भारत में सरसों का उत्पादन लगभग सभी राज्यों में होता है, लेकिन उनमें राजस्थान टॉप पर है, जबकि राजस्थान सहित पांच राज्य ऐसे हैं, जहां भारत का कुल 88 प्रतिशत सरसों का उत्पादन होता है। उत्तर प्रदेश कृषि विभाग ने किसानों को बुवाई से पहले सही किस्मों का चयन और खेत की तैयारी के लिए सलाह दी है।
सरसों रबी फसल की एक प्रमुख तिलहनी फसल है। इस फसल का भारत की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है। सरसों उत्पादन और क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में चीन और कनाडा के बाद भारत का स्थान है। सरसों की खेती किसानों के लिए काफी लोकप्रिय खेती है। क्योंकि इसकी खेती कम सिंचाई और कम लागत में अच्छा उत्पादन देती है। इसलिए इसकी खेती से किसानों को अधिक लाभ भी होता है। इसके अलावा इसकी खेती किसानों को इसलिए भी भाती है क्योंकि इसकी तेल की मांग सालभर रहती है जिससे किसानों को मुनाफ़ा होना वाजिब है।
पांच राज्यों में 88 प्रतिशत उत्पादन
सरसों के उत्पादन में देश के सिर्फ ये पांच राज्य अकेले 88 प्रतिशत सरसों का उत्पादन करते है। कृषि सहयोग और किसान कल्याण विभाग (DACFW) के आंकड़ों के अनुसार वह पांच राज्य, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल हैं। आंकड़ों के अनुसार देश में कुल उत्पादित होने वाले सरसों में राजस्थान में अकेले 46.7 प्रतिशत का उत्पादन होता है।
सरसों उत्पादन के मामले में राजस्थान जहां बंपर उत्पादन करता है। वहीं उसके बाद मध्य प्रदेश है जहां कुल 15 प्रतिशत सरसों का उत्पादन होता है, फिर हरियाणा है जहां 10.08 प्रतिशत सरसों का उत्पादन होता है। उसके बाद उत्तर प्रदेश है जहां 9.5 प्रतिशत सरसों का उत्पादन होता है और फिर पश्चिम बंगाल है जहां, 6.4 प्रतिशत सरसों का उत्पादन किया जाता है। इनके अलावा कई अन्य राज्य और भी हैं जहां बचे हुए 12 प्रतिशत सरसों का उत्पादन किया जाता है।
सरसों की इन किस्मों की बुवाई करें
पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 35
भारतीय कृषि विज्ञान परिषद (ICAR) के IARI ने सरसों की नई किस्म पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 35 (पीडीजेड 14) विकसित की है। 132 दिन में यह किस्म तैयार हो जाती है। सरसों की यह उत्तम किस्म सफेद रतुआ रोग यानी व्हाइट रस्ट, अल्टरनेरिया ब्लाइट यानी फफूंदी रोग, स्केलेरोटिनिया स्टेम रॉट यानी फफूंदी रोग, डाउनी फफूंद और पाउडरी फफूंद रोग से लड़ने में सक्षम है और इन रोगों को पनपने नहीं देती है। 132 दिन में यह सरसों किस्म प्रति हेक्टेयर 21.48 क्विंटल से अधिक उपज देती है।
भरतपुर सरसों 11
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार भरतपुर सरसों 11 किस्म कृषि जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल है।यह किस्म देरी से बोए जाने के बाद भी बंपर पैदावार देने में सक्षम है। यह किस्म 123 दिन में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 19 क्विंटल तक की उपज देने में सक्षम है। जबकि, इस सरसों में तेल की मात्रा 37 फीसदी से अधिक रहती है। यह किस्म सफेद रतुआ के अलावा अल्टरनेरिया पत्ती झुलसा रोग, डाउनी फफूंद रोग और पाउडरी फफूंद रोग से लड़ने में सक्षम है और इन्हें पनपने नहीं देती है।
ऐसे तैयार करें सरसों की बुवाई के लिए खेत
उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के प्रसार एवं प्रशिक्षण ब्यूरो की ओर से सरसों की बुवाई के लिए किसानों को मिट्टी की तैयारी को लेकर सलाह दी गई है। नीचे कुछ उपाय बताए जा रहे हैं जिससे खेत को तैयार करने के साथ ही मिट्टी की पोषकता बढ़ाने में भी किसान मदद मिलेगी।
- बताया गया है कि किसान सरसों की फसल समतल खेत में करें और यह अच्छे जल निकासी वाली बलुई दोमट से दोमट मिट्टी में अच्छी उपज देती है। जहां की जमीन क्षारीय है वहां हर तीसरे वर्ष जिप्सम 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से मिलना चाहिए।
- पर्याप्त सिंचाई वाले इलाकों में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए और उसके बाद तीन-चार जुताई तवेदार हल यानी हैरो से करनी चाहिए। इससे खेत में मौजूद खरपतवार जड़ से खत्म करने में मदद मिलती है।
- बाढ़ या बारिश के पानी वाले इलाकों में हर बरसात के बाद तवेदार हल से जुताई कर नमी को संरक्षित करना चाहिए। मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए हर बार जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए।
- सरसों की बुवाई के लिए खेत की चौथी जुताई यानी अंतिम जुताई के समय 1.5 फीसदी क्यूनॉलफॉस 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाना चाहिए। इससे जमीन के नीचे मौजूद फसल के लिए खतरनाक कीटों की रोकथाम करने में मदद मिलती है।
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