फलों की रानी लीची की ये होती हैं विशेषताएं, इस मौसम में खिलते हैं फूल

समस्तीपुर(बिहार)। बसंत ऋतु का आगमन हो चुका है । फलदार पेड़ों में फूल आना शुरू हो गया है। ऐसे में फलों की रानी कही जाने वाली लीची में भी फूल आने शुरू हो गये हैं। बिहार के समस्तीपुर जिले में स्थित डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी , पूसा के डॉ एस के सिंह ने लीची की विशेषताएं बताई हैं।

लीची को फलों की रानी है ,जब इसमें फूल आते है उस समय का बाग दृश्य अत्यंत सुहावना होता है। लीची के बाग के बगल से गुजरने पर एक अत्यंत कर्ण प्रिय ध्वनि सुनाई देती है । बाग में मधुमक्खियों के झुंड अपने कार्य में लीन होकर परागण का कार्य कर रहे होते है । इस समय कोई भी बागवान इनके कार्य में किसी भी प्रकार का कोई भी छेड़छाड़ नही करता है क्योंकि वह जानता है की यदि छेड़छाड़ करेंगे तो ये मधुमक्खियां जो अपने कार्य में लीन हैं नाराज हो जाएगीं एवं बाग से चली जायेगी जिसके कारण से परागण का कार्य बीच में ही छूट जाएगा एवं इस तरह से अपूर्ण परागण होने की वजह से फूल एवं फल झड़ जाएंगे। ऐसे में बागवान इन मधुमक्खियों का बाग में स्वागत करने के लिए लीची के बाग में 20 से 25 मधुमक्खियों के बॉक्से प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रख देते हैं । मधुमक्खी के बॉक्से रखने से दो फायदे है पहला बाग में बहुत अच्छे से परागण होता है। दूसरा इससे बागवान को शहद भी मिल जाता है जिससे उसे अतरिक्त लाभ भी मिल जाता।

लीची के फूल छोटे, नाजुक और हल्की सुगंध वाले होते हैं। वे आमतौर पर सफेद या पीले-सफेद रंग के होते हैं और उनका व्यास लगभग 5-6 मिमी होता है। लीची के पेड़ आमतौर पर वसंत में फलते हैं। जलवायु के आधार पर मार्च और मई के बीच में। लीची के फूलों को लगभग 300-500 फूलों के बड़े गुच्छों या समूहों में व्यवस्थित किया जाता है। पुष्पगुच्छ आमतौर पर 20-30 सेमी लंबे होते हैं और शाखाओं से नीचे लटकते हैं। लीची के फूलों में पांच पालियों वाला बाह्यदलपुंज, पांच पंखुड़ियां, दस पुंकेसर और एक स्त्रीकेसर होता है। पंखुड़ियाँ थोड़ी मुड़ी हुई होती हैं और एक दूसरे को ओवरलैप करती हैं, जिससे कप का आकार बनता है। पुंकेसर में सफेद तंतु और पीले परागकोष होते हैं, और स्त्रीकेसर को घेरे रहते हैं। लीची के फूलों का परागण कीटों, मुख्यतः मधुमक्खियों द्वारा होता है। फूल अपनी सुगंध और अमृत के कारण मधुमक्खियों को आकर्षित करते हैं। परागण के बाद लीची के फूल एक फल के रूप में विकसित हो जाते हैं। फल एक छोटा, गोल या अंडाकार ड्रूप होता है, जो खुरदरी, लाल-गुलाबी त्वचा से ढका होता है। फल में एक मीठा, सफेद, पारभासी गूदा और एक भूरे रंग का बीज होता है।
जब फूल खिले हो उस समय किसी भी प्रकार का कोई भी कृषि रसायन खासकर कीट नाशक का प्रयोग नही करना चाहिए क्योंकि इससे फायदा तो कोई नही होगा बल्कि भारी नुकसान होगा ।लीची के फूल के कोमल हिस्से इस रसायनों के प्रयोग से घायल हो सकते है एवम मेहमान मधुमक्खी नाराज होकर बाग छोड़ कर चले जायेंगे।

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