- खजूर का एक पेड़ साल में 20 हजार से 50 हजार तक आमदनी दे सकता है.
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा खजूर आयातक देश है जो वैश्विक बाजार का लगभग 38 फीसदी खजूर अकेले आयात करता है
कच्छ (गुजरात)
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर… पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर..। ये दोहा हम सबने खूब सुना है… जो कहता है कि खजूर का पेड़ किसी भी तरह से काम का नहीं है, लेकिन ये मिथक है, भारत और दुनिया के कई देशों के किसान इस मिथक को तोड़ चुके हैं। गुजरात में कच्छ के किसान आज खजूर की बागवानी से सालाना करोड़ों रुपए कमा रहे हैं।
“मेरे परिवार के पास करीब 250 एकड़ में खजूर के बाग हैं, जिनसे साल में औसतन 3 करोड़ रुपए मिलते हैं।” अपनी बाग में खजूर का एक गुच्छा दिखाते हुए किशोर वालजी दबासिया कहते हैं। गुजरात के कच्छ इलाके में रहने वाले किशोर दबासिया (60 वर्ष) कच्छ की देशी खजूर कच्छी खरड़ की खेती करते हैं। दबासिया के मुताबिक उन्होंने खजूर की खेती की शुरुआत सिर्फ 12 एकड़ जमीन से की थी। और आज उनके तीन भाइयों में 250 एकड़ के बाग हैं। किशोर ने अपने फार्म पर होने वाले खजूरों का ट्रेडमार्क भी बनाया है. उनके फार्म का नाम बलराम खरण फार्म है. देखिए वीडियो
दुनिया का सबसे बड़ा खजूर आयातक है भारत
कच्छ के किशोर दबासिया और उनके जैसे हजारों किसान खजूर से लाखों रुपए कमा रहे हैं। खजूर से ही छुहारा भी बनता है। खजूर की खेती के बारे में आपको इसलिए भी बता रहे हैं क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा खजूर आयातक देश है, जो वैश्विक बाजार का लगभग 38 फीसदी खजूर अकेले आयात करता है। यानि देश में खजूर की खेती का दायरा लाखों हेक्टेयर बढाए जाने की जरुरत है।
इन राज्यों में होती है खजूर की खेती
भारत में खजूर की खेती की बात करें तो गुजरात, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों के अलावा तमिलनाडु में इसकी बागवानी होती है। देश में खजूर की बाराही, मेडजुल, खलास और खुनेरी समेत करीब 8 किस्में प्रचलित हैं। लेकिन कच्छ के खजूर सबसे खास माने जाते हैं। कच्छ के देशी खजूर, यानि कच्छी खरेक को जीआई टैग भी मिला है। किशोर दबासिया की खूबी ये भी है कि फसलों के मामले मे हाइब्रिड की तरफ बढ़ चुकी दुनिया में वह तकनीक के ही सहारे देशी फलों को मंडियों से लेकर ठेलों तक पहुंचा रहे हैं.
खजूर और ड्रिप इरिगेशन
गुजरात के कच्छ इलाके की ज़मीन उबड़ खाबड़ और रेतीली है। यह नमक के लिए दुनिया भर में मशहूर भी है.. लेकिन यही उस इलाके की मुश्किल भी है। खारा पानी और दिन ब दिन घटता ग्राउंड वॉटर लेवल वहाँ के किसानों की सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। किशोर दबासिया इस परेशानी से भी तकनीक की मदद से ही उबरे हैं। सफेद शर्ट पहन कर खड़े किशोर “न्यूज पोटली” से बातचीत में कहते हैं
“ड्रिप इरिगेशन और स्प्रलिंकर्स के बगैर खजूर की खेती संभव ही नहीं थी. इस तकनीक ने ना सिर्फ सिंचाई में लगने वाले हमारे पैसे बचाए बल्कि लेबर कॉस्ट भी बचाया.”
कच्छ के बड़े खेडू यानि किसानों में शुमार किशोर कहते हैं कि उनके खजूरों की डिमांड इतनी है कि वह गुजरात से बाहर बेचने के लिए बचते ही नहीं. सारी खपत गुजरात में ही रह जाती है। हां यह ज़रूर है कि बारिश पर निर्भर करता है कि खजूर कितने दिन तक खराब नहीं होगा।
अनार के साथ सहफसली
कच्छ में किसान खजूर के साथ अनार की सहफसली भी लेते हैं। पानी की कमी को पूरा करने के लिए वो पेड़ के किनारे-4-6 ड्रिप लाइन तक डालते हैं। किशोर मानते हैं कि अगर किफायती सिंचाई की ये तकनीक नहीं होती, ड्रिप इरिगेशन की विधि का उन्हें ज्ञान नहीं होता तो कच्छ में जितना कम पानी सिंचाई के लिए है, यहां खजूर की खेती सपना बन कर रह जाती।
कम रिस्क वाली खेती- खजूर
खजूर की खेती को कम लागत और कम रिस्क वाली खेती माना जाता है। इसकी खेती 50 डिग्री तापमान से लेकर 5 डिग्री का भी मौसम सह लेती है। लेकिन इसकी खेती शुष्क इलाकों में सबसे अच्छी होती है। फिर चाहे गुजरात का कच्छ हो या राजस्थान का बाडमेर, जालौर, जैसलमेर जैसा इलाका। जानकार बताते हैं, इसके पौधों को ऊपर से गर्मी लेकिन जड़ों को हर हाल में नमी चाहिए। खजूर की खेती में इस बात का ख्याल रखना है कि इसके फल बारिश से भीगने न पाएं, इसलिए फ्लावरिंग के बाद से ही उन्हें पॉलीथीन से कवर कर दिया जाता है।
पोषण से भरपूर खजूर
खजूर पोषण से भरपूर फल है। इसमें 70 फीसदी कार्बोहाइड्रेट होता है। इसके अलावा विटामिन ए और बी.. भी भरपूर मात्रा में होता है। खजूर कैल्शियम, कॉपर, पोटैशियम, सल्फर और आयरन की खान हैं। यहां तक की एंटी आक्सीडेंट भी इनमें खूब पाए जाते हैं।
कैसे करें खजूर की खेती
खजूर का एक पेड़ औसतन 3-5 वर्ष में फल देना शुरु करता है और 20-25 साल तक फल देता है। इसकी पारंपरिक बागवानी में पौधे 30 गुणा 30 फीट पर लगाए जाते हैं। जिसमें एकड़ में 50-70 पौधों की रोपाई हो सकती है, जबकि सघन बागवानी में 20 गुणा 20 फीट पर पौधे लगाने पर पौधों की संख्या 110 हो जाती है।अगर उत्पादन की बात करें खजूर का एक पौधा 50- 200 किलो तक का उत्पादन दे सकता है। खजूर की पैदावार किस्म और किसान की खेती पर निर्भर करती है। किशोर दबासिया कहते हैं, वो औसतन एक पेड़ से 1 से 2 कुंटल तक उत्पादन लेते हैं। जिसका उन्हें बाजार में 100 रुपए से लेकर 400 रुपए किलो तक रेट मिलता है।खजूर की रोपाई तीन तरह से हो सकती है। ऑफशूट यानि वो पौधा जो जड़ों के पास से निकला, उसे निकालकर दूसरी जगह रोपाई की जा सकती है। दूसरा बीज से नई नर्सरी तैयार करके। जबकि तीसरी विधि टिशु कल्चर है,. ये वो आधुनिक विधि है, जिसमें पौधे रोगमुक्त और ज्यादा पैदावार देने वाले होते हैं। टिशु कल्चर एक पौधे की कीमत 2000-3500 रुपए तक हो सकती है.
“अगर आप टिशू कल्चर के जरिए खजूर के पौधे लगाते हैं तो आपकी एक पौधे की लागत 5000 तक की आएगी और एक एकड़ में तकरीबन चार से पाँच लाख रुपए आपको खर्चने पड़ेंगे. लेकिन अगर आप देशी बीज से ही खेती शुरू करेंगे तो शुरुआत में 20000 से 25000 की लागत में ही काम चल जाएगा.”– किशोर दबासिया, किसान कच्छ, गुजरात
तो ये थी कहानी किशोर दबासिया की जिन्होंने पारंपरिक खेती में तकनीक का मिलन करा कर खजूर की खेती में सफलता का नया मुकाम छुआ है और बहुत सारे ऐसे किसान जो निराश हो चुके थे, किशोर, उनके लिए नई उम्मीद हैं।
तकनीक से तरक्की सीरीज में भारत के अलग-अलग राज्यों के उन किसानों की कहानियां हैं, जो खेती में मुनाफा कमा रहे हैं, वो किसान जो तकनीक का इस्तेमाल करके खेती को बिजनेस बना चुके हैं। सीरीज से जुड़े वीडियो देखने के News Potli के YouTube चैनल पर जाएं।
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