एनडीडीबी (राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड) 6 राज्यों गुजरात, गोवा, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा और बिहार में 15 बड़े बायोगैस प्लांट लगाने जा रहा है। इन पर 750 करोड़ रुपये खर्च होंगे। किसान अपना गोबर इन प्लांट्स को देंगे और इसके बदले उन्हें प्रति किलो 1 रुपये तक मिलेगा। हर प्लांट रोज 100 टन गोबर से गैस बनाएगा, जिसे बायो-CNG और अन्य ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।
अब गांवों में सड़ते हुए गोबर के ढेर कम होते नजर आएंगे। नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) ने गोबर से ऊर्जा बनाने की बड़ी योजना शुरू की है। इसके तहत 6 राज्यों गुजरात, गोवा, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा और बिहार में 15 बड़े बायोगैस (CBG) प्लांट लगाए जाएंगे। इन प्लांट्स पर लगभग 750 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
प्रति किलो 1 रुपये तक का होगा भुगतान
योजना के मुताबिक, किसानों से रोजाना करीब 1,500 टन गोबर लिया जाएगा और उन्हें इसके लिए प्रति किलो 1 रुपये तक दिया जाएगा। इससे किसानों की अतिरिक्त आय होगी, गांवों की साफ-सफाई सुधरेगी और गोबर से निकलने वाली बदबू की समस्या भी खत्म होगी। सबसे खास बात यह है कि गोबर को अब कचरा नहीं बल्कि कमाई का जरिया बनाया जाएगा।
गोबर का इस्तेमाल बायोगैस बनाने में होगा
अभी भी गुजरात के बनासकांठा और यूपी के वाराणसी जैसे इलाकों में किसान रोज सुबह अपना गोबर डेयरी तक पहुंचा रहे हैं। वहां से यह गोबर बायोगैस प्लांट में जाता है, जो हर दिन हजारों क्यूबिक मीटर गैस बनाता है। इस गैस को साफ करके “बायो-CNG” के रूप में बेचा जाएगा, जिसे गाड़ियों में ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जा सकेगा। कुछ प्लांट ऐसे भी होंगे जहां गैस को सीधे खाना पकाने और औद्योगिक कामों के लिए उपयोग किया जाएगा।
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NDDB और डेयरी साथ मिलकर करेंगे ये काम
एनडीडीबी ने अमूल डेयरी, डूधसागर डेयरी, बड़ौदा डेयरी और कई अन्य दुग्ध संघों के साथ मिलकर गुजरात में आठ और प्लांट लगाने की योजना बनाई है। इसी तरह, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा और बिहार में भी डेयरियों के साथ समझौते किए गए हैं। इस परियोजना में जापान की सुजुकी कंपनी ने भी निवेश किया है क्योंकि पाया गया है कि गोबर से बनी बायोगैस गाड़ियों के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है।
15 राज्यों में 10,000 छोटे-छोटे बायोगैस प्लांट बनाने की योजना
इसके अलावा, एनडीडीबी और एक NGO ने मिलकर अगले चार सालों में 15 राज्यों में 10,000 छोटे-छोटे बायोगैस प्लांट लगाने की योजना बनाई है। इनसे हर साल लाखों टन जैविक खाद (ऑर्गेनिक स्लरी और PROM) भी बनेगी, जिससे मिट्टी की सेहत सुधरेगी और रासायनिक खाद पर खर्च घटेगा।कुल मिलाकर, यह योजना किसानों की कमाई बढ़ाने, गांवों को साफ रखने और देश को स्वच्छ ऊर्जा देने की दिशा में बड़ा कदम है।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।