उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मिट्टी की क्वालिटी में सुधार के लिए एक नई पहल शुरू की है, जिसके तहत हरी खाद के रूप में पहचानी जाने वाली ढैंचा(green manure) की फसल को किसानों से खरीदने का निर्णय लिया है। ढेंचा के बीज के लिए सरकारी कीमत भी घोषित कर दी गई है। बिक्री के लिए किसानों को राज्य बीज निगम में रजिस्ट्रेशन कराने होंगे।
इस समय किसानों के फसलों की उत्पादकता घटने के पीछे मुख्य वजह लगातार मिट्टी की बिगड़ती सेहत है।केमिकल फर्टिलाइजर के असंतुलित प्रयोग से हर दिन मिट्टी की उत्पादकता में कमी आ रही है।जिसका सीधा असर फसल के उत्पादन पर पड़ रहा है। केमिकल फर्टिलाइजर के ज़्यादा प्रयोग से मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा में कमी आ रही है जो पोषक तत्वों को इकट्ठी करने के रूप के लिए जाना जाता है। इसीलिए मिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक नई पहल शुरू की है, जिसके तहत हरी खाद के रूप में पहचानी जाने वाली ढैंचा के बीज को सरकार खरीदेगी। इससे किसानों को अपने खेतों में हरि खाद ढैंचा लगाने के लिए बढ़ावा मिलेगा और बीज बेचकर अतिरिक्त कमाई भी होगी।
किसानों से ढैंचा का बीज ख़रीदा जाएगा
हरी खाद के रूप में पहचानी जाने वाली फसल ढैंचा के बीज उत्पादन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने लगभग 8 हजार क्विंटल ढैंचा बीज ब्लॉक स्तरीय बिक्री केद्रों पर 50 प्रतिशत अनुदान पर वितरित किए हैं. जो किसान ढैंचा का बीज उत्पादन के लिए ढैंचा की खेती करना चाहते हैं, उन्हें 100 फीसदी अनुदान दिया जा रहा है। जिससे वे बीज उत्पादन कर सरकार को बेच सकें। उत्तर प्रदेश सरकार का राज्य बीज निगम विभाग किसानों का ढैंचा 4600 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदेगा। ढैंचा बिक्री के लिए किसानों को उत्तर प्रदेश बीज निगम में रजिस्ट्रेशन करना होगा।
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ढैंचा का महत्व
ढैंचा सस्बेनिया कुल के पौधों की श्रेणी में आता है। इसके पौधे के तने में सिम्बायोटिक नामक बैक्टीरिया होते हैं, जो atomospheric nitrogen का नाइट्रोजिनेज नामक एंजाइम की सहायता से मृदा में स्थिरीकरण करते हैं।ढैंचा को अगर हरी खाद के रूप में लगाते हैं तो 40-50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 8-10 किलोग्राम फास्फोरस और 4-5 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ मिलती है। जब खेत खाली होते हैं तो हरी खाद के रूप में लगाते हैं और 40-50 दिन यानी फूल आने की अवस्था में हल या रोटावेटर चलाकर मृदा में मिला दिया जाता है। मिट्टी में मिलाने से नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश प्राप्त होने के साथ-साथ खेत की मृदा की भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण सुधार होता है और ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा भी बढ़ती है।
आसान है ढैंचे की खेती करना
ढैंचा की खेती बहुत आसानी से किया जा सकता है, इसे बहुत कम मात्रा में खाद की जरूरत होती है और इसे बिना खाद के भी उगाया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, ढैंचा की 5 प्रजातियाँ हैं और उनमें से सेसबानिया रोस्ट्रेटा और सेसबानिया एक्यूलेटा हरी खाद और बीज के लिए बहुत लोकप्रिय हैं। ढैंचा की फसल लगाने के बाद 40 से 45 दिन बाद हरी खाद के लिए तैयार हो जाती है और लगभग 150 से लेकर 175 क्विंटल प्रति एकड़ सूखा पदार्थ प्राप्त होता है।
कब करें ढैंचे की खेती
गेहूं की कटाई के बाद लगभग मई-जून के महीने में खेत खाली रहते हैं। इस बीच इसमें कई तरह के नुक़सानदेह खरपतवार अपना अड्डा जमा लेते हैं, जो खेतों से पोषक तत्व ले लेते हैं।तो इस समय आप ढैंचा की खेती कर सकते हैं इससे मिट्टी के सेहत सही होगी और आगे जो भी फसल लगायेंगे उसकी क्वांटिटी और क्वालिटी में भी सुधार देखने को मिलेगा।
ढैंचे से बीज उत्पादन कैसे करें
ढैंचा की बीज की खेती के लिए बुआई का सर्वोत्तम समय मध्य जून से मध्य जुलाई तक होता है। मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा बनाने के लिए मानसून से पहले भूमि की अच्छी तरह जुताई करें। खेत की तैयारी के समय 3-4 टन प्रति एकड़ अच्छी तरह सड़ी हुई गाय का गोबर डालें। बीज उत्पादन के लिए 8 से 10 किलो बीज की जरूरत होती है। इसके लिए बीज से बीज की दूरी 45 से 20 सेंटीमीटर पर 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर बोना चाहिए।बीज उत्पादन के लिए बोई गई फसल लगभग 100 दिन में तैयार हो जाती है, जिसे अक्टूबर के पहले सप्ताह में कटाई करके बीज निकालकर बेचा जा सकता है। एक एकड़ में औसतन 6 क्विंटल उत्पादन मिलता है, जिसे बेचकर लाभ कमाया जा सकता है।
हारी खाद ढैंचा किसानों के लिए हर तरह से फ़ायदेमंद है चाहे वो मिट्टी की गुणवत्ता सुधार कर फसल उत्पाद को बढ़ाना हो या बीज बेचकर पैसा कमाना या फिर महँगे केमिकल फर्टिलाइजर न ख़रीद कर के पैसे बचाना।
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