प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 जुलाई 2024 को नई दिल्ली स्थित IARI, पूसा में ICAR द्वारा फसलों की विकसित 109 जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्मों का विमोचन किया। इनमें गन्ने की चार नई जलवायु अनुकूल किस्में भी शामिल हैं। इन नई किस्मों को विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रति सहनशीलता को ध्यान में रखकर विकसित किया गया है। जानिए इन किस्मों की उपज और खासियत के बारे में।
देश का कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन की वजह से पिछले कुछ वर्षों से चुनौतियों का सामना कर रहा है। पिछले कुछ सालों से तापमान में ज़्यादा वृद्धि देखी जा रही है जिसका बुरा असर कृषि क्षेत्र पर पड़ रहा है, ऐसी परिस्थिति में खाद्य और पोषण सुरक्षा भारत के लिए एक अहम मुद्दा है। इसे बनाए रखना महत्वपूर्ण और मुश्किल दोनों ही है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) जलवायु के अनुकूल फसल किस्मों को विकसित करने और उनका प्रसार करने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है। इसी क्रम में 11 जुलाई 2024 को नई दिल्ली स्थित IARI, पूसा में ICAR द्वारा फसलों की विकसित 109 जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्मों का विमोचन किया। इसमें जलवायु परिवर्तन के दौर में गन्ना की फसल पर विपरीत प्रभाव को कम करने के लिए ICAR के संस्थानों ने जलवायु अनुकूल किस्में विकसित की गई हैं। इन फसलों में तापमान और वर्षा में उतार-चढ़ाव के प्रति सहनशीलता अधिक होगी।
देश में गन्ने का उत्पादन बढ़ाने पर ज़ोर दिया जा रहा है क्योंकि अब इसका उपयोग केवल चीनी और गुड़ तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसके इथेनॉल उत्पादन से ईंधन क्षेत्र में भी किया जा रहा है। वर्तमान में गन्ने की किस्म Co 238 की खेती की जा रही है जो कई समस्याओं से ग्रस्त है। ICAR ने कृषि जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त 4 नई गन्ना किस्मों की खोज की है, जिन्हें ICAR के गन्ना अनुसंधान संस्थानों के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है। देखना ये है कि भविष्य में इन किस्मों के प्रयोग से गन्ने के उत्पादन पर क्या फर्क पड़ता है?
गन्ने की ये चार नयी किस्में हैं –
कोलख 16470
यह एक जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्म है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम के लिए उपयुक्त बताया गया है। इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 82.5 टन है और इसमें चीनी की मात्रा 17.37 प्रतिशत है।यह किस्म जलभराव वाले क्षेत्रों के लिए बेहतर है और लाल सड़न और स्मट रोग के प्रति प्रतिरोधी है। यह गन्ने के मुख्य कीटों के हमलों के प्रति कम भी संवेदनशील है।
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कोलख 16202
गन्ने की ये किस्म भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म अगेती है और लगभग 10 महीने में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर 93.2 टन है और चीनी की रिकवरी 17.74 प्रतिशत है। यह सूखे और लाल सड़न के प्रति प्रतिरोधी है। इसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है।
कर्ण-17
ये भी जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त गन्ना की किस्म है। इस किस्म की पैदावार प्रति हेक्टेयर 91.48 टन है और यह 330 से 360 दिन में तैयार हो जाती है। इसमें चीनी की मात्रा 18.38 प्रतिशत है और यह लाल सड़न रोग के प्रति प्रतिरोधी है।यह तना छेदक, स्टलक बोरर और चोटी बेधक कीटों से भी कम प्रभावित होती है। इस किस्म को गन्ना प्रजनन संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र करनाल के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है।यह हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, मध्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
CoPb 99
गन्ने की इस किस्म को पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना के गन्ना शोध केंद्र कपूरथला के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है। यह जल्दी पकने वाली और अधिक उपज देने वाली किस्म है, जिसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है। इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 90.1 टन है और चीनी की मात्रा 18.01 प्रतिशत है। यह तना छेदक और चोटी बेधक कीटों के हमलों के प्रति कम संवेदनशील है और लाल सड़न रोग के प्रति भी प्रतिरोधी है।
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