ब्रीफ- क्या आप मेंथा लगा चुके हैं, या फिर रोपाई करने की तैयारी करने वाले हैं? अगर आप गेहूं काटकर मेंथा लगाएंगे तो पौधे से पौधे के बीच की दूरी कितनी होनी चाहिए, कौन सी खाद फसल में डालनी चाहिए, पूरी जानकारी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। मेंथा या पिपरमिंट हजारों किसानों के लिए नगदी फसल है। आप के टूथपेस्ट और ठंडा-ठंडा कूल-कूल का अहसास करने वाले तेलों में ठंडक भी इसी मेंथा ऑयल से आती है। देश में मेंथा की सबसे ज्यादा खेती यूपी में होती है और इसकी रोपाई का सही समय फरवरी से लेकर अप्रैल तक है। मेंथा की नई किस्में, खेती की उन्नत तकनीक की खोज करने वाले संस्थान सीमैप के वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक अगर किसान कुछ बातों का ध्यान रखें तो मेंथा 3 महीने में ही बहुत अच्छी कमाई हो सकती है।
सिम उन्नत का जलवा
सीमैप के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राजेश कुमार वर्मा के मुताबिक मेंथा की खेती करने वाले ज्यादातर किसान “सिम उन्नत किस्म” की रोपाई करते हैं। डॉ. राजेश वर्मा कहते हैं, “प्रदेश (यूपी) के लगभग 90 % किसान सिम उन्नत किस्म की खेती करते हैं। क्योंकि इसमें तेल ज्यादा निकलती है।” रोपाई करते समय लाइन की लाइन से दूरी 2 फीट रखनी चाहिए।
गेहूं की कटाई करके लगाएं ये किस्में
सिम उन्नत के अलावा कोशी, सिम क्रांति की भी बड़े पैमाने पर खेती होती है। डॉ. वर्मा के किसानों को सलाह देते हैं कि जो किसान गेहूं की कटाई करके मेंथा की खेती करना चाहते हैं वे कोशी किस्म,सिम क्रांति किस्म का चुनाव करें। गेहूं के खेत अप्रैल महीने में खाली होता है ऐसे में किसानों को इस बात का विशेष ध्यान रखें कि लाइन की लाइन से दूरी 1.5 फीट रखनी चाहिए व पौधे से पौधे की दूरी 12 से 15 सेमी रखनी चाहिए। अप्रैल के महीने में मेंथा की फसल लगाने से फसल को समय कम मिलता है ऐसे में पौधे कम दूरी पर लगाने चाहिए।
नाली विधि (रेज्ड बेड) की खेती
ज्यादातर किसान मेंथा की खेती समतल जमीन पर करते हैं, लेकिन अगर वो अपनी खेती के तरीके में थोड़ा बदलाव कर दें तो कम लागत, कम सिंचाई में ज्यादा उत्पादन मिलेगा। सीमैप के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राजेश वर्मा कहते हैं, “मेंथा या मिंट की खेती रेज्ड बेड (नालियां बनाकर) विधि से करनी चाहिए। ऐसे में उत्पादन क्षमता 20 से 30 प्रतिशत बढ़ जाती है। इस किस्म में दूसरी किस्मों की अपेक्षा पानी कम लगता है। अगर रोपाई मार्च में हो जाती है तो जाती है तो जून तक किसान दो कटाई कटाई कर सकते हैं।”
रेज्ड विधि में लागत कम
रेज्ड या नाली विधि मतलब आलू की बोने की तरह ट्रैक्टर से नालियां बनाई जाएं और उसके ऊपर हिस्से में किनारे पर तैयार पौध की रोपाई की जाए। डॉ. वर्मा कहते हैं, “रेज्ड बेड विधि से मेंथा की ऱोपाई करने पर उर्वरक कम लगता है और पौधों की संख्या भी बढ़ जाती है। इसके अलावा खरपतावर की समस्या भी कम होती है।’ नाली के ऊपर रोपाई का एक फायदा ये भी होता है कि निराई, गुड़ाई का खर्च बच जाता है, साथी सिंचाई, उर्वरक या कीटनाशक का छिड़काव करने के दौरान पौधों को नुकसान नहीं होता है।
गोबर या वर्मी कंपोस्ट जरुर डालें
खेत में गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालने से रासायनिक उर्वरक की मात्रा में 25 से 50% तक कम की जा सकती है।
ज्यादा तेल के जरुर डालें जिंक और सल्फर
डॉ. राजेश वर्मा कहते हैं, “मेंथा की फसल में जिंक सल्फेट व आयरन सल्फेट 12 से 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर डालने से 20 से 25 प्रतिशत अधिक तेल निकलता है। जब फसल 45 दिन की हो जाए तो उसमें जिंक सल्फेट 12 से 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें। 60 दिन की फसल होने पर आयरन सल्फेट 12 से 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें। यूरिया,फास्फोरस, पोटैशियम नाइट्रोजन की पर्याप्त में डालें। इससे उत्पादन अच्छा होता है।
गेहूं की कटाई करके लगाएं ये किस्में
जो किसान गेहूं की कटाई करके मेंथा की खेती करना चाहते हैं वे कोशी किस्म,सिम क्रांति किस्म का चुनाव करें। गेहूं की से खेत अप्रैल के महीने में खाली होता है ऐसे में किसानों को इस बात का विशेष ध्यान रखें कि लाइन की लाइन से दूरी 1.5 फीट रखनी चाहिए व पौधे से पौधे की दूरी 12 से 15 सेमी रखनी चाहिए। अप्रैल के महीने में मेंथा की फसल लगाने से फसल को समय कम मिलता है ऐसे में पौधे कम दूरी पर लगाने चाहिए।
मेंथा की जड़ों का शोधन
रोपाई के दौरान अगर मेंथा की जड़ों का शोधन कर दिया जाए तो फसल में रोग लगने की आशंका कम हो जाती है। अंतराष्ट्रीय प्लांट न्यूट्रिशन एक्सपर्ट और मिट्टी विशेषज्ञ डॉ. के.एन तिवारी कहते हैं, अगर रोपाई के दौरान मेंथा की जड़ों का इफको की नैनो डीएपी से पौध शोधन कर दिया जाए तो पौधे कई तरह के रोग से बच जाएंगे और फसल बेहतर होगी। इसके अलावा किसान अगर रोपाई के 15-25 दिनों में फसल के ऊपर नैनो फर्टीलाइजर का छिड़काव करते हैं, पैदावार बढ़ेगी।
शोधन के लिए 5 मिलीलीटर नैनो डीएपी को 1 लीटर पानी की मात्रा डालना है। 15-30 मिनट तक पानी में रहने दे, उसके बाद नर्सरी को निथार (पानी हटाकर) रोपाई करना चाहिए।
मेंथा में सिंचाई
मेंथा एक ज्यादा सिंचाई वाली फसल है। गर्मियों में तापमान बढ़ने पर इसमें 8 से 15 सिंचाई तक करनी पड़ जाती है। सिंचाई की जरुरत खेती की मिट्टी और तापमान पर निर्भर करती है। लेकिन रेज्ड बेड विधि में फसल की हफ्ते में एक दिन सिंचाई करनी चाहिए।
सूक्ष्म सिंचाई- कम लागत में ज्यादा उत्पाद
मेंथा के गढ़ बाराबंकी समेत कई जिलों में किसान पानी बचाने और बेहतर उत्पादन के लिए सूक्ष्म सिंचाई खासकर फव्वारा विधि (मिनी स्प्रिंकलर) का भी इस्तेमाल करने लगे हैं। मेंथा को सिंचाई तो ज्यादा चाहिए लेकिन अगर उसके पौधे पानी में डूबते हैं या जड़ों में ज्यादा दिनों तक पानी रुकता है तो उनके सड़ने का खतरा रहता है। जलभराव के दौरान फसल 1-3 दिन में ही सूख जाती है। ऐसे में फव्वारा या ड्रिप विधि को वैज्ञानिक कारगर मानते हैं।
मेंथा में रोग नियंत्रण
मेंथा भले ही कई रोगों की दवा हो लेकिन इसकी फसल रोगमुक्त नहीं रह पाती है। डॉ. राजेश वर्मा कहते हैं, “मेंथा वाइट फ्लाई, कैटरपिलर जैसे कीट लग जाते हैं ऐसे में खेत को खरपतवार ना होने दें। नीम के तेल का छिड़काव करने से मेंथा के रोग नियंत्रण में काफी मदद मिलती है।” वो आगे कहते हैं, प्रकोप ज्यादा होने पर प्रणालीगत कीटनाशक (Systemic insecticide) का छिड़काव करना चाहिए।
कृषि वैज्ञानिकों और अधिकारियों का मानना है कि मेंथा की फसल में एकीकृत जीवनाशी प्रबंधन (IPM) भी बहुत प्रभावी हैं। उत्तर प्रदेश कृषि विभाग में सहायक निदेशक डॉ. विनय वर्मा कहते हैं, “मेंथा की फसल किसानों को चाहिए वो स्ट्रिकी ट्रैप (नीली-पीली पन्नी) लगाएं। इसके चिपचपे गोंद में चिपके कीटों से पता चलेगा कि आपकी फसल में कैसे कीट आ रहे हैँ। इसके साथ ही लाइट ट्रैप (प्रकाश प्रपंच) खासकर सोलर लाइट ट्रैप बहुत कारगर है। इसके बावजूद अगर कीट का प्रकोप होता है तो 5 ग्राम प्रति लीटर की दर से बिवेरिया बेसियाना (जैव कीटनाशी) का छिड़काव करें।” वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसा करने से रासायनिक कीट का खर्च कम हो जाएगा।
मेंथा की कटाई
मेंथा की कटाई के दौरान बहुत सावधानी रखने की जरुरत होती है। मेंथा ऑयल फसल की पत्तियों में होता है, इसलिए सबसे पहले ध्यान रखना है कि पत्तियां खेत में गिरने न पाएं। मेंथा की कटाई करने के 10 से 15 दिन पूर्व फसल में पानी ना लगाएं। जब पौधे मुरझाने लगें तो कटाई करें। कटाई करने के पश्चात फसल को 12-24 घंटे तक छायादार जगह में सुखाना अच्छा होता है। जब नमी 25 से 30 प्रतिशत कम हो जाए तो उसका आसवन करें।
आसवन टंकी की सावधानियां
इस बात का ध्यान रखें की आसवन टंकी के अंदर किसी तरह का कोई केमिकल न हो। कई किसान लोहे की टंकी को जंग से बचाने के लिए अदर मोबिल ऑयल लगा देते हैं, ऐसा होने पर आप के तेल की शुद्धता कम हो जाएगी और मार्केट में अच्छा रेट नहीं मिलेगा। क्वालिटी को बेहतर बनाने के लिए सीमैप ने स्टेनलेश स्टील की टंकिया भी मार्केट में उतारी हैं।
टंकी का ढक्कन बंद करने से पहले कंडेशर में लगे पाइप को जांच लें। कई बार बंद पाइप होने की वजह से टंकियां फटने के भी हादसे होते हैं। इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण बात ये है कि मेंथा का ऑयल भाप से फिर तरल में बदलता है, जिसके लिए कंडेशनर का ठंडा होना बहुत जरुरी है। तो समय-समय पर कंडेशन के पानी को बदलते रहें। कई किसान पानी को काफी गर्म होने देते हैं, लेकिन इससे तेल के भाप बनकर उड़ने का खतरा रहता है।
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