World Pulses Day: क्या “दलहन आत्मनिर्भरता मिशन” से कम होगा दालों का आयात?

pulses

आज विश्व दलहन दिवस(World Pulses Day) है. दालें हमारे आहार में प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं. अपने आहार में नियमित रूप से दालों को शामिल करना चाहिए. देश के किसानों की मेहनत का नतीजा है कि भारत में दलहन का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है. लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत दालों के उत्पादन में, दाल खाने में और दूसरे देशों से दाल आयात करने में अव्वल है। देश ने वित्त वर्ष 2023-24 में 4.65 मिलियन मीट्रिक टन दालों का आयात किया (जो वर्ष 2022-23 में 2.53 मिलियन टन से अधिक है), जो वर्ष 2018-19 के बाद से सबसे अधिक है. और वर्ष 2023-24 में भारत ने 7.71 लाख टन तुअर यानी अरहर का आयात किया. तो अब सवाल ये है कि क्या केंद्र सरकार की “दलहन आत्मनिर्भरता मिशन” से देश में दालों का आयात कम या ख़त्म हो जाएगा?

केंद्र सरकार ने इस साल के बजट में दलहन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए “दलहन आत्मनिर्भरता मिशन” नामक छह साल की पहल के लिए 1,000 करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा भी की है। इस मिशन के तहत तुअर, उड़द और मसूर जैसी दालों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उन्नत बीज, अनुसंधान और आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने पर जोर दिया जाएगा.

भारत का दलहन आत्मनिर्भरता मिशन आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा. हालाँकि, दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए कृषि संबंधी चुनौतियों, नीतिगत अस्पष्टताओं और जलवायु संबंधी कमजोरियों पर ध्यान देना भी आवश्यक है. इस मिशन की सफलता प्रभावी कार्यान्वयन, तकनीकी प्रगति और किसान-केंद्रित नीतियों पर निर्भर करेगी.

ये भी पढ़ें -लखनऊ के राजभवन में प्रादेशिक फल, शाकभाजी एवं पुष्प लगी है प्रदर्शनी, आलू व्यापार को नई दिशा देने के लिए सम्मेलन आयोजित

दलहन आत्मनिर्भरता मिशन 
वित्त मंत्री ने वर्ष 2025-2026 के केंद्रीय बजट में छह वर्ष के लिए ‘दलहन आत्मनिर्भरता मिशन’ की शुरुआत की घोषणा की गई है. इसका उद्देश्य दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना, MSP आधारित खरीद तथा कटाई के बाद भंडारण समाधान देना और आयात पर निर्भरता कम करना है.

मिशन की विशेषताएँ
मिशन के तहत भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) तथा भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (NCCF) उन किसानों से दालें खरीदेंगे, जो पंजीकरण या समझौते करते हैं. इससे किसानों को उनके उपज का उचित मूल्य मिलेगा और बाजार मूल्य भी स्थिर रहेंगे. इसके तहत फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और भंडारण के बुनियादी ढाँचे में सुधार करने पर ध्यान दिया जाएगा. मिशन के तहत तुअर/अरहर, उड़द दाल  और मसूर की दाल पर ज़्यादा फोकस किया जाएगा.

ये भी पढ़ें –किसान के हाथों में राजनीतिक ताकत और आर्थिक योग्यता है; उसे किसी की मदद का मोहताज नहीं होना चाहिए- उपराष्ट्रपति

आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में चुनौतियाँ

इस योजना के तहत दलहन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में सरकार के अलावा किसानों के भी साथ कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं.
जैसे अरहर की खेती एक कम समय 150-180 दिन वाली फसल होने के बावजूद अभी भी देश में इसकी उपज 15-16 क्विंटल/हेक्टेयर बनी हुई है. आपको बता दें कि इसकी खेती मराठवाड़ा-विदर्भ (महाराष्ट्र) तथा उत्तरी कर्नाटक जैसे वर्षा आधारित क्षेत्रों तक ही सीमित है, जहाँ किसानों के पास वैकल्पिक फसल के कम विकल्प हैं. इसके अलावा सरकार की नीति अस्पष्टता भी एक चुनौती है. सरकार ने अरहर और अन्य दालों के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दी है, जिससे घरेलू उत्पादन पर बुरा असर होता है.

जलवायु भी एक कारण है दालें ज़्यादातर वर्षा आधारित क्षेत्रों में उगाई जाती हैं, जिससे वे सूखे और जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति संवेदनशील हो जाती हैं. अन्य फसलों से प्रतिस्पर्द्धा भी एक चुनती है. अधिक लाभ के कारण किसान दलहन की अपेक्षा गन्ना और अनाज जैसी अधिक जल खपत वाली फसलों को प्राथमिकता देते हैं.

ये देखें –

Pooja Rai

पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *