गन्ना एक नकदी फसल है, जिसका देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है। गन्ना किसानों की आय का एक मुख्य स्रोत भी है। आपको बता दें कि भारत में गन्ने की सबसे ज्यादा खेती उत्तर प्रदेश में होती है। यहां 28.53 लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन पर गन्ने की खेती होती है, जिस पर लगभग 839 कुंटल प्रति हेक्टेयर गन्ने का उत्पादन होता है। वर्तमान में प्रदेश के किसानों ने ग्रीष्मकालीन गन्ने की बुवाई की हुई है। इस दौरान प्रदेश के कई जिलों में किसान फसल में पाइरीला का प्रकोप देख रहे हैं। पाइरीला को किसान फड़का रोग भी कहते हैं। इस रोग से बचाव के लिए प्रसिद्ध गन्ना वैज्ञानिक पद्मश्री बक्शीराम यादव ने किसानों को कुछ जरुरी टिप्स दिये हैं।
डाक्टर बक्शीराम ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर लिखा है कि कई जगह से प्रकोप की खबरें आ रही हैं लेकिन किसानों को कीटनाशकों का छिड़काव नहीं करना चाहिए। उन्होंने किसानों को 3 सलाह दी हैं।
1- किसानों को किसी भी रसायन / कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए। क्योंकि कीटनाशक के इस्तेमाल से फड़का बगल के खेतों में चला जाएगा। जो दवा का असर खत्म होने पर वापस आ जाएगा
2 -कीटनाशक के इस्तेमाल से किसानों के दो नुकसान होंगे। पहला धन का नुकसान। दूसरा फड़का का परजीवी मर जाएगा।
3-किसानों को केवल खेतों में सिंचाई करते रहना है। इससे परजीवी तेजी से बढ़ेगा।
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कीटनाशक का छिड़काव ना करें
डाक्टर बक्शीराम इसलिए कीटनाशक के छिड़काव के लिए मना कर रहे हैं क्योंकि इस कीट का सबसे असरदार उपाय इसका दुश्मन यानि परजीवी कीट एपिरिकेनिया मेलानोल्यूका Epiricania melanoleuca हैं, जो गन्ने के खेत में ही मौजूद रहते हैं। कीटनाशक के छिड़काव पाइरीला के दुश्मन और किसानों के ये मित्र परजीवी खत्म हो जाते हैं, इसलिए गन्ना वैज्ञानिक कीटनाशक न छिड़काव की सलाह देते हैं।

पाइरीला की पहचान
ये कीट पत्तियों पर अक्सर उछलता दिखाई देता है। इसके नवजात और छोटे बच्चे सफेद रंग के होते हैं जिनके 2 पूंछ या कह सकते हैं कि तिकोने आकार के होते हैं। ये कीट गन्ने की पत्तियों का रस चूसता है, जिससे प्रकाश संस्लेशषण रुक जाता है, पत्तियां पीली पड़कर मुरझा जाती हैं। पौधे भी कमजोर हो जाते हैं और आखिर में उत्पादन पर बुरा असर होता है। ऐसी दशा में सबसे बेहतर उपाय है कि प्रभावित पत्तियों और जहां प्रकोप दिखे उस पत्ती को तोड़कर जला दें या मिट्टी में दबा दें।
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