किसी का जवान बेटा बाढ़ में बह गया… तो किसी बुजुर्ग को बाढ़ के सैलाब ने घर से निकलने का मौका ही नहीं दिया.. कोई पिता बच्चों के लिए खाने का इंतजाम करने गया था, लेकिन लौट नहीं पाया। पहाडों से निकली ब्रह्मपुत्र, बेकी, बराक जैसी नदियों में पानी की रफ्तार इतनी ज्यादा थी कि हजारों घर तिनके की तरह बह गए। असम में 35 में से 34 जिलों के करीब 90 लाख लोग प्रभावित हुए.. बाढ़ में 192 लोगों की जान गई। बाढ़… असम के लोगों के जीवन का हिस्सा है। लेकिन इस साल की बाढ़ को यहां के लोग जल प्रलय कहते हैं।
असम के लगभग हर जिले में बाढ़ की तबाही की ऐसी कहानियां लोगों के आंसुओं, सिसकियों, उदासी और उनकी हताशा भरी बातों में मिल जाएंगी। असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुताबिक साल 2022 की बाढ़ में 2 लाख घरों का नुकसान हुआ है। ढाई लाख हेक्टेयर फसलें और कई लाख मवेशी सैलाब में समा गए। करीब 1000 करोड की मछलियों का नुकसान हुआ। स्थानीय लोग कहते हैं, जलप्रलय और बाढ़ का ऐसा मंजर 1988 में भी नहीं था।
कुदरत के सताए असम में एक बडी आबादी उनकी है, जिनके पास न रहने को घर बचा… न खाने को अनाज। कुछ के पास उतने ही कपडे बचे थे, जितने उनके तन पर थे। हालात ऐसे हो गए थे कि कुछ इलाकों में लोग दो-दो दिन तक भूखे रहे। चारों तरफ पानी से घिरे होने के बावजूद पीने के पानी को तरसते रहे। लोगों की जिंदगी राहत कैंप और नाव तक सिमट कर रह गई थी। महीनों तक अंधेरे में नाव के सहारे राहत की रौशनी का इंतजार करते रहे।
असम की त्रासदी का वीडियो यहां देखिए
पूर्वोत्तर में भारत के प्रवेश द्वार असम की सीमाएं भूटान और बांग्लादेश से मिलती है। हिमालय की तराई में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से भरेपूरे असम के पडोसी राज्य अरुणाचंल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, नागालैंड, मेघालय त्रिपुरा, मिजोरम और मणिपुर हैं। दुनिया की सबसे प्रलयकारी नदियों में शामिल ब्रह्मपुत्र असम की सबसे बडी नदी है, ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक छोटी-बडी कुल 390 से ज्यादा नदियां असम को बाढ़ के मैदान में तब्दील करती हैं। ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों की घाटी में बसे असम में चाय, केला, सुपारी, मछली, नारियल और धान की खेती और बाढ यहां के लोक जीवन का हिस्सा हैं। धान की खेती और मछली पालन यहां मुख्य व्यवसाय हैं…बाढ़ में दोनों का ही भारी नुकसान हुआ।
5000 फीट की उंचाई से आने वाली ब्रह्मपुत्र असम का भाग्य भी है और अभिषाप भी… ब्रह्मपुत्र अपने तूफानी वेग के साथ भारी मात्रा में गाद या सिल्ट लेकर आती है,., जो उसके रास्ते में आने वाले हर चीज को नेस्तेनाबूत कर देती है। जिस बाढ का असम के लोग कभी इंतजार करते, वो उसके नाम से खौफ खाते हैं।
हमेशा से दक्षिण-पश्चिम मानसून में असम के निचले इलाकों में बाढ़ आती रही है। लेकिन 1950 के विनाशकारी भूकंप के बाद परिस्थितियां भयावह हो गईं। भागौलिक परिस्थियों के अलावा, जलवायु परिवर्तन भी असम में हर साल की तबाही की कारण है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों के विशेषज्ञ पैनल कहता रहा है कि धरती के तापमान वृद्धि के साथ विनाशकारी एक्सट्रीम वेदर की घटनाएं बढ़ेंगी। जलवायु परिवर्तन के मामले में भारत दुनिया के सबसे संकटग्रस्त देशों में है। क्योंकि भारत के उत्तर में स्थित संवेदशनील हिमालयी ग्लेशियर पिघलना शुरु हो गए हैँ। इसके साथ ही बारिश का बदला पैटर्न और अतिवृष्टि मानसून में समस्या को और बढा देते हैँ। स्थानीय लोग भी मानते हैं कि असम का मौसम बदल गया है।
भागौलिक परिस्थितियों और क्लाइमेंट चेंज के साथ कई और फैक्टर हर साल की इस मुसीबत और नुकसान के लिए जिम्मेदार हैं। असम में बडे तौर पर तटबंधों का निर्माण 1960 के बाद शुरु हुआ। ज्यादातर बांध रखरखाव में कमजोर हो गए हैं। हर साल कहीं न कहीं बांध टूटते हैं और करीब के गांव सैलाब का शिकार हो जाते हैं। इस बार भी उदाडगुडी और दरंग जिलों में भूटान से आने वाली नदियों ने तबाही मचाई।
असम की नब्ज समझने वालों के मुताबिक हर साल की त्रासदी के लिए डिफॉरेस्टेशन… यानि वनों की अँधाधुंघ कटाई, वैटलैंड पर अतिक्रमण ने भी लोगों को आपदा की तरफ धकेला है।
असम में भूमि का कटाव भी बडी समस्या है। ब्रहमपुत्र दुनिया में सबसे ज्यादा कटाव करने वाली पांच नदियों में शामिल है। ब्रहमपुत्र और उसकी सहायक नदियां में हर साल 8000 हेक्टेयर जमीन चली जाती है। विश्व के सबसे बडे नदी द्वीप माजुली वजूद संकट में है।
बक्शा जिले के संजीव भारती हो या क्षेत्री सिंह.. या फिर प्रभा भारती.. ये अपने जीवन में तीन बार अपने घर को कटते हुए देख चुके हैं। उनका न मूल गांव बचा और न जमीन। वर्षों के इंतजार के बाद इन्हें प्रधानमंत्री सरकारी आवास योजना के घर मिले थे लेकिन एक साल भी उसमें रह नहीं पाए।
राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के अनुसार, असम की लगभग 40 प्रतिशत भूमि बाढ़ की चपेट में है। मोटे तौर पर यह देश के कुल बाढ़ संभावित क्षेत्र का लगभग 10 प्रतिशत है।
असम सरकार की रिपोर्ट कहती है कि आजादी के बाद बाढ और कटाव में एक करोड 25 लाख से ज्यादा परिवारों ने अपने खेत, घर या फिर दोनों खोए हैं। बाढ की त्रासदी से बचने के लिए विशेषज्ञ नदियों से सिल्ट हटाने, जलस्त्रोत को अतिक्रमण मुक्त, उनके संरक्षण के साथ ही तटबंधों को मजबूत करने का सुझाव देते हैं।
जनसंख्या के भारी दवाब का सामना कर रहे असम की बडी आबादी टीन और बांस के छप्परों में रहने को मजबूर है। नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि असम में 32 फीसदी से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञों मानते हैं कि जिस तरह की बाढ का सामना असम जैसे इलाके कर रहे हैं उसके विशानकारी परिणाम और व्यापक होंगे। किसान अपनी फसल, जमीन और आजीविका का जरिया खो रहे हैं। गरीबी के चलते बच्चों की पढाई छूट रही है। पेट पालने के लिए युवा पलायन कर रहे हैं। हर साल की बाढ और क्लाइमेंट चेंज के चलते बढता जोखिम असम की गरीब आबादी को कई साल और पीछे ढकेल देगा..
क्या है मौसम बेमौसम
मौसम बेमौसम न्यूज पोटली की खास सीरीज है, जिसमें ग्रामीण भारत.. खासकर किसानों और खेती पर पडने वाले क्लाइमेंट चेंज के असर को सरल शब्दों और आम बोलचाल की भाषा में डॉक्यूमेंट करने की कोशिश की जा रही है। असम से पहले हमने महाराष्ट्र की आपदा दिखाई थी। आने वाले दिनों में देश के अन्य राज्यों से आप ऐसी रिपोर्ट देख सकेंगे।
मौसम बेमौसम- महाराष्ट्र पार्ट-1 यहां देखिए