हिमाचल प्रदेश में इस वक्त बागीचों में सेब तैयार है। लेकिन लगातार भारी बारिश और भूस्खलन ने इस बार बागवानों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। प्रदेश भर में 397 सड़कें और तीन राष्ट्रीय राजमार्ग बंद पड़े हैं। सड़क संपर्क बाधित होने से तैयार सेब समय पर मंडियों तक नहीं पहुंच पा रहा है। हालत यह है कि कुल्लू और बंजार जैसे इलाकों में सेब बागवान मजबूरी में अपनी फसल सड़क किनारे फेंक रहे हैं।
हिमाचल की आर्थिकी में सेब की भूमिका सबसे अहम है। हर वर्ष औसतन 5000 करोड़ रुपये सेब उत्पादन से सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से आते हैं। यही कारण है कि सेब को प्रदेश की आर्थिक रीढ़ कहा जाता है। लगभग 2.5 लाख परिवार सीधे इस व्यवसाय से जुड़े हैं। लेकिन इस बार प्राकृतिक आपदा से यह किसान तबाह हो रहे हैं।
राज्य में ख़राब मौसम के कारण सबसे अधिक सड़क मार्ग कुल्लू और मंडी में बाधित हैं और इस समय सबसे अधिक सेब की आमद भी इन्हीं जिलों से हो रही है। कुल्लू में 85 सड़कें और मुख्य एनएच 305 बंद है जबकि मनाली फोर लेन भी बार बार बंद हा रहा है जिससे अवाजाही बाधित हो रही है वहीं मंडी जिला में 192 सड़कें और शिमला में 21 और सिरमौर में 22 सड़कें बंद हैं। इसके अलावा जो सेब किसी तरह गाड़ियों में बाजार तक पहुंच रहे हैं, वे भी टूटी पेटियों और क्षतिग्रस्त हालत में मंडियों तक आते हैं, जिससे खरीदार सही दाम नहीं दे रहे। बागवानों की सालभर की मेहनत इस बार बर्बाद होती नजर आ रही है।

2,173 करोड़ रुपये का नुकसान
राज्य सरकार के आकलन के मुताबिक इस मानसून सीजन में अभी तक 2,173 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। इसमें बागवानी क्षेत्र को 2,743 लाख और कृषि क्षेत्र को 1,145 लाख रुपये का नुकसान आंका गया है। लेकिन, सड़कों के क्षतिग्रस्त होने और सेब मंडियों तक समय पर न पहुंच पाने से जो सीधा नुकसान हो रहा है, उसका अब तक कोई आधिकारिक आंकलन नहीं किया गया है।
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किसानों ने क्या कहा?
तिर्थन वैली के बागवान और पर्यटन व्यवसायी पंकी सूद बताते हैं,
“हमारी वैली में 85 फीसदी लोग कृषि और बागवानी से और 15 फीसदी पर्यटन से जुड़े हैं। इस बार यह दोनों ही क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। यहां केवल एक सड़क है और उसके बंद होने से सेब की फसल खेतों में ही सड़ रही है। कई किसानों को फसल फेंकने तक की नौबत आ गई है।”
हिमाचल सेब उत्पादक संघ की राज्य कमेटी सदस्य संजय चौहान का कहना है कि स्थिति बेहद गंभीर है।
“किसान सेब और अन्य फसलें मंडियों तक न पहुंच पाने के कारण सड़ने की कगार पर हैं। सेब बागवानों की कमर टूट चुकी है। सरकार को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए और मध्यस्थता योजना के तहत किसानों से सेब सीधे खरीदकर उनकी मदद करनी चाहिए, ताकि प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली सेब बागवानी को बचाया जा सके।”
बंजार क्षेत्र की कृषक और बागवान अनीता नेगी बताती हैं कि उनके यहां हालात बदतर हैं।
“साल भर की मेहनत इस बार बर्बाद होने की कगार पर है। मेरे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 20 से 25 पिकअप सेब फंसे हैं। तुड़ान करके भी मंडियों तक पहुंचाना संभव नहीं है। मजबूरन कई किसानों ने तुड़ान रोक दिया है क्योंकि फसल सड़ रही है।”

अन्य फसलों को भी नुकसान
प्राकृतिक आपदा ने केवल सेब नहीं बल्कि अन्य फसलों को भी प्रभावित किया है। किसानों का कहना है कि इस बार राजमा की उपज में बड़ा नुकसान हुआ है क्योंकि फूल ही नहीं लग पाए। वहीं टमाटर की फसल भी भारी बारिश से प्रभावित हुई है। इसका असर सीधे बाजार पर पड़ा है और प्रदेश भर में टमाटर के दाम 100 रुपये किलो से ऊपर चले गए हैं।
पूरी स्थानीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा रहा है असर
स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि सेब का परिवहन ठप होने से न केवल बागवान बल्कि आढ़ती, मजदूर और ड्राइवर भी प्रभावित हो रहे हैं। इससे राज्य की पूरी स्थानीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है। वहीं पर्यटन पर भी नकारात्मक असर हुआ है क्योंकि सड़कों के बंद होने से पर्यटक घाटियों में जाने का जोखिम नहीं उठा रहे। वहीं सड़कों की खराब हालत को देखते हुए गाडियों वाले भी बागवानों के सेब ढुलाई से कतरा रहें ताकि ढुलाई के दौरान वाहनों को नुकसान न हो।

किसानों और विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को आपदा प्रबंधन पर गंभीरता से काम करना होगा। सड़क निर्माण और रखरखाव में पहल करनी होगी और आपदा के समय वैकल्पिक परिवहन की व्यवस्था करनी होगी। अन्यथा हर साल इस मौसम में यही हालात दोहराए जाएंगे।
शिमला से न्यूज़ पोटली के लिए रोहित पराशर की रिपोर्ट
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।