असम के आदिवासी किसान सरबेस्वर बसुमतारी को 2024 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 3 रुपये दिहाड़ी मजदूर से लेकर देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार जीतने तक, असम के 62 वर्षीय आदिवासी किसान सरबेस्वर बसुमतारी की प्रसिद्धि की यात्रा कई कठिनाइयों से भरी है।
कल्पना कीजिए एक ऐसा बचपन, जो रोमांच से भरा था। जंगल ही खेल का मैदान था। जहां खेती दूर का सपना थी, और जिंदगी गुजारने के लिए सिर्फ जंगल से मिलने वाले संसाधनों पर निर्भर रहना पडता था। वहां से निकले एक शख्स ने ना सिर्फ खेती में बड़ा बदलाव करके दिखाया, बल्कि दूसरों को भी एक राह दिखाई कि मंजिल की तरफ बढ़ो तो सही रास्ते बनते जाएंगे। ये कहानी है असम के चिरांग जिले के दूरदराज इलाक़े में रहने वाले सरबेस्वर बसुमतारी की। आज 62 साल की उम्र में वो केवल ज़िंदगी के संघर्षों से बाहर निकलने वाले व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि खेती में क्रांति लाने वाले एक प्रेरणास्रोत हैं, खेती में उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें साल 2024 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया है।

पद्म श्री किसान का परिवार
सरबेस्वर बासुमतारी कुल 8 भाई-बहन थे। उनका बचपन चिरांग जिले के पानबाड़ी गांव में बेहद मुश्किल हालातों में बीता। उनके माता-पिता मज़दूरी कर के किसी तरह बच्चों का पालन-पोषण करते थे। खुद सरबेस्वर को कभी 3 रुपये दिहाड़ी पर मजदूरी करनी पड़ी। मेघालय के कोयले की खदानों में उन्होंने कई साल काम किया। जंगली आलू का खाकर अपना पेट भरना पड़ा। उनके पास पास खेती के लिए ज़मीन तक नहीं थी।

जंगल को खेत में बदलने की शुरुआत
5वीं तक पढ़े सरबेस्वर बासुमतारी की खेती में आने की कहानी भी काफी अलग है। 1980 के दशक की बात है। असम के बोडोलैंड क्षेत्र में तनाव बढ़ने के बीच, लोगों ने जंगल की ज़मीन को खेती के लिए अपना बनाना शुरू किया। सरबेस्वर ने भी 12 एकड़ ज़मीन पट्टे पर लेकर उसे खेती लायक बनाया। कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं था, लेकिन सीखने की इच्छा ज़बरदस्त थी। इसी इच्छा शक्ति की बदौलत उन्हें खेती में कामयाबी मिलती गई। 1994-95 में उन्होंने खेती के लिए खुद की ज़मीन खरीदी। यहीं से उनकी खेती का सफर बेहतर होता चला गया।
“1989 में अपसू का जो आंदोलन हुआ था। उसी वक्त हमारे घर के पास जो फॉरेस्ट था उसका लकड़ी काटना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे हुआ क्या कि जंगल कटने की वजह से जानवर लोग अंदर चले गए। उसी वक्त से खेती हम लोगों ने थोड़ी थोड़ी शुरू कर दी। हमने ने 1994-95 में अकेले खेती शुरू कर दी।“

खेती के इस सफर में असम के प्रगतिशील किसान को कृषि विभाग का बहुत साथ मिला। अधिकारियों से किसान ने खेती में नवाचार को समझा और उसे अपना कर कामयाबी की सीढ़ियों पर एक बार जो चढ़ना शुरू किया।
“खेती में ज्यादा पैदावार कैसे लें इसके लिए मैं एग्रीकल्चर डिपार्टेमेंट गया। वहां के ऑफिसर ने हमें अच्छी तरह से समझाया कि ऐसे ऐसे करने से अच्छा मुनाफा होता है। उन लोगों ने जो जानकारी दी है मैं वैसे ही खेती करने लगा।“

सरबेश्वर बासुमतारी ने पूरी दुनिया को ये बता दिया है कि, खेती सिर्फ खेत नहीं, किस्मत भी बदल सकती है। 62 साल की उम्र में भी वो खेती उतनी ही शिद्दत से मेहनत से करते हैं, जितना 30 साल की उम्र में करते थे। वो खेती में टेक्नोलॉजी के महत्व को बखूबी समझते हैं। उनका मानना है कि, किसानी को अगर फायदेमंद बनाना है तो, तकनीक से हाथ मिलाना होगा।
“ड्रिप से सिंचाई करेंगे तो पौधा अच्छी तरह से बढ़ेगा। हमने जैन इरीगेशन का सिस्टम लगवा रखा है। 2004 में ड्रिप इरीगेशन से हम लोगों ने केले की खेती में कामयाबी हासिल की। फिर हम लोगों ने अनानास का प्रोजेक्ट लिया था। इसमें भी ड्रिप इरीगेशन सिस्टम लगाया। यहां भी अच्छा रिजल्ट मिला। 2019 में मैंने इसमें आम लगाया। वहां पर भी मैंने ड्रिप इरीगेशन को लगाया था। ड्रिप इरीगेशन जो जैन का होता है, मैं उसे बहुत अच्छी तरह से इस्तेमाल करता था। जैन का ड्रिप एक बार लगा दो सैकड़ों साल चलता रहता है।“

न्यूज़ पोटली से बातचीत में वो कहते हैं, कई तरह की खेती करो, अगर एक में नुकसान हुआ तो दूसरे में फायदा हो सकता है। Integrating Farming में बहुत अच्छा फायदा है। ज्यादा मुनाफे के लिए वो हॉर्टीकल्चर और नर्सरी पर जोर देते हैं।
“Integrating Farming में बहुत अच्छा फायदा है। ज्यादा मुनाफे के लिए हॉर्टीकल्चर करो। नर्सरी करो। अगर तकनीक को अपनाएं तो आगे बढ़ने का बहुत मौका मिलेगा। सरकार भी नई-नई टेक्नोलॉजी को बताती रहती है। नई-नई टेक्नोलॉजी को अपनाकर आगे बढ़ते रहो।“

खेती की दुनिया में अलग मुकाम हासिल कर चुके सरबेस्वर बासुमतारी जितना जोर DRIP IRIGATION पर देते हैं, उतना ही INTER CROPPING पर भी देते हैं। वो सुपारी के खेत में उसी की नर्सरी तैयार करते हैं। इसी खेत में रेशम कीट के पत्ते के साथ ही काली मिर्च का पौधा लगा रखा है। उनका मानन है कि, खेती तभी मुनाफे का सौदा है, जब आप सहफसली खेती करें।
“10 बीघा में हमारे पास सुपारी लगा है। सुपारी के साथ हम लोगों ने काली मिर्च भी लगाया हुआ था। सुपारी के साथ मैं चार क्रॉप तो उसमें लगाता ही हूं। 4 सीजन में जब हम क्रॉप लेंगे तो हमारी आमदनी ज्यादा होगी। अगर हम सिर्फ सुपारी की खेती करेंगे तो साल में सिर्फ 50-60 हजार रुपये ही मिलेंगे, जबकि 4 क्रॉप अगर मिलेंगे तो 5-2.5 लाख रुपये तक हो जाएगा हमारा। इस तरह की खेती से खाद और लेबर कॉस्टिंग भी कम हो जाती है”

असम में सुअर पालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। चिरांग के किसान सरबेस्वर बासुमतारी भी मछली पालन के साथ ही सुअर पालन करते हैं। वो बताते हैं इससे आमदनी डबल हो जाती है। वो कहते हैं, इस तरह से एक बीघा तालाब में हम 4-5 लाख रुपये कमाएंगे।

सरबेस्वर मानते हैं कि, कृषि में शिक्षा का बड़ा योगदान है। उनका कहना है कि, आज के युवा बहुत सक्रिय और इनोवेटिव हैं। वो चाहते हैं कि पढ़े-लिखे लोग कृषि में आएं और वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल करें। इससे भारत में खेती की दुनिया बदल जाएगी।
असम के पद्म श्री किसान की पूरी कहानी आप न्यूज़ पोटली के यूट्यूब चैनल पर भी देख सकते हैं।