पंजाब सरकार ने ICAR द्वारा मंजूर की गई गेहूं की छह नई किस्मों पर आपत्ति जताई है, क्योंकि इन्हें सामान्य गेहूं की तुलना में 50% ज्यादा रासायनिक खाद की जरूरत पड़ती है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने कहा कि ये किस्में राज्य की परिस्थितियों के लिए उपयुक्त नहीं हैं और किसानों की लागत बढ़ा सकती हैं। ICAR का कहना है कि इन किस्मों से उत्पादन ज्यादा मिलेगा, इसलिए खाद की मात्रा भी अधिक है। यह विवाद टिकाऊ खेती और अधिक पैदावार वाली खेती के बीच संतुलन पर एक बड़ी बहस को सामने लाता है।
पंजाब सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) को पत्र लिखकर उन छह नई गेहूं की किस्मों पर सवाल उठाए हैं जिन्हें केंद्र सरकार ने हाल ही में मंजूरी दी है। पंजाब का कहना है कि इन किस्मों को उगाने के लिए किसानों को सामान्य गेहूं के मुकाबले 50% ज्यादा रासायनिक खाद की जरूरत पड़ेगी, जिससे मिट्टी और पर्यावरण पर बुरा असर हो सकता है।
राज्य की परिस्थितियों के लिए अनुपयुक्त बताई गई किस्में
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) ने पहले ही इन किस्मों — DBW 303, DBW 327, DBW 332, DBW 370, DBW 371 और DBW 372 — को राज्य की परिस्थितियों के लिए अनुपयुक्त बताया है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के मुताबिक, इन किस्मों की पैदावार के लिए ज्यादा यूरिया, डीएपी और ग्रोथ रेगुलेटर की जरूरत पड़ती है। यानी किसान को सामान्य से ज्यादा खाद और दवाओं पर खर्च करना होगा, जिससे खेती की लागत बढ़ जाएगी।
पंजाब ने ICAR से मांगा स्पष्टीकरण
पंजाब स्टेट सीड्स कॉर्पोरेशन (PunSeed) की एमडी शैलेन्द्र कौर ने ICAR से इस मामले में तुरंत दिशा-निर्देश और स्पष्टीकरण मांगा है। उन्होंने कहा कि राज्य को किसानों के लिए बीज वितरण की तैयारी करनी है, और ये बीज राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) व राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के तहत सब्सिडी में दिए जाएंगे। इसलिए किसी भी भ्रम से पहले स्थिति साफ होना जरूरी है।
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पर्यावरण और लागत दोनों पर खतरा
PAU ने चेतावनी दी है कि ज्यादा रासायनिक खाद और फफूंदनाशक के प्रयोग से मिट्टी की सेहत बिगड़ सकती है। साथ ही किसानों की लागत भी बढ़ेगी। विश्वविद्यालय ने साफ कहा है कि वह इन किस्मों की खेती की सिफारिश नहीं करता, क्योंकि ये पर्यावरणीय दृष्टि से भी ठीक नहीं हैं।
ICAR का पक्ष
वहीं ICAR का कहना है कि इन नई किस्मों की पैदावार 7.5 से 8 टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है, जो पुरानी किस्मों से काफी ज्यादा है। इसलिए इनके लिए थोड़ी ज्यादा खाद की जरूरत पड़ती है। संस्थान का मानना है कि अगर किसान ज्यादा उत्पादन चाहते हैं, तो उन्हें इन नई किस्मों को अपनाने का विकल्प दिया जाना चाहिए।
पंजाब की अपनी किस्म
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने अपनी खुद की एक किस्म PBW 872 विकसित की है, जो उच्च उपज देने के साथ-साथ रोग-प्रतिरोधी भी है। यह गेहूं चपाती बनाने के लिए उपयुक्त है और लगभग 9 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन दे सकता है। यह किस्म किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
यह विवाद सिर्फ गेहूं की नई किस्मों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि भारत को खेती में उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए या टिकाऊ खेती पर। पंजाब में पहले से ही मिट्टी की उर्वरता घट रही है और पानी का स्तर नीचे जा रहा है। ऐसे में राज्य सरकार का कहना है कि भविष्य “कम लागत, अधिक मुनाफे वाली खेती” में है, न कि “ज्यादा खाद, ज्यादा पैदावार” वाली खेती में।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।