने सन फ्लावर टूरिज्म शुरु किया है, जिसमें शहर के लोग सूरजमुखी के खेत में देखने आते हैं और किसान को आदमनी होती है। ऐसे में आने वाला समय किसानों के लिए फायदेमंद हो सकता है।