बहराइच (उत्तर प्रदेश)। भारत में करीब 50 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती है लेकिन ज्यादातर किसान 200-300 कुंटल प्रति एकड़ का ही उत्पादन ले पाते हैं। वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ इलाकों में किसान 1000 कुंटल प्रति एकड़ से ज्यादा का उत्पादन ले रहे हैं। करोड़ों की किसानों की मुख्य फसल गन्ने की उपज में इतना अंतर क्यों? वैज्ञानिक इन अंतर के लिए गन्ने कि किस्म और जलवायु के साथ ही खुले में सिंचाई और पोषण के प्रबंधन को सबसे बड़ा कारण मानते हैं। कम लागत, अधिक उपज और फायदे के लिए सूक्ष्म सिंचाई यानि ड्रिप इरिगशन को अपनाने की सलाह दी जाती है। देशभर के शोध संस्थान भी गन्ने में ड्रिप के इस्तेमाल की वकालत करते हैं, उनके मुताबिक सूक्ष्म सिंचाई से 30-40 फीसदी तक पानी की बचत होगी जबकि सिर्फ जड़ों में पानी जाने से 20-30 फीसदी तक पैदावार भी बढ़ सकती है। और जिन किसानों ने इसे अपनाया है, उन्हें फायदा भी मिल रहा है। तकनीक से तरक्की में ऐसे ही एक युवा किसान से मिलिए जो नई तकनीक से खेती कर मुनाफा कमा रहे हैं।
सुनील सिंह, देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के टेंडवा बसंतपुर में रहते हैं। कृषि से बीएससी की पढ़ाई करने वाले सुनील सिंह अपने ज्ञान को दूसरों की नौकरी के बजाए अपने खेतों में लगाना चाहते थे। सुनील सिंह अपने पिता के साथ मिलकर 10 एकड़ में ट्रेंच और रिंग पिट विधि से गन्ने की खेती करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने अपनी परंपरागत खेती में कई बदलाव किए हैं। सुनील कहते हैं, बूंद-बूंद सिंचाई से अब वो एक प्वाइंट से अपने कई काम करते हैं। वीडियो यहां देखिए
बहराइच, उत्तर प्रदेश का बाढ़ प्रभावित है। जहां भूमिगत पानी की वैसी दिक्कत तो नहीं लेकिन ज्यादा लागत के बावजूद गन्ने की खेती में वो फायदा नहीं मिल पा रहा था। सुनील कहते हैं, ड्रिप इरिगेशन अपनाने से खाद, लेबर, समय और श्रम सब बचा रहा है, जबकि उत्पादन बढ़ा है।
सुनील के पिता और प्रगतिशील गन्ना किसान आनंद सिंह कहते हैं, आज के नए कृषि यंत्रों से खेती बहुत आसान हो गई। वो कहते हैं, जब ड्रिप सिस्टम नहीं था तो लेबर खोजना पहली मुसीबत थी, दूसरी बड़ी समस्या थी की हर साल करीब 10 हजार रुपए के प्लास्टिक के पाइप लगते थे, जबकि अब इतने पैसे में सरकारी सब्सिडी में पूरा ड्रिप का पूरा सिस्टम लग गया है। जो वर्षों तक चलेगा।
आनंद सिंह अपने पारंपरिक खेती के तजुर्बे के साथ कहते हैं, पहले हम लोग जिस तरह गन्ना बोते थे, उसमें महीने भर उगने का इंतजार करते थे फिर पानी लगाते हैं, ऐसे में कई बार आधा गन्ना खेत में ही सूख जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। वो अपने खेत में 119 कुंटल प्रति गन्ने की पैदावार ले चुके हैं। जिसे बीच में बेचकर अच्छा पैसा भी कमाते हैं।
खेती को लेकर अक्सर नाउम्मदियों की बात होती है.. एक बड़ा वर्ग नौकरी को ज्यादा तवज्जो देता है। देश के तमाम ऐसे किसान हैं जो गांव में रहकर भी खेती से अच्छे पैसे कमा रहे हैं। तकनीक से तरक्की सीरीज में देश के कोने-कोने से उन किसानों की कहानियां हैं जिन्होंने खेती में कुछ नया किया है, जिन्होंने तकनीक का साथ लेकर खेती को मुनाफे का सौदा बनाया है। वो किसान जो आम होकर भी खास हो गए हैं। खेती किसानी की रोचक जानकारियों के लिए देखते रहिए न्यूज पोटली