लीची किसानों के लिए बड़ी खबर है. बिहार सरकार कृषि विभाग ने लीची उत्पादक किसानों को स्टिंक बग कीट के प्रति सचेत किया है. कृषि विभाग ने अपनी एडवाइजरी में कहा है कि फलदार वृक्षों में खासकर लीची के पौधों को विशेष देखभाल की जरूरत होती है. लीची में लगने वाले स्टिंक बग कीट बेहद खतरनाक कीट है, जो समय पर नियंत्रण नहीं होने पर भारी नुकसान पहुंचा सकता है. इस कीट का प्रभाव पिछले साल मुजफ्फरपुर और पूर्वी चम्पारण के कुछ प्रखंडों में देखा गया है. इस नुकसान से बचने के लिए किसानों को सही समय पर कीट की पहचान और प्रबंधन करने की सलाह दी गई है.
स्टिंक बग कीट की पहचान
स्टिंक बग कीट का गुलाबी या भूरे रंग का होता है. यह कीट झुंड में हमला करता है. इस कीट के नवजात और वयस्क दोनों ही पौधों के ज्यादातर पौधों के कोमल हिस्सों जैसे कि बढ़ती कलियों, पत्तियों, पत्तीवृत, पुष्पक्रम, विकसित होते फल, फलों के डंठल और लीची के पेड़ की कोमल शाखाओं से रस चूसकर फसल को प्रभावित करते हैं. रस चूसने के कारण फूल और फल काले होकर गिर जाते हैं.
ये भी पढ़ें – किसानों से गांवों में जाकर संवाद करेंगे कृषि वैज्ञानिक- केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह
बचाव के उपाय
थियाक्लोप्रिड 21.7% एस.सी की 0.5 मिली प्रति लीचर + प्रोफेनोफोस 5% एस.सी की 1.5 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल लें. सुबह के समय पेड़ की शाखाओं को हल्के झटकों से हिलाएं, ताकि कीट नीचे गिर जाए. गिरे हुए कीटों को इकट्ठा करके मिट्टी में दबाकर नष्ट कर दें.
थियाक्लोप्रिड 21.7% एस.सी 0.5 मिली प्रति लीटर + लैम्डासायहैलोथ्रिन 5% ई.सी (1.0 मिली प्रति लीटर पानी में घोल लें. थियाक्लोप्रिड 21.7% एस.सी 0.5 की मिली प्रति लीटर + फिप्रोनिल 5% एस.सी की 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोल लें.
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र, मुजफ्फरपुर द्वारा अनुशंसित ऊपर दिए गए किसी भी कीटनाशक संयोजन का दो छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करें.
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।