किन्नू. एक सिट्स्र वर्गीय फल.. इसमें किन्नू के साथ स्वीट ओरेंज, माल्टा और डेजी आदि किस्में आती हैं। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में बड़े इलाके में इसकी खेती होती है। तकनीक से तरक्की सीरीज में इस बार कम लागत वाली इसी किन्नू की खेती की पूरी जानकारी
सिरसा (हरियाणा)। माथे पर पसीना, आंखों में चमक.. चेहरे पर मुस्कान. हरियाणा की महिला किसान चंद्रकला के चेहरे पर किन्नू की खेती की वहज से है। नरमा-कपास और बाजरा जैसी पारंपरिक फसलों में घाटे और पानी की कमी से परेशान किसानों को किन्नू, माल्टा और स्वीट आरेंज यानि मोसंबी जैसी फसलों के रुप में ऐसा विकल्प मिला है, जिसने इस रेतीली जमीन में खुशियां बिखेर दी हैं।
दिल्ली से करीब 260 किलोमीटर दूर सिरसा वैसे हरियाणा का एक जिला है लेकिन इसके हालात राजस्थान जैसे हैं। चंद्रकला सिरसा के पन्नीवाला मोटा के पास साहूवाला गांव मे रहती हैं। जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर बसे इस गांव में भी पानी लगभग पाताल में जा चुका है। सिंचाई का जरिया महीने में कुछ दिन आने वाली सिर्फ नहर है। ऐसे में ड्रिप इरिगेशन से बूंद-बूंद सिंचाई की अनिवार्य शर्त है। चंद्रकला के परिवार में अब किन्नू की खेती और उसकी नर्सरी ही मुख्य व्यवसाय है। जिसमें उनका साथ देते हैं देवर विकास डूडी।
विकास डूडी न्यूज पोटली को बताते हैं, “हमारे पास करीब 15 किल्ला (एकड़) जमीन है, जिसमें पहले कपास, बाजरा, ग्वार की खेती करते थे पूरे साल मेहनत के बावजूद 5-7 लाख रुपए मिलते थे, जबसे किन्नू की खेती और नर्सरी शुरु किया, साल में 50-60 लाख रुपए आसानी से मिल जाते हैं। इसमें एक बार की लागत लगती है फिर 30-35 साल तक मुनाफा मिलता है।”
दुनिया का सबसे बडा किन्नू, नींबू और मौसंबी उत्पादक देश है भारत
किन्नू माल्टा, स्वीटर आरेंज यानि मोसम्बी,नींबू ये सब सिट्रस वर्गीय फलों में गिने जाते हैं। लेकिन सेहत से भरपूर होने के चलते इनकी दुनिया में बहुत डिमांड है। भारत दुनिया के टॉप थ्री सिट्स उत्पादक देशों में एक है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के मुताबिक देश में करीब 11 मिलियन हेक्टेयर में सिट्स की खेती होती है, और 14.54 मिलियन टन उत्पादन मिलता है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, आंध्र प्रदेश से लेकर हिमाचल और उत्तराखंड में इसकी बड़े पैमाने पर खेती होती है। किन्नू पंजाब का राज्य फल भी है। बागवानी को बढ़ावा देने के लिए हरियाणा सरकार ड्रिप, डिग्गी, पौधे से लेकर रखरखाव तक सब्सिडी भी देती है।
ड्रिप इरिगेशन के बिना खेती नहीं
सिरसा हरियाणा के सूखे इलाकों में आता है, यहां पर पानी की बहुत किल्लत है। कपास जैसे फसलें भी बिना पानी के सूख जाती हैं। हरियाणा सरकार बागवानी को बढ़ावा देने के लिए ड्रिप इरिगेशन, सोलर पंप और खेत तालाब बनाने के लेकर पौधे खरीदने के लिए भी सब्सिडी देती है। विकास डूडी कहते हैं, हमारे यहां पानी की इतनी कमी है कि बिना ड्रिप खेती संभव नहीं, दूसरी बात किन्नू के पौधों में खुली सिंचाई से तना गलन समेत कई रोग भी लगते हैं, जबकि ड्रिप सिंचाई में ऐसा नहीं होता है। हमने जैन इरिगेशन की ड्रिप इसलिए लगवाई है क्योंकि उनकी क्वालिटी अच्छी है।
देखरेख कम, पोषक तत्वों से भरपूर
इन फलों की खेती पिछले कुछ वर्षों में इसलिए भी तेजी से बढ़ी हैं क्योंकि इनमें लागत और देखरेख बहुत कम है, जबकि मुनाफा दूसरी फसलों के मुकाबले कहीं ज्यादा।
विटामिन सी और कैल्शियम से भरपूर ये खट-मिट्ठा फल हड्डियां मजबूत बनाता है, इम्युनिटी बढ़ाता है और कोलेस्ट्राल कम के साथ वजन कम करने में मददगार है। सिट्रस वर्गीय फलो की मांग और खेती के बढ़ते दायरे को देखते हुए विकास और चंद्रकला अपने फार्म पर नर्सरी भी चलाते हैं।
सघन बागवानी में फायदा
किसान विकास के मुताबिक उन्होंने यहां 20 गुणा-20 फीट पर पौधे लगाए, जिससे एक एक एकड़ में 110 पौधे लगे हैं। विकास अपनी लागत और मुनाफे का पूरा ब्यौरा देते हैं। फलों की बागवानी करने वाले किसान अगर सही किस्मों का चुनाव करें तो इस मुनाफे को और बढ़ाया जा सकता है। विदेश से लाई गई जैन स्वीटर औरेंज मोसंबी की सघन बागवानी में कई किसान 13 गुणा 10 फीट पर बागवानी कर एकड़ में 333-335 पौधे लगाकर उत्पादन और मुनाफा बढ़ा रहे हैं।
रेतीली और चिकनी मिट्टी है बेहतर
अगर आप भी सिस्ट्स वर्गीय फलों की खेती करना चाहते हैं.. मिट्टी, जलवायु और अच्छी किस्मों को जानना बहुत जरुरी है। इन सिट्रस फलों के लिए रेतीली दोमट, चिकनी दोमट और गहरी चिकनी मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। ये फसल नमकीन और क्षारीय मिट्टी में अच्छे से ग्रोथ नहीं करती है। खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए.. क्योंकि ये वो फसल है, जिसमें जड़ गलन, तना गलन आदि बीमारियां बहुत लगती हैं, इसलिए किसान खुली सिंचाई की जगह ड्रिप तकनीक इस्तेमाल करते हैं।
खेती को घाटे का सौदा मान नौकरी के पीछे दौड़ते युवाओं के लिए भी विकास एक संदेश हैं कि हाथों की लकीरें कम मायने रखती हैं अगर उन हाथों से मेहनत करने का साहस हो।
तकनीकी से तरक्की सीरीज में हैं सफल किसानों की खास कहानियां
न्यूज पोटली की तकनीक से तरक्की सीरीज में ऐसे ही किसानों की कहानियां हैं जिंन्होंने खेती में कुछ नया किया है.जिन्होंने तकनीक का इस्तेमाल कर खेती को फायदे का बिजनेस बनाया है।
तकनीक से तरक्की सीरीज में भारत के अलग-अलग राज्यों के उन किसानों की कहानियां हैं, जो खेती में मुनाफा कमा रहे हैं, वो किसान जो तकनीक का इस्तेमाल करके खेती को बिजनेस बना चुके हैं। सीरीज से जुड़े वीडियो देखने के News Potli के YouTube चैनल पर जाएं।
संपर्क जैन इरिगेशन- jisl@jains.com मोबाइल- 9422776699 संपर्क न्यूज पोटली- NewsPotlioffice@gmail.com