शीतलहर में ऐसे करें फसलों की देखभाल, कृषि विभाग ने जारी की एडवाइज़री

क्रॉप

देश के ज्यादातर राज्यों में कड़ाके की ठंड और शीतलहर का दौर जारी है। ख़ासकर उत्तर भारत के राज्यों में। इतने कम तापमान में लोगों को रोजमर्रा की जिंदगी में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन आम लोगों से ज्यादा किसान परेशान हैं। क्योंकि इसका असर उनकी रबी की फसल पर पड़ रहा है।जानकारों के मुताबिक़ इतनी ठंडी फसलों के लिए सही नहीं है। ऐसी ठंड में पौधों के फूल खराब होकर झड़ने लगते हैं, पत्तियाँ बदरंग होने लगती हैं, जिससे उपज में कमी आने का खतरा रहता है। ऐसे में बिहार के कृषि विभाग ने किसानों के लिए फसलों की देखभाल के लिए एडवाइज़री जारी की है। इसमें बताया गया है कि फसलों को पाले से कैसे बचाएं।

शीतलहर में फसलों की ऐसे करें देखभाल

1. जब भी शीतलहर या पाला पड़ने की आशंका हो उस समय फसलों में हल्की सिंचाई कर दें। ऐसा करने से फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।

2. शीतलहर के दिनों में फसलों की निराई गुड़ाई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है, जिससे फसलों में पाला लगने का खतरा बढ़ जाता है।

3. पाला पड़ने की संभावना वाले दिनों में शाम होने के बाद खेतों के चारों कोने पर घास फूस जलाकर धुआं करना चाहिए। इससे पाला सीधे तौर पर फसल पर नहीं गिर पाता है और तापमान कम नहीं होता है, जिससे फसलों को नुकसान नहीं होता है।

4. फसलों में पाला की आशंका होने पर घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।क्योंकि इस गंधक से पौधों में गर्मी बनती है और पाला लगने का खतरा कम हो जाता है। 

5. नर्सरी में प्याज, मिर्च, टमाटर, बैगन इत्यादि सब्जियां भी पाले से प्रभावित होती है। इन्हें बचाने के लिए पॉलीथिन या अन्य तरीके से पौधों को ढक देना चाहिए। इसके अलावा पौधों को ढकने के लिए गांव में पुआल का इस्तेमाल किया जा सकता है। पौधों को ढ़कते समय ध्यान रखें कि पौधों का पूर्वी दक्षिण भाग खुला रहे, ताकि पौधों को दोपहर में धूप मिलती रहे। बता दें कि पुआल का प्रयोग फरवरी महीने तक करना चाहिए।

6. शीतलहर और पाला एक सामायिक घटना है, जबकि झुलसा एक फफूंद के द्वारा फैलने वाला रोग है। इसका संक्रमण बहुत तेजी से फसलों पर पड़ता है, इसलिए इस रोग को चक्रवृद्धि ब्याज रोग भी कहते हैं। झुलसा रोग की तीव्रता काफी अधिक बढ जाने की स्थिति में फसलों पर एक फफूंदनाशी का छिड़काव सात दिनों के अंतराल पर करना चाहिए। इस फफूंदनाशी में मैंकोजेब, कार्बेंडाजिम और जिनेब का 2 से 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसलों पर छिड़काव करना चाहिए।


इसे लेकर अगर आपको अधिक जानकारी चाहिए तो आप निकटतम कृषि कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा किसान कॉल सेन्टर के टोल फ्री नं. 18001801551 पर बात करके भी अपनी फसलों को पाले से बचाने की उपाय जान सकते हैं।

ये देखें –

Pooja Rai

पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *