पहाड़ी इलाके मैदानी इलाके वालों के लिए छुट्टियों और पयर्टन के विषय से ज़्यादा शायद ही कुछ हो लेकिन कम लोग जानते हैं कि खूबसूरत पहाड़ों के नीचे या पहाड़ों पर गांव में रह रहे लोग किन मुश्किलों से गुजरते हैं और फिर उसका हल कैसे निकालते हैं. हिमाचल प्रदेश एक ऐसा ही प्रदेश है. सेब की खेती के लिए मशहूर है लेकिन आज बात इससे आगे की.
कहानी पूरी सुनाएं उससे पहले ये बयान पढ़िए-
“मेरे पास किवी के पास 700 पेड़ हैं, एक पेड़ से 15 हजार के आसपास आमदनी होती है, तो कुल मिलाकर करीब 1 करोड़ रुपए मैं किवी से कमाता हूं.. किवी ऐसा फल है, जिसको डॉक्टर दवा के पर्चे में लिखते हैं। मैंने अनार से भी खूब पैसे कमाए. कुल्लू ही नहीं मेरे गांव के आसपास करीब 1000 किसान ऐसे होंगे जिनका रेवेन्यू 300 करोड़ से ज्यादा है।”
इस बयान से आपको ये तो समझ आ ही गया होगा कि सिर्फ 700 पौधों से एक करोड़ की कमाई की बात हो रही है. ये पौधे या पेड़ कह लें हैं कीवी नाम के फल के.जगह है हिमाचल प्रदेश में कुल्लू-मनाली हाईवे पर भुंतर और इन की खेती करने वाले किसान का नाम है दलजीत सिंह. कीवी की उन्नत बागवानी और मार्केटिंग कर ही किसान दलजीत सिंह ने खुद का आलीशान फार्म हाउस और बगीचा बनाया है.
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कीवी का बढ़ता बाज़ार
कीवी को एक मेडिसनल फ्रूट माना जाता है, जिसका एक फल शहरों में 25-35 रुपए का बिकता है। पिछले कुछ वर्षों में कीवी की मांग तेजी से बढ़ी है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार भारत में देश में करीब 5 हजार हेक्टेयर में कीवी की खेती होती है और 15-16 हजार मीट्रिक टन का उत्पादन होता है। वैसे तो अरुणाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा कीवी की खेती होती है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश, सिक्किम नागालैंड, जम्मू-कश्मीर में भी हजारों किसान कीवी से लाखों रुपए कमा रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश में कुल्लू-मनाली हाईवे पर भुंतर के पास रहने वाले दलजीत सिंह कीवी के साथ ही, आड़ू, जापानी फल परसिमन , ख़ुबानी, अनार समेत कई तरह के फलों की खेती करते हैं. वो बड़े पैमाने पर लहसुन की भी खेती करते हैं। मैथमेटिक्स से पोस्ट ग्रेजुएट दलजीत सिंह कहते हैं, उन्होंने गणित की पढ़ाई का पूरा गुणाभाग खेती में लगाया है।
पहाड़ी इलाकों मे खेती करना आसान नहीं है. यहां की जलवायु अगर कई फलों की खेती के अनूकल है तो उबड़-खबाड़ खेतों और बागों में सिंचाई की व्यवस्था करना उतना ही मुश्किल हो जाती है. हिमाचल में तो सिर्फ 20 फीसदी जमीन ही सिंचित है। ऐसे में तकनीक के बिना खेती करना संभव नहीं। दलजीत कहते हैं कि बिना इरिगेशन सिस्टम के और उसमें भी जैन इरिगेशन की मदद के ये सम्भव नहीं था.
कीवी की खेती क्यों?
कीवी की खेती का दायरा इसलिए भी ज्यादा बढ़ रहा है, क्योंकि इसमें सेब जितनी मेहनत नहीं करनी पड़ती। इसके फल थोड़े खट्टे और मचान में पत्तों के नीचे रहते हैं। तो बंदर और दूसरे पशु-पक्षी भी नुकसान नहीं पहुंचा पाते। दलजीत सिंह तो कहते हैं कि ये फल पूरी तरह प्राकृतिक होता है, क्योंकि इसमें कोई रोग नहीं लगता तो कीटनाशक का इस्तेमाल भी नहीं होता।दलजीत सिंह कहते हैं, उन्होंने अपने साथ-साथ तमाम दूसरे किसानों को इसकी खेती के लिए प्रेरित किया है। लेकिन यहां ये भी ध्यान रखना है कि किवी हो या दूसरी कोई फसल, आपके अपने खेत की मिट्टी और जलवायु के अनुसार ही फसल का चुनाव करना चाहिए।

कैसे करें कीवी की खेती?
कीवी की खेती करना है तो इसके मेल और फीमेल पौधों की संख्या के अनुपात का ध्यान रखना बहुत जरुरी है। दलजीत सिंह बताते हैं, कि इसके प्रत्येक 7 से 8 मादा पेड़ों के बीच कीवी के एक नर पौधे का होना बेहद जरुरी है। कीवी का नर पौधा मोटा और मजबूत होता, इसमें सिर्फ फूल आते हैं, ये फूल परागण के लिए जरुरी हैं। कुल्लू और हिमाचल के दूसरे इलाकों में पिछले कुछ वर्षों में उन्नत पौध, टिशु कल्चर, माइक्रो इरिगेशन, नदियों से पानी लिफ्ट करने की तकनीक आदि ने बड़ा बदलाव किया है। इनका इस्तेमाल कर के ही कीवी की खेती सफल हो सकती है.
दलजीत कहते हैं- पहले हिमाचल में पढ़े लिखे लोग खेती करना पसंद नहीं करते थे लेकिन अब बड़ी-बड़ी डिग्री और लाखों की नौकरी छोड़कर युवा खेती-बागवानी में आगे आ रहे. खेती को अपना करियर बनाने वाले लोगों की ऐसी कई कहानियां हैं,वह हम आपके सामने ऐसे ही लाते रहेंगे. पढ़ते/देखते रहिए न्यूज़पोटली.
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