“हमारे यहां गर्मी में तापमान 42 से 46 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है और इस फसल को पकने के लिए गर्मी का मौसम चाहिए तो मैनें रिस्क लेके 12 साल पहले पौधा लगा दिया।”
खरगोन (मध्य प्रदेश)। “मैं अमरुद और सीताफल (शरीफा) और चीकू की खेती करता हूं। लेकिन जितना मुनाफा चीकू में होता है वो कहीं नहीं है। चीकू से हमें अभी 2 लाख रुपए प्रति एकड़ का फायदा हो रहा है। मैं खड़ी बाग ही बेच देता हूं।” कमलेश पाटीदार (40 वर्ष) अपनी खेती के बारे में बताते हैं।
मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर से करीब 80 किलोमीटर दूर खरगोन जिले के युवा किसान कमलेश पाटीदार के पास 3 एकड़ चीकू की बाग है, जिसमें कई वर्षों से फसल आ रहे हैं, जबकि 4 एकड़ चीकू की उन्होंने नई बाग लगाई है।
अपनी बाग में फलों से लदे चीकू के बाग को दिखाते हुए कमलेश कहते हैं, “12 साल पहले जब मैंने चीकू की बाग लगाने का फैसला किया था तो बहुत रिस्क लग रहा था। करीब 30 हजार की लागत आई थी। उस वक्त वो मेरे लिए बहुत ज्यादा पैसे थे इस साल मैंने अपनी बाग 6 लाख रुपए में बेची है। इसमें एक जो लागत लगती है, शुरु में लगती है, इसके बाद कोई खास लागत नहीं लगानी पड़ती है।”
कमलेश के मुताबिक चीकू में फायदा देखकर उन्होंने इसी वर्ष 4 एकड़ में अपनी बाग के सामने ही दूसरी बाग लगाई है। जिसके लिए 200 रुपए प्रति पौधा खरीदकर लाए हैं और जबकि 12 साल वाला पौधा सिर्फ 30 रुपए का था। उन्होंने इस बार काली पत्ती किस्म के ज्यादा पौधे लगाए हैं। जिसके बीच में सीताफल का पौधा लगाया है।
सीताफल जिसे शरीफा भी कहते हैं, के फल को पकने के लिए गर्म मौसम की जरूरत होती है। सीताफल को लगाने का सही समय जुलाई-अगस्त माना जाता है। यह पेड़ तैयार हो जाने पर 3 साल में फल देना भी शुरू कर देता है।
कमलेश खरगोन की जलवायु को समझाते हुए बताते हैं “हमारे यहां गर्मी में तापमान 42 से 46 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है और इस फसल को पकने के लिए गर्मी का मौसम चाहिए तो मैनें रिस्क लेके 12 साल पहले पौधा लगा दिया पर यहां पानी की भी दिक्कत है। पौधे को बचाने के लिए 5 साल तक बाल्टी से पानी डालता रहा फिर पांच साल बाद ड्रिप से सिंचाई करने लगा। अभी मुझे 4 महीने में 6 लाख फायदा हो जाता है। एक पेड़ से ढेड़ कुंतल फल निकलता है जिसकी कीमत 5000 रुपये होती हैं मोटा मोटी एक पेड़ 5000 रुपये तक की कमाई करा देता है।”
किसान के मुताबिक साल में तीन बार फसल देना वाला चीकू का पेड़ ज्यादा रख रखाव नहीं मांगता है, अभी तक ऐसा कोई रोग भी नहीं लगा है और न ही कोई विशेष खाद डालनी पड़ती है। गौबर की खाद डालने से ही काम चल जाता है और बीच बीच में मकड़ी से बचान के लिए जीवामृत से छिड़काव कर देते हैं। भारत में चीकू की खेती करीब 78-79 हजार हेक्टेयर में होती है, जिससे सालाना उत्पादन करीब 863 हजार मीट्रिक टन का उत्पादन होता है।