जानिए कैसे की जाती है अरहर की सिलेक्शन विधि से तैयार देशी प्रजाति की प्राकृतिक जैविक खेती

यह प्रजाति एक बार लगाने पर कई वर्ष तक फल देती है। यह साल में दो बार फल देती है और दोनों कटिंग मिलाकर 8 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ उपज होती है ।
इस प्रजाति को 13 वर्ष पूर्व सागर में तैयार किया गया था और अब तक लगातार इसमें कई सुधार किये गये सागर देशी बीज बैंक में यह प्रजाति संरक्षित है। पिछले 13 वर्षों से देश के कृषकों को बीज की आनुवंशिक शुद्धता और गुणवत्ता बनाये रखने के लिये लगातार निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा हैl अब तक 2 लाख 75 हज़ार से ज़्यादा कृषकों को पूरे देश में बीज उपलब्ध कराया गया है और बीज बनाने के तरीक़े भी बताये गये है।
इसकी फल्ली लंबी 4 से 6 दाने की होती है और दाना बोल्ड बड़ा होता हैl एक एकड़ में एक किलो बीज लगता है व 5*5 फीट के अंतर से लगाना होता है। किसान भाई इसके साथ अन्य फ़सले इंटर क्रॉपिंग और मिक्स प्रणाली से लगा सकते है। इस दाल की प्रजाति में प्रोटीन और फ़ाइबर अधिक होता है जो सेहत के लिए भी लाभकारी है ।

इसको बोने की पूरी जानकारी कुछ इस प्रकार है:

1. भूमि का उपचार-
खेत में बेड बनाने और फसल बोने के पहले मिट्टी को उपचारित करना चाहिए, इससे जमीन के अंदर पहले से मौजूद हानिकारक प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी सामान्य हो जाती है। मिट्टी के उपचार के लिए अगर मिट्टी का PH 6.5 से 7.5 के बीच में है तो 100 किलोग्राम चूना पाऊडर और 50 किलोग्राम नीम का पाऊडर दोनों को आपस में मिलाकर खेत में फैला देना चाहिए और फैलाने के बाद इसकी जुताई करनी चाहिए ताकि यह मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाए। इसे मिट्टी में मिलाने के 10 से 15 दिन के बाद फसल बोना सबसे सही होगा।

2. जैविक खाद एवं मात्रा-
अरहर की खेती जैविक तरीके से करने पर अच्छी उपज के लिए मिट्टी को संतुलित आहार की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति स्व निर्मित जैविक खादों से पूरी की जा सकती है। सर्वप्रथम कम से कम 5 टन प्रति एकड़ पची हुई गोबर की या कचरे की खाद, 1 टन प्रति एकड़ वर्गीफॉस या पची हुई मुर्गी की खाद और 500 किलोग्राम कन्चरा और नमक से बनी हुई खाद में गौकृपा अमृतम जैविक कल्चर मिलाकर नमी युक्त खेत में फैला देना चाहिए और फैलाने के बाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिक्स कर देना चाहिए, घ्यान रहे कि जब आप खाद खेत में डालें तब नमी होना चाहिए। अगर खेत में इनकों मिक्स नहीं कर पाते तो इसे पौधे या बीज लगाते समय बेड पर बिखेर कर मिला देना चाहिए। रोपण के पश्चात हर 20 दिन के अंतराल से मटका खाद देना चाहिए जिसे 20 किलोग्राम देसी गाय के गोबर, 20 लीटर देसी गाय का मूत्र 2 किलोग्राम उड़द की दाल का आटा, 2 किलोग्राम गुड और 2 किलोग्राम सरसों की खली को आपस में मिलाकर एक बर्तन में 5 दिन रखने के बाद कलॉक और एटीक्लॉक घुमाने के पश्चात अधिक पानी में मिलाकर पौधों की जड़ों में देना चाहिए इससे फसल में अच्छी वृद्धि है।

3. खेत की तैयारी-

जब भूमि का उपचार और जैविक खादों का मिश्रण मिट्टी में अच्छी तरह से मिक्स कर दे, तो उसके उपरांत बेड बनाना चाहिएl अरहर की इस प्रजाति के लिए 2 फीट चौड़ा और 1 फीट ऊँचा, बेड बनाते हैं और 3 फीट निकलने का रास्ता छोड़ते है। बेड के टॉप से दूसरे बेड के टॉप की दूरी 5 फीट रखते है, बेड बनाने के लिये बेड मेकर मशीन का भी प्रयोग कर सकतें हैंl. बेड मैन्युअली बनाये या मशीन से वह उल्टा U शेप का होना चाहिए, ताकि बारिश का पानी आसानी से निकल जाए और पौधे को किसी भी प्रकार से प्रभावित न करे।

4. बीज की मात्रा व नर्सरी –

अरहर की इस किस्म को दो तरीके से लगाया जा सकता है, पहला नर्सरी तैयार करकेl इसके लिए 50 किलोग्राम मिट्टी, 50 किलोग्राम गोबर की पची हुई खाद, या केंचुआ खाद, इनमें 1 किलोग्राम चूना पाऊडर और 1 किलोग्राम नीम का पाऊडर सभी को आपस में मिलाकर, 2.5×6 इंच के पॉली बैग में भरके पॉली बैग में 1 से 1.5 इंच की गहराई में बीज डाले। इस विधि में 1 एकड़ में 750 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
दूसरा तरीका सीधा बीज खेत में लगाना जब बीज सीधा खेत में लगाते है तो 2 दाने एक साथ लगाना चाहिए इसकी गहराई 1 से 1.5 इंच रखनी है इस स्थिति में प्रति एकड़ में 1 कोलोग्राम बीज की आवयश्यकता होती है।

5. बीज
उपचार-
सर्वप्रथम बीजों को उपचारित करने से पहले 3 से 4 घंटे बीजों को तेज धूप दिखाए इसके पश्चात 2 लीटर भारतीय गाय का गौमूत्र ताजा या पुराना, 250 ग्राम घनिया पाऊडर, और 250 ग्राम तीखी लाल मिर्च का पाऊडर का घोल बनाकर घोल में बीजों को 10 मिनिट तक डूबा रहने दें, इसके पश्चात बीजों को निकाल कर 10 मिनिट तक छाया में फैलाकर रखें या सुखाए फिर खेत में या नर्सरी में रोपें।

6. लगाने का सही समय और तरीका-

अगर हम इसे नर्सरी में लगाते है तो नर्सरी को माह फरवरी से लेकर मई आखिर तक लगा सकतें है, और 15 जून से 15 जुलाई के बीच में पौधो को खेत में लगा सकतें है, अगर इसे सीधा बीज से लगा रहें है तो 15 जून से 15 जुलाई के बीच में लगाने का सही समय है। खेत में लगाते समय पौधो की दूरी या फिर बीजों से दोनों विधियों में पौधो से पौधो की दूरी 5 फीट रखते है ओर बेड से बेड की दूरी भी 5 फीट रखते है।
अगर इसे सहफसल या अंतरवर्तीय फसल पद्धति से लगाना चाहते है तो पौधे से पौधे की दूरी 4 फीट और बेड से बेड की दूरी 10 फीट रखनी चाहिए।

7. सिंचाई व्यवस्था-

अरहर की इस किस्म को बहुत कम पानी की आवयश्यकता होती है। जब इसे माह जून या जुलाई में लगाते है तो बारिश के समय से सितम्बर माह तक कोई आवश्यकता नही होती है, लेकिन माह अक्टूबर, नवम्बर में 20 दिन के अंतराल में 2 या 3 पानी (सिंचाई) की आवयश्यकता होती है सिंचाई खुली पद्धति से बहा कर भी कर सकते है, तथा इस किस्म के लिये टपक सिंचाई व्यवस्था सर्वोत्तम होती है !

8. खरपतवार प्रबंधन-

बारिश में फसल के साथ खरपतवार भी होती है, पर इसे ऐसे समय पर नियंत्रण न किया गया तो यह फसल को कमजोर कर देती है और इसकी रोकथाम के लिए हमें आकछादन का प्रयोग करना चाहिए। हमारे खेत के आस-पास या खेत की फसल के अवशेष जैसे हल्दी अदरक, अरबी, तिल, मक्का, ज्वार, बाजरा, का पहरा (पराली) इत्यादि का वेस्ट हम पौधा लगाने के तुरंत बाद पौधे के चारों तरफ जमीन को ढक देतें है, जिससे कोई अन्य खरपतवार के पौधे नही उग पाते है ओर बिना किसी खर्चे के हम फसल को खरपतवार से सुरक्षित कर पाते है। इससे न केवल फसल को खरपतवार से सुरक्षा मिलती हैं, बल्कि खेत में नमी पर्याप्त मात्रा में बनी रहती है। और जमीन के अंदर जीवाणु भी बहुत अच्छे से काम कर पाते है।

9. रोग व कीट प्रबंधन-

अरहर की यह किस्म परम्परात जंगली प्रजाति है। जिसे बड़ी दुर्लभता से प्राप्त किया गया है, इस प्रजाति में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत ज्यादा होती है, सामान्य स्थिति में इसमें रोग व बीमारियाँ बहुत कम आती हैं, पर मौसम में बदलाव होने पर कुछ रोकथाम के उपाय करने होंगे, रोगों नियंत्रित करने के लिए सम्पूर्ण आहार दे, व कीट लगने के पूर्व 100 ml. नीम के तेल को 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें, फल्ली लगने पर 120 ml. नीम का तेल और 60 दिन पुरानी देसी गाय की छाँछ, 2 लीटर बाकी 13 लीटर पानी मिलाकर 5 दिन के अंतराल से 2 बार स्प्रे करें, इससे इसमें लगने वाले कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है।

10. फसल कटाई, उत्पादन लागत और मुनाफा-

यह 6.5 माह से 7 माह की फसल है इसकी पहली कटाई पर फली हुई डालियाँ काटी जाती है ओर बाकी का पेड़ छोड़ दिया जाता है। पहली कटाई 15 दिसम्बर से 15 जनवरी के बीच में होती है एवं दूसरी कटाई 15 अप्रैल से 15 मई के बीच में होती है इस समय पौधे को जमीन से 3 से 3.5 फीट ऊँचाई छोडकर सारा काटते है। यह प्रकिया प्रति वर्ष अपनानी होती है। अरहर की इस प्रजाति से दोनों कटिंग पर 8 से 10 क्विटल उत्पादन लिया जा सकता है। इसकी फल्ली लम्बी लाल होती है जिसमें प्रत्येक फल्ली में 4 से 6 दाने होते है एवं दाने का आकार बडा होता है।

लागत इसको लगाने में लागत प्रति एकड लगभग 10 हजार रुपये के आस-पास आती है। सामान्य स्थिति में 10 क्विंटल उत्पादन में सरकारी M.S.P. 9500 रुपये क्विटल के हिसाब से 95 हजार रुपये तक का मुनाफा कमाया जा सकता है। किसान भाइयों की मदद के लिए M.S.P. पर 10 प्रतिशत दाम अधिक देकर आप हमें भी वापिस कर सकतें है। उस स्थिति में यह 1 से 1 लाख 5 हजार रूपये होता है जोकि एक आदर्श स्थिति में बनाया जा सकता है अगर हम इसे प्रोसेस कर दाल बनाकर सीधा बाजार में बेचते है तो यह मुनाफा 2 से 3 गुना तक बढ़ सकता हैl यह फसल उन सभी किसान भाइयों के लिए लाभकारी है जो कृषि में बड़ी लागत और बाजारी व्वयस्था से परेशान है। इस फसल के साथ किसान अपने खर्चे कम करके अपनी आय को 2 से 3 गुना तक बढ़ा सकता है। नोट – यह अरहर की प्रजाति हमारे देसी बीज बैंक में संरक्षित हैं, इसका अंकुरण 80 से 90 प्रतिशत है, इसके बीज सुधार पर लगातार 13 वर्षों से कार्य किया जा रहा है, इसका बीज आप स्वयं भी बना सकतें है, देसी परम्परागत बीजों को फैलाने में व संरक्षित करने में
सहयोग करें यह हमारे किसानों व देश की धरोहर है,

बीज प्राप्त करने हेतु व किसी भी प्रकार की जानकारी हेतु दिये गये मोबाईल
नंबर 9179066275 पर संपर्क करें

                                                                   ये स्टोरी आकाश चौरसिया जी ने लिखी है ।


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Pooja Rai

पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।

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