अनार की खेती में इन बातों का ध्यान रखना जरूरी

अनार की खेती के लिए जलवायु, मिट्टी, सिंचाई, किस्में, उर्वरक या खाद, पौधों की संख्या से जुड़ी जानकारी।

अनार एक ऐसा फल है जिसकी पूरे साल मांग रहती है। और जिस चीज की पूरे साल मांग रहती है उसके रेट भी हमेशा अच्छे ही रहते हैं। सेहत से भरपूर इस फल की खेती करने वाले किसानों को अच्छा मुनाफा होता है। महाराष्ट्र और राजस्थान के प्रगतिशील किसानों के मुताबिक अच्छी खेती करने वाले किसान एक एकड़ में 100 टन तक उत्पादन लेते हैं, जिससे उन्हें 5 लाख से 10 लाख रुपए प्रति एकड़ तक की कमाई हो जाती है।

अनार की खूबियां
किसान भाइयों अनार का पौधा एक बार लगाने पर 25 साल तक फल देता है। यानि इसकी खेती में पहले साल लागत आती है, उसके बाद मुनाफा ही मुनाफा। पोषक तत्वों से भरपूर अनार में मुख्य रूप से विटामिन ए, सी, ई, फोलिक एसिड और एंटी ऑक्सीडेंट पाये जाते है। इसके अलावा, एंटी-ऑक्सीनडेंट भी इस फल में बहुतायत में होता है।

इन राज्यों में होती है खेती
भारत में करीब 280 से 282 लाख हेक्टेयर में अनार की खेती होती है। अनार की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में कुछ किसान अनार के बाग लगाने लगे हैं। महाराष्ट्र और कर्नाटक में अनार के पूरे साल फल मिलते हैं।

अनार की प्रमुख किस्में
फुले भगवा, सुपर भगवा, ज्योति, मृदुला, गणेश, अरक्ता, कांधारी, जोधपुर रेड, सिंदूरी, आलंदी, ढोकला, काबुल, स्पैनिश रुबी, रुबी, आईआईएचर सेलेक्शन समेत अनार की कई किस्मों की भारत में खेती होती है। आप अपनी जलवायु के मुताबिक पौधे का चयन करें। ये जरुर है कि पौधा हर हाल में सही जगह से और रोक मुक्त लें क्योंकि अनार में एक बार रोग आ गया तो पौध को बचाना मुश्किल हो जाता है।

अनार की किस्मों की विस्तार में जानकारी

फुले सुपर भगवा-

  • मौजूदा समय में महाराष्ट्र समेत देश के ज्यादातर हिस्सों में सुपर भगवा किस्म की मांग है। साल 2013 में महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ द्वारा विकसित फुले सुपर भगवा को भगवा किस्म का एडवांस रुप में माना जाता है।
  • शुष्क मौसम और कम आद्रता वाले इलाकों में ये किस्म  22.65 टन प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन देती है।
  • फल मध्यम आकार के चमकदार और और गहरे केसरिया रंग के होते हैं।
  • छिलका मोटा और फलों में कापी रस होता है।
  • 176 दिन में तैयार होने वाली इस किस्म परिपक्क पौधा 30 किलो से ज्याद की उपज देता है।

फुले भगवा-

  • इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके फल कम फटते हैं।
  • महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ राहुरी द्वारा विकसित फुले भगवा सबसे प्रचलित अनार की किस्म है।
  • इसके फल भगवा रंग के चमकदार और बड़े आकार के होते हैं।
  • जिन्हें विदेश में पसंद किया जाता है।
  • बीज मुलायम होते हैं और अच्छे से प्रबंधन करने पर हर पौधे से करीब 40 से 50 किलोग्राम उपज प्राप्त की जा सकती है।

ज्योति-

  • इसके फल मध्यम से बड़े आकार होते हैं।
  • छिलके की चिकनी सतह और पीलापन लिए हुए लाल रंग के होते हैं।
  • खाने में बहुत मीठा होता है।

मृदुला-

  • फुले विद्यापीठ द्वारा विकसित इस किस्म के फल मध्यम आकार के चिकनी सतह वाले गहरे लाल रंग के होते हैं।
  • गहरे लाल रंग के बीज मुलायम, रसदार और मीठे होते हैं।
  • इस किस्म के फलों का औसत वजन 250-300 ग्राम होता है।

अरक्ता-

  • फुले विद्दापीठ द्वारा 2003 में इस किस्म को विकसित किया गया।
  • इसका औसत उत्पादन 22 टन प्रति हेक्टेयर है।
  • इसके फल बड़े आकार के, मीठे, मुलायम बीजों वाले होते हैं।
  • एरिल लाल रंग के और छिल्का आकर्षक लाल रंग का होता है।

कंधारी-

  • इसका फल बड़ा होता है।
  • इसमें अधिक रसीला होता है।
  • इसके बीज थोड़े से सख्त होते हैं।

गणेश-

  • इस किस्म को वर्ष 1936 में विकसित किया गया था।
  • इस किस्म के एक फल का वजन 200 से 300 ग्राम होता है।
  • खाने में मीठे, रसदार और स्वादिष्ट इसके दानों का रंग हल्का गुलाबी होता है।
  • प्रति पौधा 8 से 12 किलोग्राम फल की प्राप्ति होती है।

भगवा-

  • यह देखने में बहुत आकर्षक और चमकदार होता है।
  • इसके बीज लाल , नरम और मीठे होते हैं।
  • प्रत्येक फल का वजन 250 से 300 ग्राम होता है।
  • निर्यात की दृष्टि से यह बेहतरीन किस्म है।

जोधपुर रेड-

  • अनार की किस्म जोधपुर रेड की खेती मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में की जाती है। अन्य किस्मों की तुलना में इस किस्म के पौधे बड़े होते हैं।
  • साथ ही फलों में फटने की समस्या भी कम होती है।
  • दानों में 60 से 65 प्रतिशत रस भरे होते हैं।

आरक्ता-

  • इस किस्म के फलों का आकर बड़ा होता है।
  • इसके दाने मुलायम, लाल और मीठे होते हैं।
  • फलों की पैदावार 30 से 35 किलोग्राम प्रति पौधा होती है। 

सिंदूरी-

  • इस किस्म को वर्ष 2008-09 में विकसित किया गया।
  • इसकी विशेषता है कि पौधे 3 वर्ष के होने के बाद फल लगना शुरू हो जाता है।
  • इसके फल देखने में जितने आकर्षक होते हैं।  
  • खाने में उतने ही स्वादिष्ट भी होते हैं।

अनार की खेती के लिए जलवायु

  • अनार उपोष्ण जलवायु का पौधा है।
  • यह अर्ध शुष्क जलवायु में अच्छे से फलता-फूलता है।
  • यह गर्म, शुष्क गर्मी और ठंडी सर्दियों में अच्छी तरह से पनपता है बशर्ते सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो।
  • इसके फलों के विकास व पकने के समय गर्म और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। फल के विकास के लिए 38 डिग्री सेल्सियस के आसपास का तापमान सही होता है।
  • अनार का पेड़ कम सर्दियों के तापमान वाले क्षेत्रों में पर्णपाती होता है। और उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय स्थितियों में सदाबहार या आंशिक रूप से पर्णपाती होता है।
  • सुप्त अवस्था में यह काफी हद तक पाले को सहन कर सकता है, लेकिन बहुत कम तापमान पौध खराब हो सकती है।

अनार की खेती के लिए मिट्टी
अनार किसी तरह की मिट्टी में हो सकता है लेकिन जल निकास वाली रेतीली दोमट मिट्‌टी, जलोढ मिट्टी या फिर रेतीली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। वैज्ञानिकों का मानना है ये हल्की मिट्टी में अपनी सर्वश्रेष्ठ उपज देता है।

पौध कैसे लगाएं

  • अनाज की खेती की खेती के लिए सबसे जरुरी काम है किस्म का चयन फिर पौधे का लगाना है।
  • इसके लिए कलम बांधना, गूटी विधि प्रचलित हैं।
    कलम द्वारा एक साल पुरानी शाखाओं से 20 से 30 सेंटीमीटर लंबी कलम बांधकर, कुछ जड़ें निकलने पर उसे पौधशाला में कोकोपिट या मिट्टी में लगाई जाती है।
  • लगाने से पहले कलम का इन्डोल ब्यूटारिक अम्ल (आई.बी.ए.) 3000 पी.पी.एम. से उपचारित करने पर जड़ों ज्यादा निकलती हैं और अच्छी पौध विकसित होती हैं।
  • जिन्हें जून जुलाई से लेकर अगस्त-सितंबर और फरवरी मार्च में स्थानीय जलवायु और पानी की उपलब्धता के अनुसार लगाना चाहिए।

एक एकड़ में पौधों की संख्या
एक एकड़ में अनार के कितने पौधे लगाए जाने हैं, ये किसान, मिट्टी और जलवायु पर निर्भर करता है।

किसान 250 से लेकर 400 पौधे तक लेते हैं।

किसान और वैज्ञानिक 8 फीट की दूरी से लेकर 12 फीट की दूरी तक पौधे लगाने की सलाह देते हैं।

लेकिन प्रगतिशील किसानों के मुताबिक पौध से पौध की दूरी कम से कम 12 फीट होनी चाहिए। सघन खेती के लिए दूरी घटा भी सकते हैं।

पौधा लगाने से पहले के काम

  • पौध लगाने के करीब एक महीना पहले 60 सेंटीमीटर गहरा, इनता ही गहरा और चौड़ा गड्ढा खोद देना चाहिए।
  • 15 दिन खुला रखने के बाद उसमें 20 किलोग्राम बढ़िया गोबर की सड़ी खाद, एक किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 50 ग्राम क्लोरोपायरीफास मिलाकर भर देना चाहिए। जड़ों में नीम की खली डालना बिल्कुल न भूलें।
  • इसके बाद गड्डों को 15 सेंटीमीटर खाली छोड़कर भर दें और पानी लगा दें।
  • जब मिट्टी जम जाए, गड्ढा समतल हो जाए तो पौध की रोपाई कर दें।

अनार की खेती में कैसे करें सिंचाई?

  • अनार एक शुष्क जलवायु का पौधा है। इसे सिंचाई चाहिए लेकिन जलभराव नहीं।
  • ऐसे में ड्रिप इरीगेशन सबसे बेहतर है।
  • मानसून आने तक हर दिन पानी दे सकते हैं।
  • बरसात के बाद फलों की अच्छी ग्रोथ के लिए 10-12 दिन पर सिंचाई करें।
  • लेकिन सिंचाई का ये अंतराल आपके इलाके जलवायु के लिए हिसाब से कम ज्यादा हो सकता है।

कब बंद करनी चाहिए सिंचाई

जैसा की पहले बताया कि अनार की खेती सालों साल होती है। महाराष्ट्र में इसके फल भी पूरे साल आते हैं। अनार में साल में 3 बार फूल आते हैं। जून-जुलाई जिसे मृग बहार कहते हैं, सितम्बर-अक्टूबर जिसे हस्त बहार कहते हैं और जनवरी-फरवरी जिसे अम्बे बहार) कहा जाता है।

कमर्शियल रुप में सिर्फ एक बार फल लेना चाहिए। आपको कब फल लेना है, ये कंटिंग और सिंचाई पर निर्भर करता है। जिन क्षेत्रों मे सिंचाई की सुविधा नहीं होती है,वहां मृग बहार से फल लिए जाते हैं, तथा जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा होती है वहां फल अम्बे बहार फसल ली जाती है।


अनार की खेती में उर्वरक
अनार की खेती में अच्छा उत्पादन लेने वाले किसानों के मुताबिक अनार के लिए सबसे अच्छी खाद जैविक यानि शेंद्रीय है। अनार को सिर्फ एनपीके से नहीं उगाया जा सकता है, इसे सभी पोषक तत्व चाहिए इसलिए परंपरागत एनपीके के साथ माइक्रोन्यूटेंट भी जरुरी है। खाद की मात्रा पौधे की उम्र और फल लेने के समय पर निर्भर करती है, इसलिए ये जानकारी स्थानीय कृषि वैज्ञानिक या महात्मा फुले विद्यापीठ के वैज्ञानिकों, अपने जिले के केवीके और बागवानी अधिकारों से लें।

सहफसली
अनार के साथ कुछ समय तक सहफसली खेती की जा सकती है। लेकिन सिर्फ वही फसलें उगाएं जो अनार के पौधे से छोटी हों, जैसे सब्जियां और कुछ दलहनी फसलें उगा सकते हैं।

अनार में कीट
अनार के पेड़ और फलों दोनों का कीटों से बचाना चुनौती रहती है। इसमें फल छेदक, मीली बग, एफिड्स, सफेद मक्खी और फल चूसने वाले पतंगे ज्यादातर देखे गए कीट हैं। कीट के संक्रमण के प्रकार के आधार पर डाइमेथोएट, डेल्टामेथ्रिन या मैलाथियान आदि के छिड़काव से ज्यादातर बार सफलता मिलती है।

अनार लगने वाले रोग

  • अनार में मुख्य रुप से लीफ स्पॉट, फ्रूट रॉट रोग देखे जाते हैं।
  • इससे बचाव के लिए बारिश के मौसम में मैंकोजेब (2g./l.) का प्रयोग बचाव करता है।
  • इसके अलावा सिंतबर-अक्टूबर के बाद कार्बेन्डाजिम/थियोफनेट मिथाइल/बायकोर/बेनोमिल (1g./l.) के छिड़काव से फायदा मिलता है।
  • अनार में फल का फटना बड़ी समस्या रहती है।
  • लेकिन किसानों और वैज्ञानिकों के मुताबिक नई किस्में, उचित रखरखाव और पोषण से इस समस्या को दूर किया जा सकता है।

अनार की हार्वेस्टिंग

अनार का पौधा 2 से 4 साल में फल देने लगता है। इसके फल 120 से 180 दिन में तैयार होते है। फल पूरी तरह पकने पर तोड़ लेना चाहिए। इन्हें सही तापमान पर 2 से 10 हफ्तों तक आसानी से स्टोर किया जा सकता है। 2 हफ्ते से ज्यादा के स्टोरेज के लिए 5 डिग्री तापमान की जरुरत होगी।

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