आप जानकर हैरान होंगे कि वित्त वर्ष 2024 में भारत का दाल आयात 84% बढ़कर छह साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया।आपको बता दें कि भारत विश्व में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक (वैश्विक उत्पादन का 25%), उपभोक्ता (विश्व खपत का 27%), तथा आयातक (दालों का 14%) है।
दाल, जिसे हम सब रोज अपने भोजन में शामिल करते हैं। यह प्रोटीन का एक मुख्य स्रोत है, जो हम सबके लिए बहुत जरूरी है। हम इसका इतना इस्तेमाल करते हैं कि विश्व में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक होने के बाद भी भारत को दूसरे देशों से दाल आयात करना पड़ता है। आयात को कम करने के लिए सरकार क्या कर रही है? आख़िर ऐसा क्यों है कि किसान इसकी खेती में बहुत दिलचस्पी नहीं लेते? दाल की खेती सिर्फ उपभोग के लिए नहीं बल्कि कई दूसरे मायनों में भी आवश्यक है, जानिए क्यों ?
देश में खाद्यान्न के अंतर्गत आने वाले कुल क्षेत्रफल में दालों का योगदान लगभग 20% है तथा कुल खाद्यान्न उत्पादन में इनका योगदान मात्र लगभग 7%-10% है। इसकी खेती किसान इसलिए नहीं करते क्योंकि सरकार इस फसल को खरीदने की गारंटी नहीं देती, जो अब दी है। सरकार दाल उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अरहर, मसूर और उड़द की दाल को सौ प्रतिशत खरीदने का वायदा किया है, जो पहले नहीं था। एक वजह इसकी खेती को लेकर जागरूकता का ना होना भी हो सकता है। एक बार अच्छा उत्पादन न होने पर किसान दोबारा ट्राई नहीं करते या इसकी वजह नहीं पता करते बस दूसरी फसल को अपना लेते हैं, जो उन्हें आसान लगता है। आपको बता दें कि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक देश के शीर्ष पांच दाल उत्पादक राज्य हैं।
मिट्टी को आवश्यक पोषक तत्व देती हैं दालें
यह हम सबको पता है कि स्वस्थ मिट्टी स्वस्थ और पौष्टिक खाद्य पदार्थ उगाने में योगदान देती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दालें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे पोषक तत्व देकर मिट्टी के स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाती हैं?
दालों को 60 प्रतिशत से अधिक नाइट्रोजन हवा से मिलता है। यह नाइट्रोजन फिर मिट्टी में मिल जाता है और इन फलियों को आस-पास की फसलों के साथ इस नाइट्रोजन को साझा करता है, जिससे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम हो जाती है।
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दालें जलवायु परिवर्तन को कम करने में करती हैं मदद
दाल सिर्फ़ हमारे शरीर के लिए ही नहीं बल्कि इसकी खेती मिट्टी के स्वास्थ के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।
दालें मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों को लाने की अपनी क्षमता के कारण रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता को कम करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकती हैं, जो जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारक हैं। वे जड़ों के विकास को भी बढ़ाते हैं, कार्बन अवशोषण को बढ़ावा देते हैं और जलवायु परिवर्तन को कम करने में योगदान देते हैं।
मिट्टी की संरचना को बढ़ाती हैं दालें
मिट्टी की संरचना वह तरीका है जिसमें अलग-अलग रेत, गाद और मिट्टी के कण इकट्ठे होते हैं। अगर मिट्टी भुरभुरी और छिद्रपूर्ण है और जड़ें अच्छी तरह फैली हुई हैं, तो मिट्टी की संरचना अच्छी होती है। हालाँकि, अगर मिट्टी सघन है (जिसे अलग करना मुश्किल है), तो मिट्टी की संरचना खराब हो सकती है। दालों की खेती से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है।
मिट्टी की जैव विविधता को बनाए रखने में मदद करती हैं दालें
मिट्टी हमारे ग्रह की 50 प्रतिशत जैव विविधता का घर है। आमतौर पर, स्वस्थ मिट्टी में केंचुए, नेमाटोड, 20-30 प्रजाति के घुन, 50-100 प्रजाति के कीड़े, सैकड़ों प्रजाति के कवक और हजारों प्रजाति के बैक्टीरिया और एक्टिनोमाइसेट्स होते हैं। यह मिट्टी की जैव विविधता है: विविध जीवित जीव एक दूसरे के साथ बातचीत करते हैं और पोषक चक्रण, मिट्टी कार्बन पृथक्करण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जैसी आवश्यक सेवाएं देते हैं।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।