मध्यप्रदेश के केले के गढ़ बुरहानपुर के किसान राजेंद्र गंभीर पाटिल हमेशा से केले की खेती करते आ रहे हैं। केले के साथ वो तरबूज की सहफसली खेती भी करते हैं। नई तकनीक से खेती कर रहे इस किसान का टर्नओवर 45-60 लाख रुपये का है।
भारत दुनिया का सबसे ज्यादा केले का उत्पादन करने वाला देश है। आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर केले की खेती की जाती है। इन पाचों राज्यों की भारत के केला उत्पादन में 67% की हिस्सेदारी है। जिसमें सबसे ज्यादा केले का उत्पादन आंध्र प्रदेश में होता है, लेकिन केले का भाव मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले की मंडी में तय होता है। कहा जाता है कि, यहीं तय होता है कि, अगले 2-4 दिन देश में केला कितने रुपये में बिकेगा।

बुरहानपुर जिले के कान्हापुर गांव में रहते हैं, केला किसान राजेंद्र गंभीर पाटिल। मध्य प्रदेश का ये किसान 19 एकड़ में केले की खेती से करीब सालाना 45 लाख रुपये कमाता है। केले को वैसे भी कैश क्रॉप कहा जाता है। 2025 में केले की थोक मार्केट को हटा दें तो पिछले एक दशक में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि, केले की खेती में किसान को नुकसान उठाना पड़ा हो। 2025 में केला किसानों पर पहले आंधी-बारिश की मार पड़ी, फिर रेट ने बहुत नुकसान पहुंचाया। जिसमें उनकी लागत निकालना भी मुश्किल हो गया। राजेंद्र पाटिल कहते हैं, केले की खेती से मुनाफा कमाने का सबसे आसान तरीका है, कि किसान सहफसली खेती करें
“मैं केले के साथ तरबूज की सहफसली खेती करता हूं। 65-70 दिनों में ये फसल पूरी तरह तैयार हो जाती है। एक एकड़ से डेढ़ लाख रुपये तक फायदा हो जाता है। मतलब केले की पूरी लागत इंटरक्रॉपिंग से निकल जाती है, बाकी केला आपका पूरा मुनाफा है।“

कठिन मौसम, लेकिन वैज्ञानिक खेती
राजेंद्र 19 एकड़ में G-9 केला लगाते हैं। उनका मानन है कि, जैन का G-9 केला का वजन और साइज एक बराबर आता है। इसका सबसे बड़ा फायदा ये मिलता है कि, बाकियों के मुकाबले आपका केला ज्यादा अच्छा दाम मिलता है। हालांकि राजेंद्र गंभीर पाटिल जिस जगह पर रहते हैं, वहां की topography खेती के लिए बड़ी चुनौती हैं। यहां बारिश 1200 मिमी. से ज़्यादा, सर्दी 7 डिग्री तक, और गर्मी में पारा 48 डिग्री के पार चला जाता है। राजेंद्र का मानना है कि, इस तरह के हालात में अगर आपको मुनाफे वाली खेती करनी है तो पौधे और बीज से लेकर EQUIPMENTS तक सब Avon Class के होने चाहिए।
“बेड पर मल्चिंग बिछाकर खेती करते हैं तो, पौधे को ज्यादा नुकसान नहीं होता। ठंड में 7 डिग्री तक तापमान चला जाता है, ऐसे में रात में फर्टीगेशन करते हैं, इसके अलावा अलाव जलाते हैं, इससे पौधों को राहत मिलती है, जबकि गर्मी में पूरे खेत पर ऊपर नेट लगवा देते हैं, जिससे सूरज की तेज रौशनी में केले का पौधा झुलसने से बच जाता है।”

खेती तुक्का नहीं विज्ञान है। राजेंद्र इसे बखूबी समझते है। उनका मानना है, अगर किसान साइंस की राह अपनाए तो खेती भी टिकाऊ होगी और ज़िंदगी में भी समृद्धि आएगी।
“अगस्त में प्लांटेशन करते हैं, ड्रिंचिंग करते हैं। उसके बाद से जैन कंपनी के जो फर्टीगेशन के शेड्यूल हैं, वो सारे किए जाते हैं। ड्रिप इरीगेशन का फायदा ये है कि, आपको मजदूरों से राहत मिल जाती है। उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो जाती है। ठंड के वक्त में आपको खेत में जाने की जरूरत नहीं है। ऑटेमेशन लगा दो सारे फर्टीगेशन ऑटोमैटिक छूट जा रहे हैं।”

खेती राजेंद्र को विरासत में मिली, लेकिन पहले परंपरागत खेती होती थी, जिससे बढ़िया आमदनी नहीं थी। राजेंद्र का मानना है कि, आज उन्होंने जो घर-बार बनाया..गाड़ी खरीदी, और बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के साथ ही उनके साथ क्वालिटी टाइम गुजार पा रहे, वो सिर्फ और सिर्फ इस नए जमाने की खेती की वजह से ही है।
“मेरे पिताजी खेती करते थे, उनकी इच्छा थी कि, मैं भी खेती करूं सर्विस नहीं। पिताजी केला कम लगाते थे, क्योंकि उस वक्त ड्रिप इरीगेशन नहीं था। कॉटन और मक्का की खेती ज्यदा करते थे। पिजाती सिर्फ 3-4 हजार पेड़ लगाते थे। आज मैं G9 केला होने के बाद 25 हजार पेड़ लगा रहा हूं। पिजाती की तरह मेरी भी इच्छा है कि, बेटे को मैं बीएससी एग्रीकल्चर या एमएससी एग्रीकलचर कराने के बाद उसे खेती कराऊं। हाइटेक खेती करवाना चाहता हूं। आप सर्विस में हो तो कितने घंटे ड्यूटी करोगे 8 घंटे, खेती को आपको 5 घंटे देना है बस। आप 3 घंटे फ्री हो। ना किसी के अभाव में हो ना किसी के प्रभाव में हो। खेती को आप रोज समय दीजिए तो आपको सर्विस की जरूरत नहीं पड़ेगी।”

अगर आपको भी खेती को कमाई वाला बनाना है.. कमर्शियिल फार्मिंग के जरिए आमदनी बढ़ानी है, नई जमाने के किसानों से मिलना है तो न्यूज पोटली की सीरीज तकनीक से तरक्की जरूर देखिए। राजेंद्र का पूरा वीडियो आप हमारे यूट्यूब चैनल पर जाकर या नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके भी देख सकते हैं।
पूरा वीडियो यहां देखें: