मंदसौर, मध्यप्रदेश से अशोक परमार और लातूर, महाराष्ट्र से सिद्धनाथ माने की रिपोर्ट
मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र दो ऐसे राज्य हैं जो देश भर के सोयाबीन उत्पादन में सबसे ज्यादा योगदान करते हैं. इसके बाद आता है राजस्थान. आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात भी ज्यादा सोयाबीन उत्पादन करने वाले राज्यों की सूची में हैं लेकिन सबसे ज्यादा उत्पादन मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में ही होता है.
हालांकि इन दिनों इन दोनों राज्यों में सोयाबीन के किसान भयंकर संकट से गुजर रहे हैं. साल दर साल सोयाबीन के घटते दाम ने किसानों को पहले ही तंग कर रखा था और अब इल्ली नाम के कीड़ों ने सोयाबीन की फसल बर्बाद करनी शुरू कर दी है, चिंता यह है कि किसानों के पास इसका कोई हल भी नहीं है.
मध्यप्रदेश के मंदसौर के किसान विनोद पाटीदार न्यूज़ पोटली से बातचीत में बताते हैं
“इल्ली का प्रकोप सोयाबीन की फसल में इस हद तक हो चुका है कि अब कोई चारा नहीं बचा. कोई भी दवाई डाल लें हम लोग, सोयाबीन की फसल से इल्ली जाती ही नहीं. यही वजह है कि सोयाबीन का उत्पादन घटा है”
यहीं की महिला किसान कविता ने बताया कि
“सोयाबीन पर लगी इल्ली का प्रकोप इस हद तक है कि दवा का छिड़काव करने के बाद भी इल्लियाँ फसल से जा नहीं रहीं. कुछ भी कर लो सोयाबीन का नुकसान तय है, इस वजह से भी किसान लाचार है और फसल में नुकसान लगातार हो रहा है”
फसल में कीटों का खतरा और फिर इन सबसे लड़ते- भिड़ते जो भी उत्पादन हो उसे भी सही कीमत ना मिले तो? सोयाबीन किसानों के साथ यही हो रहा है,मंदसौर के युवा किसान नवीन सिंह न्यूज़ पोटली से बातचीत में कहते हैं
पहले तो फसल कीड़ों से नहीं बच रही और अगर बच जा रही है तो सोयाबीन के दाम नहीं मिल रहे. हम लोग घाटा उठाकर अपनी फसल बेचने को मजबूर हैं. इससे तो अच्छा यही होगा कि हम सोयाबीन की खेती ही ना करें। ऐसी फसल की खेती का क्या फायदा जब ना मुनाफा मिल रहा है और ना ही मन लायक उत्पादन है”
न्यूज पोटली से बातचीत में सोयाबीन की खेती में फायदा कितना है, इस सवाल के जवाब में मंदसौर के ही किसान शांतिलाल कहते हैं
“फ़ायदा की बात आप क्या कर रहे हैं? लागत तक नहीं निकल रही। 6000 प्रति क्विंटल सोयाबीन का दाम होना चाहिए,तब जा के सोयाबीन किसान खुश रहेगा। यही हमारी मांग है।”
केंद्र सरकार का कहना है कि दस साल में सोयाबीन की एमएसपी में करीब 91 परसेंट का इजाफा हुआ है. लेकिन मंदसौर के किसानों का कहना है कि दस साल से सोयाबीन के दाम जस के तस हैं. भले ही बीज- खाद के दाम आसमान पर हों . किसान भंवर सिंह कहते हैं
“4200 रुपए क्विंटल सोयाबीन बिक रही है. इससे क्या होने वाला है. आप ये समझिए कि हम लोग घाटा उठा कर खेती कर रहे हैं. सरकार हमारी बात सुने और सोयाबीन की एमएसपी तय करे.”
महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में सोयाबीन किसानों की में इन्हीं समस्याओं को लेकर किसान नेता भी मुखर हो चुके हैं.
किसान संघर्ष समिति, महाराष्ट्र के स्टेट कोऑडिनेटर डॉक्टर अजीत नवले कहते हैं
“3000-4000 रुपए प्रति क्विंटल सोयाबीन अगर बिकेगी तो इसमें किसानों का फायदा क्या है? किसान इसीलिए नाराज़ हैं कि एक ऐसा रेट तय हो जिसपर बिक्री से किसानों को भी फायदा हो. कई बार तो किसान को लागत से भी कम दाम में अपनी फसल बेचनी पड़ रही है”
बीघा का खर्च और उत्पादन का गणितः
- बीज का खर्च: एक बीघा में 20 किलो सोयाबीन के बीज की लागत 1500 से 2000 रुपये तक होती है।
- भूमि की तैयारी: खेत की दो बार जुताई के लिए 450 प्रति बीघा के हिसाब से कुल खर्च 900 रुपये आता है।
- बोवनी: एक बार बोवनी का खर्च 450 रुपये है।
- रासायनिक दवाईः खरपतवार नाशक पर 800 रुपये, कीटनाशक पर 3000 रुपये, और फफूंदनाशक पर 800 रुपये खर्च होता है।
- मजदूरी: एक बार की निराई का खर्च 350 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से होता है।
- कटाई: सोयाबीन की कटाई का खर्च 1100 रुपये प्रति बीघा है।
- मंडी और परिवहनः मंडी शुल्क और बोरियों का खर्च 100 रुपये, जबकि डीजल खर्च 1000 रुपये तक आता है।
दुनिया भर में सोयाबीन उत्पादन में भारत पांचवें स्थान पर है.
भारत के इस स्थान में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र समेत देशभर के किसानों की जरूरी भूमिका है. सवाल ये है कि किसानों की यही स्थिति रही तो क्या भारत दुनिया के सोयाबीन उत्पादन में अपने इस स्थान को बरकरार रख सकेगा? जवाब है नहीं. कृषि क्षेत्र से जुडे जिम्मेदारों को किसानों की इस समस्या का हल ढूँढना ही होगा. सोयाबीन किसान भी यही उम्मीद कर रहे हैं.
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