नारी तू नारायणी – यह सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि हर महिला की शक्ति, समर्पण और योगदान का प्रतीक है. 8 मार्च 1917 को महिलाओं ने अपने हक की लड़ाई के लिए हड़ताल की थी. इसके बाद UN ने इसी दिन को ध्यान में रखते हुए 1975 में आधिकारिक रूप से 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की घोषणा की. तब से हर साल 8 मार्च को महिलाओं के प्रति समाज में सम्मान देने के लिए मनाया जाता है. यह दिन महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का दिन है.
देश-दुनिया में महिलाएं कृषक, उद्यमी और मजदूर के रूप में कई भूमिकाओं के माध्यम से कृषि में अपना योगदान दे रही हैं। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पढ़िए भारत में कृषि क्षेत्र में देश की महिलाओं का योगदान कितना है? देश के अलग-अलग राज्यों में महिलाएं कृषि क्षेत्र में काम करके सफलता हासिल कर रही हैं, इनमें से कुछ महिलाओं की कहानियां न्यूज पोटली ने कवर की हैं।
राजस्थान की संतोष देवी खेदर
Annual Periodic Labour Force Survey, 2021-2022 के मुताबिक़ हमारी भारत की 70% से ज़्यादा आबादी सीधे तौर पर कृषि से जुड़ी हुई है और देश की 62.9% ग्रामीण महिलाएँ कृषि से जुड़ी हैं।
इन्हीं ग्रामीण महिलाओं में एक हैं राजस्थान की किसान संतोष देवी खेदर। ये उन चुनिंदा किसानों में से हैं, जो किसानी करके अच्छा मुनाफा कमा रही हैं। संतोष 5 बीघा में खेती करके सालाना 30-35 लाख रुपये की कमाई कर रही हैं।
संतोष अनार के साथ ही मौसमी, अमरूद, चीकू की बागवानी करती हैं। राजस्थान जैसे गर्म इलाकों में वो सेब की बागवानी भी कर रही हैं। वो मानती हैं कि तकनीक के साथ मिलकर खेती की जाए, तो तरक्की आपको मिल ही जाएगी।

लखनऊ की अनुष्का जायसवाल
Agricultural Census (2010-11) के मुताबिक़, अनुमानित 118.7 मिलियन किसान हैं, जिनमें से 30.3 प्रतिशत महिलाएँ हैं। इनमें 33% महिलाएँ कृषि श्रमिक हैं, जबकि 48% स्वरोजगार किसान हैं।
उत्तर प्रदेश के लखनऊ की अनुष्का जायसवाल इन 48% स्वरोजगार वाले किसानों में से एक हैं। दिल्ली के हिंदू कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक करने के बाद उन्होंने मात्र 27 साल की उम्र में खेती में एक मिसाल कायम की है। अनुष्का पॉलीहाउस में विदेशी सब्ज़ियाँ उगाती हैं। उनकी उगाई सब्ज़ियाँ लखनऊ के बड़े होटलों और रेस्टोरेंट में सप्लाई की जाती हैं। इससे उन्हें अच्छी खासी कमाई होती है।

झारखंड की संगीता देवी
वैश्विक खाद्य उत्पादन में भी महिलाओं की हिस्सेदारी आधे से ज़्यादा है।
कृषि क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी दर चाय बागानों में 47%, कपास की खेती में 46.84%, तिलहन उगाने में 45.43%, सब्जी उत्पादन में 39.13% है।
ओरमांझी, झारखंड की संगीता देवी भी आधुनिक तरीक़े से सब्ज़ियों की खेती से सालाना 50-60 लाख रुपये की शानदार कमाई कर रही हैं। 70 रुपये प्रतिदिन मज़दूरी करके कमाने वाली संगीता अब 70 एकड़ लीज पर ली गई ज़मीन पर फूलगोभी, मटर, तरबूज़, बैंगन, शिमला मिर्च, अदरक और आलू जैसी सब्ज़ियाँ उगाती हैं।
संगीता अपनी उपज बोकारो, रांची और रिलायंस फ्रेश को बेचती हैं।पानी की कमी और वित्तीय संघर्ष जैसी चुनौतियों के बावजूद, आज संगीता एक सफल किसान हैं।

हरियाणा की चंद्रकला
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में उत्पादित खाद्यान्न का लगभग 60-80% ग्रामीण महिलाओं के प्रयासों के कारण होता है। पुरुषों द्वारा शहरों में बढ़ते प्रवास के कारण, कृषि क्षेत्र का प्रबंधन महिलाओं द्वारा किया जा रहा है।
सिरसा, हरियाणा की चंद्रकला भी अपने गाँव में किन्नू की खेती करती हैं। इस इलाक़े में पानी की बड़ी समस्या रहती है इसके बावजूद ड्रिप इरीगेशन जैसे तकनीक के इस्तेमाल से किन्नू का अच्छा उत्पादन कर कमाई कर रही हैं। किन्नू की खेती वन टाइम इन्वेस्टमेंट है। एक बार लगा दो फिर 35 साल तक कमाई होती है।

हिमाचल की सुशीला ठाकुर
ये हैं हिमाचल की महिला किसान सुशीला ठाकुर, जो अपने पति भोपाल सिंह के साथ मिलकर मात्र 7-8 बीघे जमीन पर सब्ज़ियों की खेती से सालना 12 लाख रुपए की कमाई करती हैं.

कुल्लू मनाली की अनुभूति
ये हिमाचल प्रदेश के कुल्लू मनाली के दलजीत सिंह की बेटी हैं, जो सिर्फ 700 कीवी के पौधों से सालाना एक करोड़ रुपए से ज्यादा कमाती हैं। दलजीत सिंह अपनी बेटी के साथ मिलकर अपना फार्म चलाते हैं।
