आधे घंटे के तूफान ने बर्बाद कर दी साल भर की मेहनत, केले की 30% फसल तबाह

लखीमपुर खीरी में 21 मई को आई आंधी और तूफान में केले की 30% फसल बर्बाद हो गई।

लखीमपुर खीरी: 21 मई को आई आंधी और तूफान में केले की 30% फसल बर्बाद हो गई। जिले में करीब एक हजार हेक्टेयर में केले की खेती होती है। किसानों का कहना है कि, महज आधे घंटे के लिए आए आंधी और तूफान ने बहुत भारी नुकसान हो गया। उन्होंने अपनी जिंदगी में इतनी भयंकर आंधी-तूफान कभी नहीं देखा था।

सुखजिंदर सिंह निघासन तहसील के बम्मनपुर में रहते हैं। वो पिछले कई सालों से गन्ने की खेती करते आ रहे हैं, और ज्यादातर Co-0238 वरायटी लगाते हैं। उनका कहना है कि, इस वरायटी में रेडरॉट की समस्या बहुत ज्यादा थी। इसकी वजह से खड़ा गन्ना सूख जा रहा था। चीनी मिल वाले इस गन्ने को लेने से इनकार करने लगे थे, और गन्ने की दूसरी वरायटी इसके मुकाबले आधा उत्पादन ही दे पा रही थीं, इसके साथ ही चीनी मिलों से पेमेंट मिलने की भी बहुत समस्या थी, इसी को देखते हुए उन्होंने इस बार गन्ने की जगह केले की खेती शुरू की। फसल भी अच्छी तैयार हुई। लगा की केले की खेती पर शिफ्ट होने का फैसला सही था, लेकिन आंधी और तूफान ने बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया।

“कई सालों से गन्ने की फसल हमारे छेत्र में खराब हो रही थी। इसलिए मैंने इस साल 4 एकड़ में केले की खेती की। बुवाई में जो लागत आई वो तो है ही, अब इतना नुकसान हो गया है कि, अगर मैं खेत को खाली कराऊं तो 30 हजार के करीब लागत और बढ़ जाएगी। एक एकड़ में इस बार एक लाख के करीब लागत आती। 3-4 महीने में फसल कटती तो 4 एकड़ से 20-25 लाख के करीब प्रॉफिट हो सकता था, लेकिन अब तक लागत निकालना भी मुश्किल हो गया है।“

सुखजिंदर सिंह की तरह ही मनिंदर सिंह भी केले की खेती करते हैं। वो भी बम्मनपुर में ही रहते हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि, मनिंदर सिंह ने सुखविंद से सिंह से कुछ साल पहले ही केले की खेती शुरू कर दी थी। उससे अच्छा मुनाफा भी कमा रहे थे, लेकिन इस बार की आंधी-तूफान ने उनकी 50 फीसदी के करीब फसल का नुकसान करा दिया।

“मैंने 20 एकड़ में केले की खेती की थी। 40%- 50% फसल का नुकसान हो गया। मेरी फसल 11 महीने की हो गई थी। अगले 3-4 महीने में हमें इसकी कटिंग करनी थी। मेरे पड़ोसी किसान की तो 80%-90% तक की केले की फसल का नुकसान हो गया है।“

पिछले कुछ सालों में लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश में केला उत्पादन के हब के तौर पर उभर रहा है। यहां करीब एक हजार एकड़ में केले की खेती होती है। किसान मुख्यता G9 और Cadila वरायटी लगाते हैं। न्यूज़ पोटली को किसानों ने बताया कि, यहां से सालाना करीब 75 करोड़ रुपये का केला देश-विदेश में सप्लाई होता है, लेकिन इस बार जितना नुकसान हुआ उससे अब इस साल का कारोबार 50 करोड़ रुपये के आसपास रहने की उम्मीद है।

ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान न्यूज़ पोटली ने कई किसानों से बात की। इस दौरान हमारी मुलाकात गहरा फार्म में मनप्रीत सिंह से हुई। इन्होंने अपनी ज़मीन पर तो केले की खेती की ही थी, 50 हजार एकड़ के हिसाब से 4 एकड़ ज़मीन लीज़ पर लेकर केला लगाया था। दूसरे किसानों की तरह ही उनका केले का पेड़ आंधी-तूफान में गिर गया। उन्होंने कर्ज लेकर केला लगाया था, सोचा था, फसल अच्छी होगी तो, सारा कर्ज चुका देंगे, लेकिन अब लागत भी नहीं निकल पा रही। केले का ये किसान अब सरकार से मदद की गुहार लगा रहा है।

“हमने 10 एकड़ केले की खेती की थी। सब तबाह हो गई। सरकार से निवेदन है कि हमें मुआवज़ा दिया जाए। मैंने लीज़ पर भी ज़मीन ली थी। इसमें खर्चा बहुत लगा है। हम जिस क्षेत्र में रहते हैं, ये जलभराव वाला इलाका है, यहां हर साल बाढ़ आती है। हमारे यहां फसल में करीब-करीब हर साल नुकसान होता आ रहा है, इसलिए हम शिफ्ट होकर केले की खेती पर आए थे, लेकिन इस बार भी फसल बर्बाद होने से हमारी आर्थिक स्थिति बहुत नाजुक हो गई है। कर्जा बहुत हो गया है किसानों पर। सरकार से हमारा निवेदन है कि, वो हमें मुआवज़ा दे।”

रिपोर्टिग के दौरान न्यूज़ पोटली की टीम जिन भी किसानों से मिली, उनमे से ज्यादातर की नाराज़गी सरकार और प्रशासन से दिखी। कई किसानों का कहना था कि, उनका इलाका तराई क्षेत्र में आता है, बाढ़ की वजह से वैसे ही यहां खेती काफी चुनौतियों से भरी है। पहले बड़ी तादाद में किसान गन्ने की Co-0238 वरायटी लगाते थे, लेकिन इस वरायाटी में रोग लगने और चीनी मिलों के पेमेंट में ढीले रवैये को देखते हुए बड़ी तादाद में किसान केले की खेती पर शिफ्ट हो गए। किसान को कहना है कि, एक एकड़ Co-0238 वरायटी से वो करीब 1.5 लाख रुपये का उत्पादन लेते थे, जबकि केले की खेती मे एक एकड़ से 5-6 लाख रुपये की आमदनी हो जा रही है। इसलिए उन्हें ये अच्छा विकल्प लगा। केले की खेती में एक बड़ी दिक्कत बीमा का ना होना है, दरअसल इंश्योरेंस कंपनियां केले की खेती को कच्ची फसल मानती हैं, इसलिए इसका बीमा नहीं करती। जिसके चलते नुकसान होने पर किसानों को ही इसकी कीमत चुकानी पड़ती है।

निघासन तहसील के अंकुर पांडे भी पहले गन्ने की खेती करते थे और अब केले की खेती कर रहे हैं। इस बार उन्होंने 3 एकड़ में केले की फसल लगाई थी। आंधी में उनकी फसल खराब हो गई।

“सरकार भी हमारे ऊपर कोई ध्यान नहीं दे रही है। हम लोगों ने फसल बीमा के लिए प्रयास किया था। वो योजना केवल कागजों पर चल रही है। किसी भी तरह का कोई लाभ, किसी भी किसान को नहीं मिल पाता। पहले भी हम लोग बाढ़ से बहुत ज्यादा परेशान रहे हैं। यहां पर गन्ने की फसल बाढ़ से बहुत ज्यादा चौपट हो गई थी। हम लोगों ने उसे बदल कर केले की फसल लगाई। हमें इतनी प्राकृतिक आपदाएं झेलनी पड़ रही है, लेकिन सरकार हम लोगों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है। हमारा क्षेत्र गड्ढे की तरफ जा रहा है।”

क्यों आती है हर साल बाढ़?

लखीमपुर खीरी को शारदा, घाघरा और मोहना नदियों से बाढ़ का खतरा रहता है, जो हिमालय के foothills से निकलती हैं। इन नदियों में बाढ़ आने का मुख्य कारण पहाड़ों पर भारी बारिश है, जिससे नदियों में पानी का स्तर बहुत बढ़ जाता है। उत्तराखंड में स्थित बनबसा बैराज से शारदा नदी में पानी छोड़े जाने से लखीमपुर खीरी में बाढ़ आ जाती है।

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