तकनीक से तरक्की पार्ट-15: खेती का बदला सिस्टम, सूखे हरियाणा में 10x बढ़ी किसानों की आमदनी

हिसार(हरियाणा)।देश की कुल 140 मिलियन हेक्टेयर खेती में से 51 फीसदी से ज्यादा बारिश पर निर्भर है। अगर बारिश हुई तो फसल अच्छी होगी नही तो पैदावार ना के बराबर होगी। हरियाणा में भी पानी की भीषण कमी है, कई इलाके तो ऐसे हैं जहां पीने के पानी का भी संकट है।

दक्षिणी और पश्चिमी हरियाणा के कई क्षेत्रों में वाटर लेवल काफी नीचे गिर चुका है। नहर का पानी 20-22 दिनों में 2 से 3 घंटों के लिए आता है । जिससे किसान बमुश्किल अपनी एक तिहाई जमीन तिहाई सींच पाते हैं। लेकिन जिन किसानों ने माइक्रो इरिगेशन टेक्नोलॉजी को अपनाया है, उन किसानों के खेतों में फसलें लहलहा रही हैं।

हरियाणा के हिसार जिले के बुडाक गांव में रहने वाले किसान सत्यपाल शास्त्री एक एकड़ नाके के पानी से 4 एकड़ में स्प्रिंकलर और ड्रिप के माध्यम से 16 एकड़ तक खुली सिंचाई करते हैं। वे कहते हैं, 2 एकड़ खुली सिंचाई में जितना पानी लगता था, टपक सिंचाई और स्पिंकलर से वो 10 एकड़ में कर लेते हैं। सिंचाई का फायदा इतना है, हमारे यहां अगर सरसों 7-8 कुंटल एकड़ हो रही है।वहीं बॉर्डर के इलाके में कुछ किसानों के यहां बीज तक निकलना मुश्किल हैं, क्योंकि उनके पास ये सिस्टम नहीं था और समय पर बारिश भी नही हुई।”

इसी गांव के रहने वाले रमेश कुमार के पास 14 एकड़ जमीन है, लेकिन वो सिर्फ 2 एकड़ खेती कर पाते थे।अब हौद के पानी से बिना बिजली के 2 एकड़ में चना, 3 एकड़ में गेहूं और 6 एकड़ में सरसों की खेती कर रहे हैं। वे बताते हैं ” पहले खेती बरसात पर निर्भर थी लेकिन ड्रिप और स्प्रिंकलर ने खेती को आसान बना दिया है। हमने तीन एकड़ में स्प्रिंकलर और 11 एकड़ खेत में ड्रिप लगवाई है। अब हम कम पानी में खेत की सिंचाई करके अच्छी पैदावार ले रहे हैं।”

पश्चिमी और दक्षिणी हरियाणा में नहर का पानी 20-25 दिन में एक बार आता है, जिसे किसान बर्मा चलाकर अपनी डिग्गियों और खेत में बने तालाबों में जमा कर लेते हैं। उसके बाद उससे खेत की सिंचाई करते हैं। लेकिन ये पानी पूरी फसल के लिए पर्याप्त नहीं होता। हरियाणा सरकार कई योजनाओं पर किसानों को सब्सिडी देती है। जिसमें डिग्गी, सोलर सिस्टम और सूक्ष्म सिंचाई शामिल है। ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई विधि यहां खेती में एक नई क्रांति लेकर आई है।

अंतरराष्ट्रीय खरपतवार विज्ञान सोसाइटी(आइडब्लयूएसएस) के अध्यक्ष एवं एचएयू के पूर्व प्रोफेसर डॉ. समुंदर सिंह के मुताबिक पिछले साल जिन किसानों ने ड्रिप के साथ कपास की खेती की थी, उन्हें गुलाबी सुंडी की के बावजूद शानदार उत्पादन मिला था। वे पुराने फोटो दिखाते हुए कहते हैं, हमने रमेश कुमार के खेत की बुवाई से लेकर कटाई तक पूरी निगरानी की है। इतनी बेहतर फसल आपको देखने को नहीं मिलेगी।

तकनीक से तरक्की सीरीज – न्यूज पोटली और जैन इरिगेशन की जागरुकता मुहिम है, सीरीज में उन किसानों की कहानियों को शामिल किया जा रहा है, जो खेती में नए प्रयोग कर, नई तकनीक का इस्तेमाल कर मुनाफा कमा रहे हैं। ड्रिप इरिगेशन, आटोमेशन, फर्टिगेशन सिस्टम आदि की विस्तृत जानकारी के लिए संपर्क करें।
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