भोपाल/लखनऊ। किसान इंदल सिंह चौहान ने पिछले साल जिस एक एकड़ खेत में 25 कुंटल गेहूं की पैदावार ली थी, इस बार उसमें 18 कुंटल गेहूं ही हुआ है। इंदल कहते हैं, ” इस साल बारिश कुछ कम हुई, कुएं तक ठीक से नहीं भरे थे, जिससे गेहूं की पैदावार 7-8 कुंटल कम हो गई है।” इंदल मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में रहते हैं।
मध्य प्रदेश में ही रतलाम जिले के किसान अरविंद पाटीदार (29वर्ष) कहते हैं, ” मैंने 12 बीघे में गेहूं की फसल बोई थी। बीते साल एक बीघे में 12 कुंतल के हिसाब से पैदावार हुई थी, लेकिन इस सीजन पैदावार 8 कुंतल प्रति बीघे ही हुई है।” अरविंद न्यूज पोटली को आगे बताते हैं, ” अक्टूबर और नवम्बर के महीने में गर्मी ज्यादा हुई थी, जिसका असर पैदावार पर पड़ा है।” इंदल चौहान और अरविंद पाटीदार की तरह मध्य प्रदेश के दूसरे कई जिलों के किसान बताते हैं कि गेहूं की पैदावार में 20 फीसदी तक कम हो रही है।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के आकड़ों के मुताबिक रबी सीजन 2024-2025 में 19 जनवरी, 2024 तक पूरे देश में 340 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में गेहूं की बुवाई हुई। वहीं अगर सिर्फ मध्य प्रदेश की बात करें तो वर्ष 2020-2021 के दौरान 98,29,649 हेक्टेयर क्षेत्रफल में 3,56,66,888 मीट्रिक टन गेहू का उत्पादन हुआ था। साल 2020-21 के अग्रिम अनुमानों के मुताबिक मध्य प्रदेश गेहूं उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर है।
मौसम और कृषि विशेषज्ञ पैदावार में कमी को जलवायु परिवर्तन के चलते रहो रही चरम घटनाओं को प्रमुख कारण मान रहे। विशेषज्ञों का मानना है कि औसत से कम बारिश, तापमान में उतार-चढ़ाव और कई जगहों पर बेमौसम बारिश से उत्पादन प्रभावित हुआ है।
केएनके कॉलेज ऑफ हॉर्टिकल्चर, मंदसौर के प्रधान वैज्ञानिक राजेन्द्र सिंह चुडांवत न्यूज पोटली को फोन पर बताते हैं, “गेहूं की बढ़वार के समय तापमान में उतार चढ़ाव हुआ, जिसके चलते फसल की ग्रोध अच्छी नहीं हुई। गेहूं की बालियां अच्छी नहीं बनी और दानों में मजबूती नहीं आयी, जिसके चलते गेहूं का उत्पादन 9 से 10 कुंतल प्रति बीघा के बीच ही रह गया।”
आईएमडी की रिपोर्ट के मुताबिक बीता साल 1901 के बाद से अब तक का सबसे गर्म साल रहा। ठंड़ी के मौसम में 0.83 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान में वृद्धि हुई। मानसून के सीजन में तापमान में औसतन 0.74 डिग्री सेंटीग्रेट बढ़ोतरी हुई। बारिश की बात करें तो बीते वर्ष सामान्य वर्षा 95% हुई (ये बारिश दीर्घकालिक थी)। मध्य प्रदेश में बीते वर्ष 945.55 मिमी बारिश हुई जबकि 949.5 मिमी औसत होती है। लेकिन बारिश अंसतुलित होने से कई जिलों में किसानों को इसका वैसा फायदा नहीं मिला।
राजधानी भोपाल में जनवरी के महीने में 10.5 मिमी बारिश हुई। जनवरी के महीने में औसत बारिश 14.7 मिमी होती है। फरवरी में 15.0 मिमी बारिश हुई, ये बारिश औसत से ज्यादा थी, भोपाल में फरवरी में 9.8 मिमी बारिश होती है। मार्च कि बात करें तो 11.9 मिमी बारिश होनी चाहिए जबकि औसत से कम 5.6 मिमी बारिश हुई।
नवंबर की बारिश ने बचाई फसल- किसान
किसान इंदल सिंह चौहान कहते हैं, “नवंबर में अगर बारिश नहीं होती तो इतना भी गेहूं पैदा नहीं होता। प्रतिकूल मौसम के चलते गेहूं के साथ अफीम की फसल भी प्रभावित हुई है।”
हालांकि वो ये भी जोड़ते हैं कि इस बार गेहूं का दाना शानदार निकला है, जबकि पिछले साल जब गेहूं पक रहा था तो बरसात हो गई थी, जिससे दाना सफेद हो गया था।
हालांकि पंजाब हरियाणा और यूपी में हालात दूसरे हैं
पंत नगर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ अशोक भारद्वाज ने बताया पंजाब और हरियाणा में गेहूं की फसल कटने वाली हो गई है। इन दोनों राज्यों का तापमान में ज्यादा अंतर नही होता है और दूसरे राज्यों की अपेक्षा यहां तापमान कम होता है। अभी जो हवाएं चल रहे हैं उससे उत्पादन पर प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि बालियों में दाना पकने लगा है।