पत्रिका पब्लिक हेल्थ की एक रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में हर साल लगभग 11,000 किसान कीटनाशकों के सीधे चपेट में आने से अपनी जान गंवा देते हैं। इसी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि कृषि श्रमिक और छोटे किसान विशेष रूप से कीटनाशकों के जहर से प्रभावित हैं। रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, एशिया में करीब 25.6 करोड़, अफ्रीका में 11.6 करोड़ और लैटिन अमेरिका में करीब 1.23 करोड़ किसान इसकी चपेट में आते हैं। यूरोप में, यह आंकड़ा 16 लाख से भी कम है। लेकिन इससे बचने का उपाय क्या है?
भारत के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) या पूसा में कार्यरत युवा वैज्ञानिक दिलीप कुमार कुशवाह (42) ने एक ऐसा रोबोटिक मशीन बनाया है जो ग्रीनहाउस के अंदर उगाई जाने वाली फसलों पर छिड़काव करेगा। इस आविष्कार का उद्देश्य कृषि श्रमिकों को कीटनाशकों के हानिकारक प्रभावों से बचाना है।
दिलीप कुशवाह ने आदर्श कुमार (IARI के प्रमुख वैज्ञानिक) के मार्गदर्शन में और पीएचडी छात्र मुडे अर्जुन नाइक की मदद से मशीन विकसित करने में दो साल का समय लिया और IARI ने एक सप्ताह पहले ही इसका पेटेंट दाखिल किया है। हाल ही में ICAR स्थापना दिवस के दौरान प्रौद्योगिकी प्रदर्शनी में इस तकनीक के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इसे विकसित करने में लगभग ₹1 लाख खर्च किए गए हैं और कुछ कंपनियों ने इस तकनीक में रुचि दिखाई है।
मशीन में 40 जार, कीटनाशकों के प्रभाव से बचेंगे किसान
मशीन में 40 लीटर का जार है जिसमें कृषि रसायन और पानी को संग्रहीत किया जा सकता है और पौधों की ऊंचाई के आधार पर छिड़काव को नियंत्रित किया जाएगा क्योंकि मशीन में कुछ अंतराल पर सेंसर फिट किए गए हैं जो स्वचालित रूप से स्प्रे के नोजल को नियंत्रित करेंगे। कुशवाह ने बताया कि ग्रीनहाउस के बाहर बैठा ऑपरेटर स्क्रीन लगे रिमोट कंट्रोल के जरिए मशीन को संचालित कर सकता है।
ग्रीनहाउस और खुले मैदान के लिए टेलीरोबोटिक टारगेट-स्पेसिफिक सेलेक्टिव पेस्टीसाइड एप्लीकेटर नामक तकनीक बैटरी से चलने वाली मशीन है जो करीब 2 घंटे में एक एकड़ क्षेत्र को कवर कर सकती है और एक बार चार्ज होने के बाद यह 2 घंटे तक काम कर सकती है, हालांकि इसे बढ़ाया जा सकता है। कुशवाह ने बताया, “रोबोट में पारंपरिक बैटरी से चलने वाले नैपसेक स्प्रेयर की तुलना में कीटनाशक लगाने में 57 प्रतिशत लागत बचत होती है।”
“ग्रीनहाउस के अंदर छिड़के जाने वाले रसायनों के कई हानिकारक प्रभाव भी होते हैं क्योंकि वे हवा में वाष्पित नहीं हो सकते हैं, इसलिए व्यक्ति चाहे किसान हो या मजदूर, उसे उन जहरीले पदार्थों/अवशेषों को सांस के जरिए अंदर लेना होगा। इसलिए, इस तरह का नवाचार मजदूरों के लिए वरदान है और सरकारी नीति में कुछ बदलाव जैसे कि इसका उपयोग अनिवार्य बनाना और मजदूरों को रिमोट चलाने का हुनर सिखाना, काफी मददगार साबित होगा,” मृदा विज्ञान के विशेषज्ञ ए के सिंह बिजनेस लाइन को बताया।