बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। कृषि क्षेत्र तकनीकि का अहम योगदान है। इससे खेती किसानी आसान हो गई है। ऐसे में किसान अपनी फसल को कीटों से बचाने के लिए एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन (आईपीएम) का प्रयोग करते है। इसे इंट्रीगेटिट पेस्ट कंट्रोल के नाम से भी जानते हैं।एक तरफ जहां केमिकल युक्त सब्जियां खाकर लोगों को कई प्रकार की बीमारियां हो रही हैं। इस विधि से उगाई गई सब्जियों में कैमिकल नही होता है और गुणवत्ता भी अच्छी होती है।
बाराबंकी जिले के रहने वाले युवा किसान मयंक वर्मा सब्जियों की खेती करते हैं वे अपनी फसल को कीटों से बचाने के लिए आईपीएम तकनीकि का प्रयोग करते हैं। मयंक बताते हैं “मैं पूरे साल सब्जियों की खेती करता हूं। गर्मियों में लौकी, तरोई, कद्दू, टमाटर, खीरा, करेला, तरबूज खरबूजे की खेती करता हूं। पूरे खेत में स्टिकी ट्रैप, फेरोमोन ट्रैप, सोलर लाइट ट्रैप और वाटर ट्रैप लगाता हूं। इससे काफी बेहतर परिणाम आते हैं, उत्पादन अच्छा होता है, फसल में कीटनाशकों का छिड़काव नही करना पडता।”
एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन विशेषज्ञ विनय कुमार वर्मा के मुताबिक आईपीएम तकनीकि सभी फसलों में कारगर है। ये तकनीकि तना भेदक, तना छेदक और पत्तियां खाने वाले कीड़ों को नियंत्रित करती है। स्टिकी ट्रैप, फेरोमोन ट्रैप, सोलर लाइट ट्रैप और वाटर ट्रैप सभी फसलों में कारगर है। इसमें किसान की कीटनाशकों में लगने वाली लागत लगभग 80% तक कम हो जाती है।