15-18 रुपए किलो में बिकने वाली मटर किसान मजबूरी में 8-9 रुपए किलो में बेचने पर मजबूर हैं। इस उतार चढ़ाव से किसानों के साथ मजदूर भी प्रभावित हो रहे हैं।
मेघा प्रकाश, उत्तराखंड
रूद्रपुर/जलौनः सर्दियों की लोकप्रिय सब्जी हरी मटर का स्वाद भला किसे पसंद नहीं होगा। लेकिन आपके खाने का जायका बढ़ाने वाली मटर की खेती करने वाले किसानों का बजट गड़बड़ा गया है। उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर और यूपी के रामपुर जिले के हजारों किसान मटर के गिरते भाव से परेशान हैं। किसानों का कहना है कि इस बार मौसम की मेहरबानी से फसल तो अच्छी हुई लेकिन कम रेट के चलते मुनाफा तो दूर लागत तक निकालना मुश्किल है।
न्यूज पोटली से बातचीत के दौरान अहमदाबाद गांव के किसान फरमान अली बताते हैं, “मैं और मेरे भाई मटर की खेती 20-22 साल से कर रहे हैं एक एकड़ में 20 से 25 कुंटल उत्पादन हो जाता है पर इस बार मण्डी में 9 रुपये किलो का रेट मिलने से घाटा हो रहा है।” अली आगे बताते हैं, “कुछ अपनी जमा पूंजी और कुछ आढ़तिया (मंडी एजेंट) से लेकर फसल की बुवाई की थी। अब तो आढ़तिया का 4 लाख रुपये चुका पाना मुश्किल होगा और ये सिर्फ मेरे साथ नहीं, इससे पूरा क्षेत्र प्रभावित है।” फरमान अली रहते तो यूपी में हैं लेकिन उनके खेत उत्तराखंड में हैं। उनके खेत रतनपुरा गांव में हैं जो उत्तराखंड के उधमसिंह नगर जिले के गदरपुर तहसील में आता है।
न्यूज पोटली से बात करते हुई इसी गांव के किसान रईस अहमद के मुताबिक उनकी लागत का लगभग आधा पैसा ही मिल रहा है। वो बताते हैं, “एक एकड़ में 40 हजार रुपये तक की लागत लगी है और भाव चल रहा है 9-10 रुपये, इतने में लागत कैसे निकाल पाएंगे। अभी तक सिर्फ 22 हजार रुपए आए हैं। यानि आधी लागत ही निकला है।’ रईस के मुताबिक मंडी में कम रेट के चलते इस साल मटर की खेती में 50 फीसदी का घाटा है।
मटर की स्टोरी से संबंधित वीडियो यहां देखिए-
उत्तराखंड में रुद्रपुर को हरी मटर की मंडी कहा जाता है। वर्षों से रुद्रपुर के आसपास के सैकड़ों गांवों के किसान रबी के मौसम में हरी मटर की खेती कर रहे हैं। अनुकूल मौसम के चलते यहां समय से पहले मटर आनी होती है, जिससे इन्हें रेट भी अच्छे मिलते थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इन्हें लगातार घाटे का सामना करना पड़ रहा है। पहले कॉविड लॉकडाउन फिर पिछले 2 वर्षों की अतिवृष्टि ने किसानों की कमर तोड़ दी। इस बार मौसम अनुकूल था, पैदावार भी खूब हुई लेकिन 15-18 रुपए किलो में बिकने वाली मटर किसान मजबूरी में 8-9 रुपए किलो में बेचने पर मजबूर हैं।
केंद्रीय एवं किसान कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2020-21 में पूरे देश में 567 हजार हेक्येयर में मटर की खेती हुई थी, जिससे 5846 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था। जबकि दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक 2021-22 में 582 हजार हेक्टेयर में मटर की खेती से 6076 मीट्रिक टन का उत्पादन अनुमानित है। रुद्रपुर और यूपी के रामपुर जिले के आसपास प्रति एकड़ मटर की खेती में बुवाई, तुड़ाई से लेकर मंडी पहुंचाने तक औसतन 20 हजार से 40 हजार रुपए का खर्च आता है। हरी मटर का औसतन 25 से 40 कुंटल प्रति एकड़ का उत्पादन होता है, रेट सही होने पर उन्हें अच्छा मुनाफा भी होता था, लेकिन बदली परिस्थियों में उनकी जमा भी डूब रही है
रुद्रपुर के आसपास के किसान जीएस-10, पीएसएम-3, काशी उदय, अर्किल और आजाद पी-3, पी-6 जैसी किस्मों की खेती करते हैं, क्योंकि यहां पर बड़ी संख्या में हरी मटर की प्रोसेसिंग करने वाली फैक्ट्रियां लगी हैं। इन फैक्ट्रियों की पसंद बड़े दाने वाली मटर है, ऐसे में जीएस-10 परफेक्ट मानी जाती है। किसानों का आरोप है आढ़ती और फैक्ट्रियां, स्थानीय मटर को नजरअंदाज कर यूपी के बुंदेलखंड के जालौन से आने वाली मटर को तवज्जो दे रही हैं, जिससे उन्हें कम रेट पर अपनी फसल बेचनी पड़ रही है। लगातार गिरते रेट के चलते हालात धरना प्रदर्शन तक पहुंच गए थे।
किसानों ने तराई किसान संगठन के नेतृत्व में मंडी के बाहर प्रदर्शन भी किया। तराई किसान संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष तजिंदर सिंह विर्क ने कहा 6 फरवरी को धरने के दौरान कहा था, ” मटर में लूट हो रही है। अगर स्थानीय किसानों को सही रेट नहीं मिला तो मटर की फैक्ट्रियों के बाहर भी धरना दिया जाएगा।” उन्होंने स्थानीय किसानों के मटर न तोड़ने की अपील भी की थी। हालांकि 6 फरवरी को ही किसान संगठन, मंडी सचिव और एसडीएम के बीच हुई वार्ता के बाद धरना खत्म कर दिया गया। किसानों से 11.15 पैसे प्रति किलों के हिसाब मटर खरीदी की बात तय हुई थी। किसानों संगठनों ने चेतावनी दी थी अगर समझौते के मुताबिक खरीद नहीं हुई तो वो दोबारा प्रदर्शन करेंगे।
अपने साथी मंगत सिंह के साथ 80 एकड़ में मटर की खेती करने वाले अबरार हुसैन ने मटर की तीन उन्नत किस्मों उगाई थी, उन्हें भी इस बार भारी घाटा हुआ है। किसानों के साथ मटर तोड़ने वाले मजदूर और मटर की ढुलाई करने वाले ट्रैक्टर ट्राली ड्राइवर भी परेशान हैं। अबरार हुसैन की मटर लेकर नजदीकी बिलासपुर मंडी जा रहे एक ट्राली ड्राइवर ने कहा, “मटर का रेट कम होने से हमने अपने रेट भी कर कर दिए हैं, बोरे मुफ्त में लोड कर रहे हैं।’
मटर को तोड़ने का ज्यादातर काम मजदूरी या ठेके पर महिलाएं करती हैं, उनके लिए भी ये सीजन नुकसान देने वाला है। न्यूज पोटली ने जब खेत में मटर तोड़ रही महिला से बात की उन्होने बताया कि वो मटर तोड़ने का काम 20 साल से कर रही हैं और यहीं अहमदाबाद में ही रहती हैं। जब बच्चे साथ लाने का कारण पूछा गया तो वो कहती हैं कि उन्हे एक बोरी का 60 रुपये मिलता है इनके साथ आने से थोड़ा ज्यादा काम हो जाता है और दिन में 200 रुपये तक मिल जाते हैं। स्कूल कैसे भेजे जब इनका पेट ही नहीं भर रहा है।
रुद्रपुर के आसपास के किसानों की बड़ी समस्या जलवायु परिवर्तन भी है, मौसम के जानकारों के मुताबिक इस इलाके में पिछले कुछ वर्षों में बारिश का पैटर्न बदला है। कम पानी की जरुरत वाली मटर जैसी फसलों के लिए ज्यादा बारिश और खेत में लंबी नमी दोनों नुकसानदायक हैं। किसानों का कहना है रुद्रपुर को फ्रोजन मटर का हब बनाने के लिए सरकार कंपनियों को भारी सब्सिडी दे रही है, लेकिन उनकी तरफ से मुंह मोड़े हैं… जिस तरह से किसानों का घाटा हो रहा है, उन्हें मटर की खेती ही छोड़नी न पड़ जाए।
समस्या जालौन के किसानों के साथ भी है। बुंदेलखड के किसानों के मुताबिक सितंबर-अक्टूबर की बारिश ने इस बार उन्हें काफी नुकसान पहुंचाया है. जिससे एक तरफ वो जहां अगैती मटर बो नहीं सके, वहीं देरी के चलते मटर काटकर जिस साठा गेहूं यानि 60 दिन में तैयार होने वाले गेहूं की खेती करते थे, उसका भी समय निकल गया।