भिक्षावृत्ति के काम में शामिल 94 प्रतिशत भिखारी नहीं चाहते हैं भीख माँगना, चाहते हैं रोजगार : सर्वे रिपोर्ट 

लखनऊ नगर निगम के 8 प्रशासनिक ज़ोन में स्थित 101 जगहों पर 2411 भिक्षावृत्ति के कार्य में शामिल लोगों की पहचान हुई। सर्वे रिपोर्ट में कई चौकाने वाली बातें सामने आई हैं जैसे 70 प्रतिशत बच्चे जो 6 से 18 वर्ष की उम्र के हैं, वो पढ़ाई करना चाहते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 94 प्रतिशत लोगों ने कहा, ‘वो रोजगार से जुड़ना चाहते हैं’। वहीं 33 प्रतिशत लोगों के पास कोई पहचान पत्र नहीं है, जिससे वे सरकारी योजनाओं और सेवाओं से वंचित रह जाते हैं। जबकि 75 प्रतिशत लोगों का कोई बैंक खाता नहीं है, जिससे वे आर्थिक रूप से सुरक्षित नहीं हैं और बचत नहीं कर पाते। सर्वे में पता चला है कि भिक्षावृत्ति में शामिल लोगों में 80 प्रतिशत लोग पूरी तरह अशिक्षित हैं, जिससे रोजगार के अवसर और आत्मनिर्भरता की राह मुश्किल हो जाती है। वहीं 52 प्रतिशत लोग झुग्गियों में और 38 प्रतिशत फुटपाथ पर रात गुजारते हैं, यानी लगभग 90 प्रतिशत लोगों के पास सुरक्षित आवास नहीं है।

लखनऊ : बदलाव द्वारा आज लखनऊ में भिक्षावृत्ति में शामिल लोगों की स्थिति पर आधारित सर्वेक्षण के बाद तैयार की गई महत्वपूर्ण रिपोर्ट “उपेक्षा और समावेश 2024–25” का रिलीज किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि असीम अरूण, मंत्री समाज कल्याण विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार और दूसरे अतिथियों द्वारा दीप जलाकर उन लाभार्थियों की कहानियों से हुई जिन्होंने बदलाव संस्था के सहयोग से भिक्षावृत्ति से निकलकर आत्मनिर्भर जीवन की ओर कदम बढ़ाया। नरेंद्र, नरेश, माया, राहुल और कपिल जैसे उदाहरणों ने अपनी भावुक कहानियाँ साझा कीं.

माया ने बताया, “एक समय था मेरी रातें प्लेटफ़ॉर्म पर गुजरती थीं. ऐसे भी दिन देखें हैं जब झूठन उठाकर अपना और अपनी बेटी का पेट भरा है. बहुत मुश्किलें झेली. कुछ सालों से बदलाव के साथ जुड़ी मेरा जीवन बदल गया. मेरी बेटी अच्छे स्कूल में पढ़ती है. मुझे एक घर मिल गया है जहाँ मैं अच्छे से रह रही हूँ.” आज माया की बेटी अच्छे स्कूल में पढ़ रही है. माया पैरों से चल नहीं सकटी उन्होंने ट्राई साइकिल पर एक छोटी सी दुकान शुरू की है जिससे उनका रोजमर्रा का खर्चा चलता है. माया की तरह 549 भिक्षावृति में संलिप्त लोगों को बदलाव संस्था ने बीते 10 वर्षों में पुनर्वासित कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा चुका है. 

माया की तरह पुनर्वासित हुए नरेंद्र देव ने माननीय समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण का स्वागत  गमला देकर किया. नरेन्द्र देव मूलतः गाजीपुर के रहने वाले हैं. उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था. घरवालों ने इनसे दूरी बना ली, गाँव वालों ने भी ठिकाना नहीं दिया. इन्हें गाँव से बाहर कर दिया. ये ट्रेन में बैठकर लखनऊ आ गये. पेट भरने के लिए ये शनी मन्दिर में भीख
मांगकर खाने लगे. गंदे कपड़े, लम्बी दाढ़ी में इन्होने 6,7 साल गुजार दिए. बदलाव संस्था से जुड़ने के बाद इन्हें पुनर्वासित किया गया. ये अपनी ट्राई साईकिल पर एक छोटी सी दुकान चलाते हैं.

33 प्रतिशत लोगों के पास कोई पहचान पत्र नहीं
बदलाव संस्था ने लखनऊ में 10 साल पहले जब काम शुरू किया था तब भिक्षावृति में संलिप्त लोगों की स्तिथि जानने के लिए एक सर्वे किया था.10 साल बाद साल 2024-25 में सर्वे किया. इस सर्वे रिपोर्ट में निकलकर आया कि 33 प्रतिशत लोगों के पास कोई पहचान पत्र नहीं है. 52 प्रतिशत लोग झुग्गियों में रहते हैं. 48 प्रतिशत लोग नशे की लत से जूझ रहे हैं. जबकि 80 प्रतिशत  अशिक्षित हैं. रिपोर्ट में 49 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार कि वो आर्थिक संकट के कारण भिक्षावृत्ति में आए. वहीं 19 प्रतिशत लोग पारिवारिक विघटन के कारण इसमें आये. इनमें से 75 प्रतिशत के पास बैंक खाता ही नहीं है.

बदलाव की सर्वे रिपोर्ट बेहद जरूरी रिपोर्ट
मंत्री असीम अरुण (मंत्री, समाज कल्याण विभाग, उत्तर प्रदेश) ने कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई और बदलाव  संस्था के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने बदलाव के संस्थापकशरदपटेल को  इस पहल के लिए बधाई दी और भरोसा दिलाया कि इस मुद्दे पर आगे भी संवाद जारी रखेंगे. उन्होंने परिवार ID योजना को भिक्षावृत्ति की पहचान और सहायता प्रक्रिया को आसान बनाने में उपयोगी बताया.

अपने वक्तव्य में असीम अरुण ने कहा, “बदलाव की सर्वे रिपोर्ट बेहद जरूरी रिपोर्ट है. ये रिपोर्ट आगे चलकर मील का पत्थर साबित होगी. यह रिपोर्ट हमें  बताती है कि मौजूदा समय में भिक्षावृति की क्या स्तिथि है. यह रिपोर्ट सरकार के लिए भी लाभप्रद होगी और बदलाव जैसी संथाओं के लिए भी बहुत अच्छी होगी.”

स्माइल प्रोजेक्ट को समझना होगा और आगे बढ़ाना है
उन्होंने आगे कहा, “मोदी जी ने स्माइल नाम का प्रोजेक्ट दिया है. उस प्रोजेक्ट को समावेशी तरीके से समझना होगा और आगे बढ़ाना होगा.  आज का यह कार्यक्रम समाज कल्याण विभाग को और जागृत करने के लिए है. भिक्षावृत के लिए बनाये गए गृह  धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं. उन्हें पुनः जीवित करें और उसे आगे कैसे बढ़ाये. इसका फ्रेमवर्क हमारे पास है लेकिन कमजोर हो गया है. मैं इसे स्वीकारता हूँ. इसे सुधारने की जरुरत हैं. इसे ठीक करने के लिए हमें काम करना होगा.“ 

असीम अरुण ने कहा मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि प्रोजेक्ट SMILE से कुम्भ में हमें बहुत सफलताएँ मिली हैं. योगी सरकार ने फैमिली आईडी सॉफ्टवेयर बनाया है जिसमें यह भी पता चल सकता है कि किस परिवार को क्या लाभ मिला है. और यह भी पता चल जाएगा कि उसे क्या लाभ मिलने की जरूरत है. मैं चाहूंगा कि बदलाव के साथ मिलकर इस अभियान में काम किया जाए और हर परिवार की फैमिली आईडी बनाई जाए.”

अब तक 549 लोग भीख माँगना छोड़कर रोजगार से जुड़ चुके हैं
प्रो. मो0 तारिक(संस्थापक, द कोशिश ट्रस्ट) ने कहा “भिक्षावृत्ति की समस्या को केवल पुनर्वास से नहीं, बल्कि स्वीकार करने के नजरिए से भी देखना ज़रूरी है. यह रिपोर्ट समाज की सोच में बदलाव लाने का माध्यम बन सकती है.

बदलाव के संस्थापक शरद पटेल ने कहा, “इस सर्वे रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य यह अवगत कराना है कि सड़कों पर भीख मांग रहे लोग रोजगार से जुड़ना चाहते हैं. 94 प्रतिशत लोगों ने कहा अगर हमें रोजगार से जोड़ दिया जाए तो हम भीख माँगना छोड़ देंगे. बदलाव इनके पुनर्वास के लिए बीते वर्षों से काम कर रहा है. अब तक 549 लोग भीख माँगना छोड़कर रोजगार से जुड़ चुके हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “हमें भीख मांगने में संलिप्त लोगों के प्रति अपना नजरिया थोड़ा बदलना होगा. उनके प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा. यह समझना होगा कि भीख माँगना उनका सिर्फ पेशेवर काम नहीं है इसके अन्य कारण भी हो सकते हैं.” 

भिक्षावृत्ति कानूनों के मनोवैज्ञानिक असर पर भी हुई चर्चा
इसके बाद भिक्षावृत्ति कानूनों के मनोवैज्ञानिक असर पर भी चर्चा हुई. विशेषज्ञों ने बताया कि जब किसी को केवल भिक्षा मांगने के कारण गिरफ़्तार किया जाता है, तो उससे उसकी आत्मसम्मान और मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ता है. उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा सुविधाएँ मिलने के बावजूद कई लोग सही तरह से सीख नहीं पाते क्योंकि वे मानसिक रूप से पहले से ही बेहद असुरक्षित स्थिति में रहते हैं.

महिला प्रतिभागियों ने ध्यान दिलाया कि महिलाओं के लिए यह स्थिति और भी गंभीर होती है – उन्हें दिन में दो बार खाना भी नहीं मिल पाता, मासिक धर्म के समय कोई सुविधा नहीं होती और यौन हिंसा का भी डर बना रहता है.

97 प्रतिशत लोग उत्तर प्रदेश के 44 जिलों से हैं
बदलाव संस्था इन इस सर्वे को छह महीने में पूरा किया. यह सर्वे उत्तर प्रदेश भिक्षावृत्ति प्रतिषेध अधिनियम, 1975 की परिभाषा के आधार पर किया गया, जिसमें केवल उन्हीं व्यक्तियों को शामिल किया गया जिन्होंने स्वयं स्वीकार किया कि वे भीख मांगते हैं. इनमें उत्तर प्रदेश सहित कुल सात राज्यों, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, और ओडिशा, के मूल निवासी शामिल हैं. इनमें से 97 प्रतिशत लोग उत्तर प्रदेश के 44 जनपदों से संबंधित हैं, जिनमें लखनऊ के अलावा निकटवर्ती ज़िलों जैसे बाराबंकी, हरदोई, सीतापुर और उन्नाव के निवासी प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं.

इस प्रोग्राम में जे.राम (उपनिदेशक समाज कल्याण), के.एल. गुप्ता (उपनिदेशक समाज कल्याण), अंजनी सिंह (जिला समाज कल्याण अधिकारी-लखनऊ), प्रो. मो0 तारिक(संस्थापक, द कोशिश ट्रस्ट), प्रोफेसर विवेक कुमार सिंह (डीन-सोशल साइंस स्टडीज, प्रो0 राजेन्द्र सिंह रज्जू भैया, के. एल. गुप्ता (उप निदेशक, समाज कल्याण विभाग), आकांक्षा चंदेले (वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक), प्रो. तारिक मोहम्मद (अशोका फेलो और “कोशिश ट्रस्ट” के संस्थापक), डॉ. प्रशांत शुक्ला (मनोचिकित्सक) और गूँज संस्था से रवि गुप्ता, न्यूज  पोटली के संस्थापक अरविन्द शुक्ल, शकुंतला विश्व विद्यालय से डॉ अर्चना सिंह, अंजनी सिंह (जिला समाज कल्याण अधिकारी-लखनऊ), प्रोफेसर विवेक कुमार सिंह (डीन-सोशल साइंस स्टडीज, गैर सरकारी संगठन के प्रतिभागी, भिक्षावृति से पुनर्वासित हुए लोग, बदलाव की टीम आदि शामिल रहे.  यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय प्रयागराज द्वारा चौधरी चरण सिंह सभागार, सहकारिता भवन, हज़रतगंज, लखनऊ में किया गया.

सर्वे रिपोर्ट की मुख्य बातें
यह अध्ययन मुख्य रूप से भिक्षावृत्ति के स्थलों, भिक्षावृत्ति में संलग्न लोगों और उनकी वर्तमान स्थिति की मैपिंग के लिए किया गया था. 48 प्रतिशत लोग किसी न किसी प्रकार के नशे में लिप्त हैं जिनमें अधिकांश इसे छोड़ना चाहते हैं लेकिन मार्गदर्शन की कमी है. 49 लोग पैसों की कमी और नौकरी न होने की वजह से भीख मांगने लगे, जबकि 19 प्रतिशत लोग पारिवारिक झगड़े या विघटन के कारण इस हालात में पहुंचे. अधिकतर लोगों की रोज़ की आमदनी ₹100 से भी कम है, जिससे उनका जीवन स्तर बेहद निम्न बना रहता है.
सिर्फ 3 लोगों को ही SMILE योजना की जानकारी थी, जो कि भारत सरकार की पुनर्वास योजना है, यह बताता है कि सरकारी योजनाएँ ज़मीनी स्तर तक नहीं पहुँच पा रहीं. 41 प्रतिशत लोग भीख मांगते हुए शर्म महसूस करते हैं, और केवल 9 लोग ही इसे सम्मानजनक मानते हैं. 64 प्रतिशत मामलों में परिवार का कोई और सदस्य भी भीख मांगता है जो भिक्षावृत्ति को एक पारिवारिक चक्र बना देता है. 17 प्रतिशत लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं लेकिन 55 प्रतिशत लोग इलाज के लिए सिर्फ मेडिकल स्टोर पर ही निर्भर हैं, जिससे गंभीर बीमारियां अनदेखी रह जाती हैं. आजीविका और कौशल विकास की भारी कमी लोगों को बार-बार इसी स्थिति में बनाए रखती है.

संपर्क:
शरद पटेल
संस्थापक एवं कार्यकारी निदेशक
बदलाव संस्था
9506533722
www.badlavindia.org


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