देशभर के 18 राज्यों के किसान यूनियन नेताओं और किसानों के समूह ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों पर राष्ट्रीय नीति बनाने के लिए व्यापक विचार-विमर्श की मांग की है। संगठनों ने जीएम फसलों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया और कहा कि राष्ट्रीय नीति बनाते समय हम यह भी सुनिश्चित करेंगे कि राज्य सरकारें जनहित के खिलाफ फैसला ना लें। बैठक के दौरान किसान संगठनों ने एक सुर में कहा कि 22 वर्षों से किसान देश में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों के प्रवेश को रोक रहे हैं। वे भविष्य में भी इसका पुरजोर विरोध करते रहेंगे। ऐसी फसल किस्में किसानों के लिए असुरक्षित और अवांछित हैं।
चंडीगढ़ में 22 अगस्त को 18 राज्यों के 90 किसान नेता आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों, व्यापार, कृषि विविधता, मानव और पशु स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों पर हुए एक राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए एकत्र हुए। बैठक के बारे में मध्य प्रदेश के किसान नेता केदार सिरोही ने बताया कि सम्मेलन के बाद सभी नेताओं ने जीएम फसलों पर राष्ट्रीय नीति बनाने की मांग और इस पर विचार विमार्श करने के लिए एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर उसे केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव भेज दिया गया है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सरकार से जीएम फसलों पर एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को आदेश दिया था कि वह सभी हितधारकों और किसानों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए सार्वजनिक परामर्श के माध्यम से 4 महीने के भीतर जीएम फसलों पर एक राष्ट्रीय नीति विकसित करें।
“देखिए बीटी कपास की फसल कैसे विफल हो गई है। वास्तव में कीटों के हमले आम बात हो जाने के कारण कीटनाशकों का उपयोग कई गुना बढ़ गया है। इतना अधिक कि इसने कपास की खेती को आर्थिक रूप से अव्यवहारिक बना दिया है।” गुजरात के किसान नेता कपिल शाह ने कहा। उन्होंने आगे बताया कि जीएम फसलों के अंतर्गत 91 प्रतिशत क्षेत्र अमेरिका, ब्राजील, अर्जेंटीना, कनाडा और भारत में है (यहां केवल बीटी वर्जिन की अनुमति है)। अन्य चार देश जीएम सोयाबीन, कैनोला और मक्का का उपयोग करते हैं।
किसान नेता राकेश टिकैत ने बीटी कपास की विफलता के बारे में भी बात की और कहा, “घरेलू जानवर भी बीटी कपास के खेतों में जाने से बचते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें बहुत अधिक रसायन हैं। इसका हमारे जैविक चक्र पर समग्र प्रभाव पड़ता है।”
कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने कहा कि देश भर के किसान नेता इस बात पर एकमत हैं कि यहां जीएम फसलों की अनुमति नहीं दी जाएगी और बड़ी बात तो यह है कि किसान इस पर एक मत हैं। उन्होंने बताया, “जीएम फसलें पर्यावरण, किसानों और मनुष्यों की आजीविका और पशुओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। मुझे आश्चर्य हो रहा कि पंजाब ने बीटी कॉटन से हुई तबाही से अभी तक सबक क्यों नहीं लिया है। इस साल कपास का रकबा कम हो गया है और फिर भी राज्य सरकार बीटी-III कपास के बीज की मांग कर रही है।”
“अकेले पंजाब में इस वर्ष कपास के अंतर्गत क्षेत्रफल में 46 प्रतिशत की गिरावट आई है जो गुलाबी इल्ली तथा अन्य कीटों को नियंत्रित करने में बीटी कपास की विफलता का प्रमाण है।” वे आगे कहते हैं।
किसान नेता कविता कुरुगंती ने कहा कि मौजूदा सरकार को जीएम फसलों पर राष्ट्रीय नीति को अंतिम रूप देने से पहले किसान और इसके जानकारों से बात करनी चाहिए। “वास्तव में हमें जीएम फसलों पर नीति की नहीं, बल्कि जैव सुरक्षा नीति की आवश्यकता है। 2009 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सबसे चर्चा करने के बाद बीटी बैंगन की फसल की खेती पर रोक लगा दी थी।”