‘विकसित भारत, विकसित खेती के बिना संभव नहीं’- शिवराज सिंह चौहान

‘एक जमाना था, जब हम अमेरिका का सड़ा हुआ पीएल 480 गेहूं मंगवाते थे, पेट भरने के लिए रिजेक्टेड गेहूं मंगाना पड़ता था, लेकिन मैं अपने वैज्ञानिकों को बधाई देता हूं कि, आज हम एक के बाद एक नई किस्में तैयार कर रहे हैं। नए गेहूं की किस्म तैयार करने के प्रयोग हो रहे हैं।’ आईसीएआर- भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान में जीन एडिटिंग प्रयोगशाला का उद्घाटन में बोले केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान।

उन्होंने कहा कि आज भारत गेहूं के उत्पादन में चीन के बाद दूसरे नंबर पर हैं। हम अपना ही नहीं दुनिया के अन्य देशों का भी पेट भर रहे हैं। हमारा शरबती गेहूं आज दुनिया में धूम मचा रहा है। हमारे अन्न के भंडार भरे हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त अनाज मिल रहा है। किसान अन्नदाता हैं, अन्न जीवन देता है तो किसान जीवनदाता भी हैं। किसान की सेवा ही मेरे लिए भगवान की पूजा है। मंत्री ने 22 अप्रैल को हरियाणा के करनाल में आईसीएआर- भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान में जीन एडिटिंग प्रयोगशाला का उद्घाटन किया और किसानों से संवाद भी किया। केंद्रीय मंत्री ने इस अवसर पर रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन के लिए किसानों और वैज्ञानिकों के योगदान की सराहना की, वहीं भविष्य के प्रमुख शोध क्षेत्रों पर भी जोर दिया।

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विकसित भारत, विकसित खेती के बिना संभव नहीं
मंत्री ने कहा कि लगातार कोशिश यही है कि कैसे कृषि के क्षेत्र में और बेहतर करें। उन्होंने कहा कि, विकसित भारत, विकसित खेती के बिना संभव नहीं है और समृद्धि का मार्ग यही है। कृषि के लिए हमारी 6 सूत्रीय रणनीति है, पहला उत्पादन बढ़ाना, दूसरा उत्पादन की लागत घटाना, तीसरा फसलों के ठीक दाम, चौथा नुकसान की भरपाई, पांचवा खेती का विविधिकरण और छठा प्राकृतिक खेती। शिवराज सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के खतरे के बावजूद हमने 25 प्रतिशत उत्पादन बढ़ाया है।

इस अवसर पर किसानों ने भी प्रसन्नता व्यक्त की और बताया कि रोग प्रतिरोधी किस्मों के उपयोग के कारण उन्हें कवकनाशकों के छिड़काव की कमोबेश जरूरत नहीं पड़ी। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक डॉ. रतन तिवारी ने संस्थान में चल रहे विभिन्न अनुसंधान, समन्वय और शिक्षण कार्यक्रमों के बारे में जानकारी दी तथा हितधारकों और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए भविष्य की कार्ययोजना पर भी प्रकाश डाला।

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