एक एकड़ खेत में 19.50 क्विंटल अरहर की रिकार्ड पैदावार करने वाले किसान हनुमंत से सीखें खेती का तरीका।

अरहर की खेती

महाराष्ट्र। “सामान्य तरीक़े से खेती करने पर 5 से 6 क्विंटल अरहर की पैदावार होती थी. लेकिन इस बार मैंने खेती का तरीक़ा बदला तो एक एकड़ खेत में 19.50 क्विंटल अरहर का रिकॉर्ड उत्पादन मिला, जो सामान्य से बहुत अधिक है.” ये कहना है सोलापूर, महाराष्ट्र के किसान हनुमंत रोकड़े का.

हनुमंत रोकड़े महाराष्ट्र, सोलापूर के करमाला तालुका के फिसारे गांव के रहने वाले हैं। न्यूज़ पोटली से बात कर हनुमंत ने बताया कि उन्होंने अरहर जैसी सामान्य फसल को यह सोचकर चुना कि इसमें ज्यादा खर्च नहीं आएगा। लेकिन इसके रिकॉर्ड पैदावार ने हनुमंत को ही ख़ास बना दिया. न्यूज़ पोटली ने इनकी ये खबर लोगों तक पहुँचायी तो लोगों ने पहले आश्चर्य किया. फिर विश्वास हुआ तो लोग अब हनुमंत से इसकी खेती का तरीक़ा जानना चाहते हैं.


आपको बता दें कि भारत दुनिया भर में सबसे बड़ा दाल आयातक देश है. लेकिन महाराष्ट्र के युवा किसान हनुमंत रोकड़े ने अरहर का रिकॉर्ड उत्पादन कर ये साबित कर दिया है कि अगर देश के किसान इनके तरीक़े से अरहर और दूसरी दलों की खेती करें तो हमारा देश प्रमुख दाल निर्यातक देश बन सकता है.

Paani Foundation ने कैसे की इनकी मदद
हनुमंत महाराष्ट्र के जिस इलाके से ताल्लुक रखते हैं. पानी फाउंडेशन वहां और उसके आसपास के इलाकों में किसानों के लिए काम करता है. उस इलाके में पानी की बहुत समस्या है. लेकिन आमिर खान की पानी फाउंडेशन ने न सिर्फ वहां पानी की समस्या का समाधान किया है बल्कि वहां के किसानों को कम पानी में खेती कैसे करें ये भी बताया है. इसकी मदद से कम पानी के बावजूद वहाँ के किसान खेती में बहुत कुछ कर रहे हैं. इसके अलावा यह फाउंडेशन पर्यावरण को बचाने के लिए किसानों को प्रेरित भी करता है. वर्तमान में यह फाउंडेशन 46 तालुकाओं में काम कर रहा है. इन्होंने किसानों के 60 ग्रुप बनाए हैं। पानी फाउंडेशन किसानों को ग्रुप फार्मिंग का फ़ायदा और कैसे लागत कम करके ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है. इसकी ट्रेनिंग देती है.

हनुमंत ‘कृषि योद्धा’ समूह के सरपंच
हनुमंत रोकड़े ‘कृषि योद्धा’ नाम के 11 किसानों के समूह के सरपंच हैं. इनके अलावा इस समूह के सदस्य सुनील दौंडे ने 18.60 क्विंटल की जोरदार पैदावार हासिल की है और समूह के बाक़ी लोगों ने भी प्रति एकड़ 15 क्विंटल का रिकॉर्ड उत्पादन लिया है. आपको बता दें कि यह उत्पादन औसत से बहुत ज़्यादा है.


बुआई का तरीक़ा
खेती का तरीक़ा पूछे जाने पर हनुमंत ने बताया

“सबसे पहले हमने मिट्टी की जाँच की. उसके बाद धूप में ट्रैक्टर से जुताई की. फिर खेत में गोबर डाला. उसके बाद बेड बनाकर ड्रिप से सिंचाई की. फिर सीड ट्रीटमेंट कर बीज की मज़दूरों ने अपने हाथों से बुआई की. बुआई के 10 दिनों के बाद नीमार्क का स्प्रे किया. उसके 7 दिनों के बादर दशापनिक अर्क से स्प्रे किया, फिर 7 दिनों के बाद बायोमिक्स का स्प्रे किया. हर 7 दिनों के बाद हम जैविक औषधि का स्प्रे करते थे.”

हनुमंत ने बताया कि बीज बोने के 45 दिनों के बाद पौधे का सेंधा यानी ऊपरी हिस्सा काट दिये, इससे क्या हुआ कि ब्रांचेज और बढ़ गयीं. उन्होंने बताया कि कीट नियंत्रण के लिए हम खेत में लाइव ट्रैप, स्टिकी ट्रैप भी लगाये. पक्षियों के लिए हमने पक्षी थांबे भी लगाये थे. इन सब की सलाह हमें Paani Foundation, कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा दी गई.


हनुमंत ने बताया कि बुवाई के समय बेड से बेड की दूरी 7 फीट और बीज से बीज की दूरी सवा फीट रखनी चाहिए। अच्छी पैदावार के लिए अच्छे बीज का चयन भी जरूरी है। हनुमंत ने वसंतराव नाइक कृषि विश्वविद्यालय की गोदावरी वरायटी का बीज इस्तेमाल किया था.

हनुमंत बताते हैं कि अरहर की बुआई जून महीने में कर देनी चाहिए और इसकी कटाई का समय जनवरी है. लागत की बात करें तो एक एकड़ में 25 हजार से लेकर 40 हजार रुपये तक की लागत आती है, और उत्पादन प्रति एकड़ 19.50 क्विंटल हुआ. उन्होंने बताया कि उनकी पैदावार 8 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक मार्केट में बिक जाता है. इस हिसाब से देंखे तो उनकी एक एकड़ से लगभग 1 लाख 60 हजार रुपये तक की कमाई हो जाती है.

भारत सबसे बड़ा उत्पादक और सबसे बड़ा आयातक भी
आपको बता दें कि PIB के मुताबिक़ भारत विश्व में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक (वैश्विक उत्पादन का 25%), उपभोक्ता (विश्व खपत का 27%) तथा आयातक (14%) है. देश ने वित्त वर्ष 2023-24 में 4.65 मिलियन मीट्रिक टन दालों का आयात किया (जो वर्ष 2022-23 में 2.53 मिलियन टन से अधिक है), जो वर्ष 2018-19 के बाद से सबसे अधिक है. और वर्ष 2023-24 में भारत ने 7.71 लाख टन तुअर यानी अरहर का आयात किया.

तो बात ये है कि अगर देश के किसान हनुमंत के इतना ना भी तो उनके आस पास भी उत्पादन करने लगे तो तस्वीर कुछ और ही होगी. और इसकी पूरी संभावना भी दिख रही है. क्योंकि अब मौजूदा सरकार भी दलहन की खेती को बढ़ावा दे रही है.

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