पंजाब में खाने के लंगरों से हमने बहुतों का भला होते हुए सुना है और 2023 में ऐसा ही कुछ कर के वहाँ के किसानों ने अपने पौधों को भी बचाया है. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की एक स्टडी के मुताबिक, वहाँ के किसानों ने सामुदायिक खेती (Community Farming) जिसे वहाँ के किसान नर्सरी लँगर भी कहते हैं, की मदद से 2023 में पंजाब को 2,800 करोड़ रुपये का भारी नुकसान होने से बचा लिया है.
क्या है नर्सरी लंगर?
दरअसल 2023 में पंजाब- हरियाणा में आई बाढ़ ने किसानों की भयानक तौर पर क्षति की थी. इसी को देखते हुए पंजाब और हरियाणा के किसानों ने अन्य किसानों को (जिनके खेतों का बाढ़ ने भयंकर नुकसान किया था) रोपाई के लिए मुफ़्त नर्सरी (पनीरी) दी थी. रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा जरूर है कि भले ही किसानों को इसके लिए 245 करोड़ खर्च करने पड़े, फिर भी नर्सरी (पनीरी) के इस लंगर ने पंजाब को औसत चावल उत्पादन के टारगेट तक पहुँचने में मदद की.
रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 2023 की बाढ़ इतने बड़े पैमाने पर थी कि उत्पादन पर सीधा असर पड़ने का अनुमान था लेकिन किसानों ने उसे आसानी से पार पा लिया और साल 2022 में हुए औसत उत्पादन के बराबर 2023 में भी कर डाला.
साल 2023 की बाढ़
साल 2023 में मॉनसून शुरू होते ही पंजाब, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा इसका बड़े पैमाने पर शिकार बने. दरअसल, ये सब शुरू हुआ जुलाई 2023 से जब हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में बारिश शुरू होते ही बाढ़ का पानी पंजाब के मैदानी इलाकों में आ गया. पानी के तेज बहाव से नदियां उफान पर आईं और फिर बांधों में भी दरार पड़ी. नतीजतन पंजाब के खेतों में पानी भर गया.
रिपोर्ट में इस बात का जिक्र भी है कि जुलाई में इसी बारिश के कारण भाखड़ा (सतलज पर) और पोंग (ब्यास पर) जैसे बांधों के कई द्वार कई दिनों तक खुले रहे, जिससे जलाशयों में पानी का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ गया. इसके बाद तो उफनती सतलज और ब्यास नदियों ने अपने किनारे के सैकड़ों गाँव अपनी ज़द में ले लिए.
बाढ़ के कारण धान की 2.21 लाख हेक्टेयर जमीन पानी से भर गई थी. खरीफ सीजन के दौरान पंजाब के करीब 31.49 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती होती है, इसका मतलब ये कि पंजाब में धान की खेती का तकरीबन 7 प्रतिशत इलाका जलमग्न हो चुका था.
नर्सरी (पनीरी) लंगर ने कैसे भरे पंजाब के गोदाम?
पंजाब में आई बाढ़ से वहां के किसान तबाह हो सकते थे. लेकिन फिर नर्सरी (पनीरी) लंगर नाम के इस उपक्रम ने बाढ़ से पीड़ित किसानों को बड़े नुकसान से बचाया. गुरु नानक देव के ‘लंगर’ की इस अवधारणा को किसानों ने खेती में भी आजमाया. पंजाब और हरियाणा के बाढ़ प्रभावित किसानों को सुरक्षित क्षेत्रों वाले किसानों ने धान के पौधों की मुफ़्त सप्लाई दी. किसानों के स्वयंसेवक समूहों को, उद्यमियों को धान के पौधो की नर्सरी लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया. और जिन समूहों ने भी नर्सरी लगाई, उनके फोन नंबर्स को सोशल मीडिया हैंडल्स और अखबारों के जरिए बाढ़ प्रभावित किसानों तक पहुंचाया गया ताकि पीड़ित किसान उनके बारे में जान सकें और उनसे धान के पौधे ले सकें. इसके अलावा PAU यानी पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी ने ज़िला प्रशासन के साथ मिल कर अलग- अलग जगह कैंप भी लगाए ताकि बाढ़ प्रभावित किसान खेती के बारे में जागरूक हो सकें. न्यूज पोटली की टीम साल 2023 की इस बाढ़ के दौरान जब ग्राउंड पर थी, तो उस दौरान कई किसानों ने बताया था कि जिनके पास नर्सरी थी और बेचने का काम करते थे, उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर लोगों को नर्सरी मुफ्त में दे दी.
इस पहल में PAU के साथ साथ कृषि विज्ञान केंद्र और क्षेत्रीय किसान केंद्र भी उन किसानों की मदद के लिए आगे आए जो छोटे किसानों को नर्सरी में उगाए धान के पौधे दे रहे थे. धान की रोपाई के लिए कम अवधि वाली चावल की किस्मों जैसे पीआर 126 और पूसा बासमती 1509 का प्रयोग किया गया.
लंगर की लागत
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार, किसानों को फिर से रोपाई के दौरान बड़ी लागत उठानी पड़ी. इसमें अतिरिक मजदूरी लागत भी थी जो 8750 प्रति हेक्टेयर थी और ट्रैक्टर में लगने वाले डीजल की लागत प्रति हेक्टेयर 2500 थी. खरपतवार के 1000 रुपए प्रति हेक्टेयर मिला कर पूरे राज्य में चले इस “नर्सरी लंगर” का खर्चा करीब 245 करोड़ आया. लेकिन ये रणनीति असरदार रही और किसानों ने वो पा लिया जो वो चाहते थे. इस पहल ने राज्य के कृषि क्षेत्र को तकरीबन 2800 करोड़ के नुकसान से बचाया और बाढ़ के बावजूद राज्य में चावल की औसत उपज में 260 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर यानी 4% की वृद्धि हुई.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कम्युनिटी फ़ार्मिंग या नर्सरी लंगर एक सफल प्रयोग है जो अन्य राज्यों में मुश्किल परिस्थितियों में अपनाया जाना चाहिए ताकि वो किसान जो प्रकृति के आगे बेबस और लाचार हो जाते हैं , उनके घर में अनाज के मर्तबान खाली ना रहें.