अमरूद की बागवानी में लगने वाले रोगों से बचाव के केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा ने रोगों से बचाव के उपाय बताए। इस तरह अमरूद की बागवानी कर रहे किसान अमरूद के पौधों में लगने वाले रोगों से बचा सकते हैं।
अमरूद की फसल के लिए सलाह
अमरूद में आवश्यकता आधारित सिंचाई के माध्यम से मिट्टी में उचित नमी बनाए रखें। कलम के नीचे से निकल रहे नए कल्ले को तोड़ते रहें। वृक्ष के थाले को खरपतवार-मुक्त रखें। यदि ड्रिप प्रणाली से उर्वरकों का प्रयोग किया जा रहा है, तो पानी में घुलनशील उर्वरकों को 7 दिनों के अंतराल पर प्रयोग करें। इस स्तर पर फलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पोटेशियम का प्रयोग महत्वपूर्ण है।
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अमरूद का छाल खाने वाला कीट का प्रबंधन
छाल खाने वाला इल्ली अमरूद का प्रमुख कीट है। इस कीट की उपस्थिति शाखाओं पर लंबाई में टेढ़े-मेढ़े फीते जैसे जाले और तने पर गैलरी देखकर सुनिश्चित की जा सकती है। जाला हटाने पर अक्सर तने में छोटे-छोटे छेद दिखाई देते हैं, जिनके अंदर इस कीट की सूंड़ी रहती है और तने को क्षति करती है। अधिक संख्या में कीटों के प्रकोप से प्रभावित शाखा की भोजन आपूर्ति बाधित हो जाती है और यह सूखकर मर जाती है। इस कीट का प्रकोप दिसम्बर से मार्च माह के मध्य अधिक होता है। सूंड़ी का आकार 4 से.मी. तक होता है और इसका रंग भूरा होता है।
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प्रबंधन
- अंदर उपस्थित अधिक सघन बागवानी से बचें और बाग में सफाई रखें।
- कीट की उपस्थिति देखने पर छेद के कीट को मारें।
अमरूद के उकठा / क्षय रोग का प्रबंधन
ये रोग जड़ ग्रंथि सूत्रकृमि और फफूंद द्वारा उत्पन्न होता है। संक्रमित पेड़ भले ही जीवित बने रहें, लेकिन इनकी उत्पादकता बहुत कम होती है। इस रोग के नियंत्रण हेतु पौधों के थाले की मिट्टी में प्रति वर्ग मीटर 200 ग्राम नीम की खली या 500 ग्राम वर्मी कम्पोस्ट के साथ जैविक जीव नाशी (ट्राइकोडर्मा हारजियनम या टी. विरीडी या बेसिलस प्रजाति या स्यूडोमोनास प्रजाति) 25 ग्राम मिट्टी में मिलाना चाहिए। बाग में सूत्रकृमि-ग्राही अन्य फसलें नहीं उगानी चाहिए।