नाशपाती की वैज्ञानिक खेती एवं रोग-कीट प्रबंधन

अगर आप पारंपरिक फसलों की खेती के अलावा फलों की बागवानी करना चाहते हैं तो नाशपाती आपके लिए अच्छा विकल्प हो सकती है। इसके पेड़ में आमतौर पर एक से दो कुंतल के बीच उत्पादन होता है। अगर उत्पादन की प्रति हेक्टेयर बात करें तो बाग से 400 से 700 क्विंटल नाशपाती की ऊपज होती है। किसान इसकी बागवानी करके अच्छी कमाई कर सकते हैं।

नाशपाती एक पौष्टिक फल होता है इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर पाया जाता है। इसकी कुछ प्रजातियां झाड़ रूपी भी होती हैं। नाशपती का फल प्रोटीन और विटामिन का बहुत अच्छा स्त्रोत होता है। आजकल नाशपाती की खेती उत्तर भारत के ट्रॉपिकल क्षेत्रों में भी हो रही है।

बिहार के समस्तीपुर जिले में स्थित डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी,पूसा के पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी के विभागाध्यक्ष एवं प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना प्रोफेसर (डॉ ) एसके सिंह ने नाशपाती की खेती और इसमें लगने वाले रोग एवं कीट के बारे में विस्तार से बताया है।

साइट का चयन और मिट्टी की तैयारी

नाशपाती की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.0 और 7.0 के बीच होना चाहिए । बाग में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। पेड़ों में रोग के दबाव को कम करने के लिए अच्छी वायु परिसंचरण वाली साइट चुनाव करें । पोषक तत्वों के स्तर को निर्धारित करने के लिए मिट्टी का परीक्षण करें और रोपण से पहले आवश्यक संशोधन करें।

किस्मों का चयन

अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी की स्थितियों के अनुकूल नाशपाती की किस्में चुननी चाहिए । शीतलन आवश्यकताओं, रोग प्रतिरोधक क्षमता और बाजार की मांग जैसे कारकों पर विचार करें। विस्तार से जानने के लिए स्थानीय प्रसार कार्यकर्ताओं से भी उचित सलाह लें।

पौधे की रोपाई

पौधा लगाने के लिए जनवरी महिना उत्तम होता है, पौधा लगाने के लिए एक साल पुराने पौधों का प्रयोग किया जाता है।

कटाई और छंटाई

युवा पेड़ों को एक केंद्रीय लीडर सिस्टम या एक खुले केंद्र प्रणाली के लिए कटाई करें। आकार बनाए रखने, मृत या रोगग्रस्त लकड़ी को हटाने और फल देने वाली लकड़ी को बढ़ावा देने के लिए सालाना छंटाई करें। छंटाई करने से कैनोपी के भीतर सूर्य के प्रकाश के प्रवेश और वायु प्रवाह को बेहतर बनाने में भी मदद मिलती है।

सिंचाई

रोपाई के पश्चात बाग की समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए। गर्मियों के मौसम में इसमें फल आते हैं इस दौरान बाग में पर्याप्त के नमी बनी रहनी चाहिए। पत्तियों को गीला होने से बचाने और बीमारी के जोखिम को कम करने के लिए ड्रिप सिंचाई को प्राथमिकता दें।

खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग

मिट्टी के परीक्षण के परिणामों और पेड़ की आवश्यकताओं के आधार पर खाद डालें। विभाजित खुराक (स्प्लिट डोज)में नाइट्रोजन लागू करें, अत्यधिक नाइट्रोजन से बचें जो फल की कीमत पर वनस्पति विकास का कारण बन सकता है। नाशपाती की खेती में अच्छी उपज के लिए वर्मी कम्पोस्ट या अच्छी सड़ी गोबर की खाद (FYM) देना चाहिए। जब पेड़ 1 साल का हो जाये तो 5 किलो खूब सड़ी गोबर की खाद, 100 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम सिंगल फास्फेट और 200 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पेड़ की दर से कैनोपी के अनुसार रिंग बना कर मिट्टी में मिला दें और सिंचाई कर दें। जैसे जैसे पेड़ बढ़े उपरोक्त डोज को पेड़ की उम्र से गुणा करके खाद एवं उर्वरकों का निर्धारण करते है। यह डोज बढ़ते क्रम में 10 वर्ष तक जाएगी इसके बाद 10 वर्ष के पेड़ की डोज को ही हर वर्ष देते है इसके बाद डोज बढ़ने की आवश्यकता नहीं है। गोबर खाद, सिंगल सुपर फासफेट और म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की पूरी मात्रा दिसंबर के महीने में डालें। यूरिया की आधी मात्रा फूल निकलने से पहले फरवरी के शुरू में और बाकी की आधी मात्रा फल निकालने के बाद अप्रैल के महीने में डालनी चाहिए।

फसल की कटाई का समय, भंडारण एवं उपज

नाशपाती के फलों की तुड़ाई जून के प्रथम सप्ताह से सितम्बर के मध्य की जाती हैं। नज़दीकी मंडियों में फल पूरी तरह से पकने के बाद और दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए हरे फल तोड़ें। नाशपाती की फसल 135-140 दिनों में पकती है। फलों की तुड़ाई के बाद फलों की ग्रेडिंग करें, फिर फलों को फाइबर बॉक्स में स्टोर करके बाजार ले जाया जा सकता है, फलों को 1000 ppm एथेफोन के साथ 4-5 मिनट के लिए उपचार करें जिससे कच्चे फल भी पक जाये या इनको 24 घंटों के लिए 100 ppm इथाइलीन गैस में रखें और फिर 20° सेंटीग्रेट पर स्टोर करना चाहिए । फलों को 0-1 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान और 90-95 % नमी वाले स्टोर में 60 दिन तक रखा जा सकता है। नाशपाती के प्रति पेड़ से औसतन 4-5 क्विंटल के बीच फलों की पैदावार होती है।

नाशपाती के प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन

कीटों और रोगों के प्रारंभिक लक्षणों के लिए नियमित रूप से निगरानी करें। सांस्कृतिक, जैविक और रासायनिक नियंत्रण विधियों सहित एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) तकनीकि को अपनाएँ।

अग्नि झुलसा (फायर ब्लाइट) (एर्विनिया एमिलोवोरा)
इस रोग के प्रमुख लक्षण है मुरझाना, फूलों का काला पड़ना और शाखाओं पर कैंकर हो जाते हैं। इसके प्रबंधन के लिए संक्रमित शाखाओं को दिखाई देने वाले लक्षणों से कम से कम 12 इंच नीचे से काटें। जहाँ उपलब्ध हो, वहाँ प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें। सुप्त मौसम के दौरान तांबे आधारित जीवाणुनाशकों का प्रयोग करें।

नाशपाती पपड़ी (वेंचुरिया पाइरिना)
इस रोग का प्रमुख लक्षण है पत्तियों और फलों पर गहरे, पपड़ी जैसे घाव इस रोग के प्रबंधन के लिए बढ़ते मौसम के दौरान निवारक रूप से कवकनाशी का प्रयोग करें। संक्रमित पौधों के मलबे को हटाएँ और नष्ट करें। अच्छी वायुप्रवाह सुनिश्चित करें और ओवरहेड सिंचाई से बचें।

नाशपाती रस्ट (जिम्नोस्पोरैंगियम एसपीपी)

इस रोग के प्रमुख लक्षण है पत्तियों पर नारंगी से पीले धब्बे, अक्सर बीजाणु-उत्पादक संरचनाओं के साथ। इस रोग के प्रबंधन के लिए जुनिपर और देवदार जैसे वैकल्पिक मेज़बानों (होस्ट) को आस-पास से हटा दें। बढ़ते मौसम के दौरान यदि आवश्यक हो तो कवकनाशी जैसे टिल्ट @ 1मिलिलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर 10दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करें । संक्रमित शाखाओं की छंटाई करें और उन्हें उचित तरीके से नष्ट करें।

नाशपाती पत्ती ब्लिस्टर माइट (एरियोफिस पाइरी)

इस कीट के प्रमुख लक्षण है पत्तियों पर छाले जैसी विकृतियाँ, प्रकाश संश्लेषण क्षमता को कम करना।इसके प्रबंधन के लिए
सर्दियों में रहने वाले माइट्स को रोकने के लिए निष्क्रिय मौसम के दौरान एकेरिसाइड का प्रयोग करें। संक्रमित पत्तियों की निगरानी करें और यदि संभव हो तो कटाई छंटाई करें।

नाशपाती साइला (कैकोप्सिला पाइरी)

इस कीट के आक्रमण के प्रमुख लक्षण है शहद का स्राव, कालिख जैसी फफूंदी का विकास और विकास में रुकावट।इसके प्रबंधन के लिए वयस्क साइला को रोकने के लिए परावर्तक मल्च का उपयोग करें।
शिकारी कीटों जैसे प्राकृतिक शत्रुओं को बढ़ावा दें। लाभकारी आबादी को बाधित करने से बचने के लिए कीटनाशकों का विवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग करें।

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