“मैं पिछले 20 साल से कॉर्पोरेट सेक्टर में जॉब कर रहा था। मेरा 30 लाख रुपये का पैकेज था। सब कुछ सही भी चल रहा था लेकिन सुकून नहीं मिलता था, जो मुझे अब मिल रहा है। अब मैं अपने गांव में रहकर ही अपनी कॉर्पोरेट सैलरी से अधिक कमा रहा हूँ ” ये कहना है मोहित सिंह का।
सुकून, यानी मेंटल हेल्थ, भारत में काफी अंडर रेटेड मुद्दा है, जो ऐसा होना नहीं चाहिए। कोई भी काम करने या एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए जितना जरूरी फिजिकल हेल्थ है उतना ही मेंटल हेल्थ भी है।
मोहित सिंह कहते हैं उन्हें अपनी नौकरी में अच्छा पैसा तो मिल रहा था लेकिन सुकून नहीं था, संतुष्टि नहीं थी, जो अब उन्हें खेती से मिल रहा है।

उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के रहने वाले कुंवर मोहित सिंह पिछले 20 साल से कॉर्पोरेट नौकरी कर रहे थे। अब वो अपने पैतृक गांव में खेती कर रहे हैं। उनके पास 30 एकड़ का एक फार्म है जिसमें उन्होंने तरबूज और केला लगाया है।

मोहित खेती को समाज के प्रति एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी मानते हैं। वो कहते हैं कि हमें इस बात की संतुष्टि रहती है कि हम समाज की सेवा कर रहे हैं खेती के माध्यम से। उनके मुताबिक लोगों को कीटनाशक मुक्त अच्छा उत्पाद देना, जो डायरेक्ट लोगों के हेल्थ को प्रभावित करती है, ये किसी सेवा से कम नहीं है।

मोहित अपने खेत में कीटनाशक की जगह IPM तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। वो बताते हैं कि इसके दो फायदे हैं एक तो लागत कम होती है दूसरी उत्पाद जल्दी खराब नहीं होते।

AC के इस्तेमाल पर उनकी क्या राय है?
कॉर्पोरेट नौकरी की किन चीजों को वो खेती में लागू करते हैं?
कॉर्पोरेट जॉब करने के बाद खेती में क्या क्या कठिनाइयाँ आती हैं?
सब सुनिए मोहित से –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।