रत्नागिरी (महाराष्ट्र)। भारत के किसानों की पहचान अब लंदन तक हो रही हैं। लंदन स्थित संस्था सर्कुलरिटी इनोवेशन हब (सीआईएच) ने महाराष्ट्र के ‘जैकफ्रुट किंग’ कहे जाने वाले मिथिलेश देसाई के साथ करार किया है। यह साझेदारी भारत के भीतर एक सर्कुलर इकोनॉमी इकोसिस्टम विकसित करने के उद्देश्य से बनाया गया है। मिथिलेश देसाई भारत में सीआईएच के ब्रांड एंबेसडर की भूमिका भी निभाएंगे।
माना जा रहा है कि इस साझेदारी से भारत में धारणीय व टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे किसानों का जीवन स्तर भी सुधरेगा। इस साझेदारी की पहली पायलट परियोजना महाराष्ट्र रत्नागिरी में 1,000 से अधिक किसानों पर शुरू होगी, जिसमें खेती को पर्यावरण के प्रति भी संतुलित बनाने का प्रयास होगा।
मिथिलेश देसाई को 86 अलग-अलग तरह के कटहल के किस्मों को उपजाने के लिए जाना जाता है और इस विलक्षण उपलब्धि ने उन्हें वैश्विक स्तर पर उनको पहचान दिलाई है। कटहल की खेती और धारणीय व टिकाऊ कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उन्हें हाल ही में महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा ‘कृषि गौरव पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।
सीआईएच और मिथिलेश देसाई के बीच हुई यह साझेदारी महाराष्ट्र से शुरू होकर कई भारतीय राज्यों के कृषि परंपराओं में एक आदर्श बदलाव के लिए प्रेरित करेगी। इसके माध्यम से कटहल, काजू, आम जैसी बहु-फल-सब्जी खेती परंपरा को बढ़ावा दिया जाएगा। इससे किसान भी पहले की तुलना में अधिक लाभ पा सकेंगे।
सर्कुलरिटी इनोवेशन हब के संस्थापक जोएल माइकल ने इस साझेदारी और प्रयास के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा, “मिथिलेश देसाई के साथ हमारी साझेदारी भारत में कृषि प्रतिमानों में क्रांति लाने और उन्हें टिकाऊ बनाने की हमारी दृढ़ प्रतिबद्धता का एक उदाहरण है। यह साझेदारी एक पुल के रूप में कार्य करेगी, जिसमें हमारे किसानों को वैश्विक कृषि प्रगति से जोड़ा जा सकेगा। सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल का उपयोग करके हम पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए किसानों की आजीविका को बढ़ाने की इच्छा रखते हैं।”
मिथिलेश देसाई ने इस साझेदारी पर अपने विचार रखते हुए कहा, “मैं भारत में ग्रामीण किसानों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों की गहराई से परिचित हूं। हम भारतीय किसान केवल ऑनलाइन मीडिया और साझेदारी के माध्यम से खेती की प्रौद्योगिकियों से अवगत होते हैं, सीआईएच अब इसे व्यवहारिक रूप से अमल में लाएगा। हमने सीआईएच के सहयोग से एक पांच साल की योजना तैयार की है, जिसमें फसल की उपज में वृद्धि और रीसाइक्लिंग से फ्लेक्स-ईंधन या जैव-ईंधन का उत्पादन शामिल है। हमारी योजना टिकाऊ व धारणीय खेती से आगे की है, जिसमें किसानों का कल्याण और पर्यावरणीय संतुलन भी शामिल है।”
इस साझेदारी का एक नमूना रत्नागिरी के एक स्थानीयकृत केंद्र की स्थापना में देखा जा सकता है, जो कृषि अवशेषों से प्राप्त इथनॉल के अग्रणी उत्पादन के लिए समर्पित है। यह अग्रणी पहल अपशिष्ट प्रबंधन की समस्याओं से निपटती है और साथ ही वैश्विक जलवायु लचीलापन उद्देश्यों के साथ सहजता से मेल खाते हुए जैव ईंधन विकल्पों की खोज को आगे बढ़ाती है।