उत्तराखंड के सेब अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कदम रख रहे हैं। देहरादून से दुबई के लिए 1.2 मीट्रिक टन गढ़वाली सेब (किंग रोट किस्म) की पहली ट्रायल खेप रवाना की गई। वाणिज्य सचिव सुनील बर्थवाल ने इसे हरी झंडी दिखाई। यह पहल किसानों की आय बढ़ाने और राज्य के कृषि निर्यात को नई दिशा देने की ओर एक अहम कदम माना जा रहा है।
यह ट्रायल खेप उत्तराखंड के लिए वैश्विक बाजार में प्रवेश का पहला कदम है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) और राज्य सरकार के सहयोग से भेजी गई यह खेप आने वाले वर्षों में कृषि निर्यात को नई ऊँचाइयों तक ले जाने का रास्ता खोल सकती है। इससे राज्य के सेब को विदेशों में पहचान मिलेगी और दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरोप जैसे बड़े बाजारों तक पहुँचने का मौका मिलेगा।
किसानों के लिए फायदे
गढ़वाली सेब का निर्यात होने से किसानों को सीधे तौर पर फायदा मिलेगा। उन्हें बेहतर दाम, स्थायी आय और नए खरीदार मिलेंगे। निर्यात के साथ-साथ किसानों को कोल्ड चेन प्रबंधन, फसल कटाई के बाद की प्रोसेसिंग और लॉजिस्टिक्स जैसी सुविधाओं का भी लाभ मिलेगा। इससे फसल लंबे समय तक सुरक्षित रहेगी और बर्बादी कम होगी।
सरकार और एपीडा की पहल
वाणिज्य सचिव बर्थवाल ने कहा कि भारत के कृषि निर्यात बास्केट को विविधता देने और क्षेत्र-विशिष्ट उत्पादों को वैश्विक उपभोक्ताओं तक पहुँचाना जरूरी है। इसी दिशा में गढ़वाली सेब को चुना गया है। एपीडा देहरादून में अपना क्षेत्रीय कार्यालय खोल रहा है ताकि किसानों को निर्यात से जुड़ी जानकारी और सहयोग आसानी से मिल सके। इसके साथ ही राज्य के खास उत्पादों के लिए जैविक प्रमाणन और जीआई टैगिंग को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
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अन्य उत्पाद भी होंगे निर्यात
गढ़वाली सेब के अलावा एपीडा की रणनीति में उत्तराखंड से मोटे अनाज, जैविक उत्पाद, दालें, कीवी, खट्टे फल, जड़ी-बूटियां और औषधीय पौधे को भी वैश्विक बाजार तक पहुँचाना शामिल है। हाल ही में एपीडा ने लुलु ग्रुप के साथ समझौता किया है, जिसके तहत उत्तराखंड के क्षेत्रीय उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय खुदरा श्रृंखलाओं में निर्यात करने की योजना है।इसके अलावा, देहरादून के सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स के सहयोग से पौड़ी जिले में 2,200 टिमरू के पौधे भी लगाए गए हैं, जिससे हर्बल और औषधीय पौधों का उत्पादन बढ़ेगा।
उत्तराखंड का योगदान ₹201 करोड़ का
वित्त वर्ष 2024-25 में भारत से एपीडा-सूचीबद्ध उत्पादों का निर्यात ₹2.43 लाख करोड़ रहा। इसमें उत्तराखंड का योगदान ₹201 करोड़ था। अब तक राज्य से मुख्य रूप से गुड़, कन्फेक्शनरी और ग्वार गम जैसे उत्पाद निर्यात होते थे, लेकिन अब इसमें फल, अनाज और जैविक उत्पाद भी शामिल होंगे। इससे किसानों को अपनी मेहनत का सही दाम मिलेगा। विदेशों में गढ़वाली सेब की मांग बढ़ने से खेती को लाभकारी और स्थायी बनाने में मदद मिलेगी। साथ ही राज्य के युवाओं के लिए रोजगार और स्वरोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।