ओमकार रनाडे महाराष्ट्र में रत्नागिरी में रहते हैं। आम की तीन वरायटी अल्फांसों यानि हापुस, पायरी, और केसर से उनका सालाना टर्नओवर करीब 90 लाख रुपये का है।
ओमकार रनाडे आज देश के उन किसानों में गिने जाते हैं, जो खुद की ब्रांडिंग, मार्केटिंग और आधुनिक तकनीकों के सहारे सफल Agribusiness कर रहे हैं। न्यूज़ पोटली की खास सीरीज ‘तकनीक से तरक्की’ की इस खास कड़ी में जानिए कैसे ओमकार ने बिचौलियों को हटाकर कस्टमर तक सीधे पहुंच बनाकर खेती को एक सफल बिजनेस मॉडल में बदल दिया है।
हापुस आम बना USP
युवा किसान ओमकार महाराष्ट्र के जिस कोंकण रीजन में रहते हैं। वो आमों की बागवानी के लिए जाना जाता है। वहा के अल्फांसों यानि हापुस आम को 2018 से GI टैग मिला हुआ है। हापुस आम अपनी खुशबू, स्वाद और क्वालिटी पूरी दुनिया में मशहूर है। ओमकार इसी खासियत को अपनी USP बनाकर 800-1200 रुपये प्रति दर्जन की दर से आम बेचते हैं। उनकी आम की डिमांड इतनी है कि ग्राहक खुद उनके पास ऑर्डर भेजते हैं।
तकनीक के साथ स्मार्ट मैनेजमेंट
ओमकार गजानंद रनाडे ने मैकेनिकल इंजीनियर में स्नातक करने के बाद ग्रामीण विकास (Rural Development) में MBA किया है। इसके बाद अलग-अलग कंपनियों में काम करके एक्सपीरियंस लिया, फिर विरासत में मिली आम के अपने बिजनेस में आ गए। 720 किमी. क्षेत्र समंदर का तटीय इलाका होने के बावजूद कोंकण में पानी की बड़ी दिक्कत है। पहाड़ी एरिया में खेती होने की वजह से यहां सिंचाई में भी बड़ी दिक्कत आती है। इसके लिए रत्नागिरी के इस किसान ने जैन का ड्रिप इरिगेशन और ऑटोमेटेड फर्टिगेशन सिस्टम लगवा रखा है। कोंकण के इस क्षेत्र में जहां सिंचाई पानी की भारी किल्लत है, वहां ओमकार की यह पहल एक मिसाल है। उनके बाग में हर पेड़ को जरूरत के मुताबिक पानी और खाद मिलती है।

‘मैंगो मूड’ से सीधी सप्लाई, सोशल मीडिया बना जरिया
ओमकार ने अपने आम के बिजनेस को ‘मैंगो मूड‘ नाम से ब्रांड किया है। इस ब्रांड के जरिए वो सोशल मीडिया पर मार्केटिंग कर मुंबई, पुणे, दिल्ली, हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में डोर-टू-डोर सप्लाई करते हैं। इससे बिचौलियों की भूमिका खत्म हो गई है, और उन्हें से सीधा फायदा मिलता है।

रैपनिंग चैंबर से नियंत्रित तरीके से आम की पकाई
फल की क्वालिटी बनाए रखने के लिए ओमकार ने अपनी बाग में ‘मैंगो रैपनिंग चैंबर‘ भी बनाया है, जिसमें आम को नियंत्रित वातावरण में पकाया जाता है। ये तरीका केले की तरह नियंत्रित रैपनिंग प्रक्रिया पर आधारित है, जिससे फल की गुणवत्ता बरकरार रहती है।
परंपरा और आधुनिकता का संगम
ओमकार के पिता ने 1982 में आम की बागवानी शुरू की थी। बचपन से बागवानी के शौकीन ओमकार ने पहले पढ़ाई पूरी की, फिर कुछ वर्षों तक नौकरी करके बिजनेस की बारीकियां सीखीं और उसके बाद खुद का व्यापार संभाला। आज वो सालाना करीब 90 लाख रुपये का टर्नओवर करते हैं।

कामयाबी की कहानी
ओमकार रनाडे की कहानी बताती है कि, अगर इरादा मजबूत हो और तकनीक का सही इस्तेमाल किया जाए, तो किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है। जल संकट वाले कोंकण क्षेत्र में रहकर भी उन्होंने बागवानी को एक नया मुकाम दिया है, और एक रोल मॉडल किसान के रूप में सामने आए हैं।