खेती किसानी की दुनिया तेजी से बदल रही है। नई-नई मशीनों और कृषि तकनीक से किसानों का काम काफी आसान कर दिया है। माइक्रो इरिगेशन ऐसी ही तकनीक है। ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई और खाद एक साथ पौधों को दी जा सकती है, बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली से जहां 70 फीसदी से ज्यादा पानी बचता है वहीं उत्पादन भी बढ़ता है। इस खबर में जानिए सिंचाई (irrigation) और फर्टिगेशन (fertigation) के साथ, वो भी आटोमैटिक तरीके से देने वाले सिस्टम के बारे में जिसे ऑटोमेशन कहा जाता है।
लखीमपुर (यूपी)। 90 एकड़ के खेत और बाग में अगर सिंचाई और खाद देनी हो तो कितने दिन लगेंगे और कितने मजदूर लगेंगे? मोटे तौर पर देखा जाए 10-15 मजदूर और एक हफ्ता तक लग सकते हैं। लेकिन ये ड्रिप ऑटोमेशन सिस्टम के जरिए ये काम कंप्यूटर या लैपटाप का एक बटन दबाने पर कुछ ही घंटों में हो जाता है। इसी सिस्टम के जरिए इरिगेशन और फर्टिगेशन दोनों हो जाते हैं।
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में दुधवा नेशनल पार्क इलाके का बिक्रम बन फार्म है, इस फार्म के 90 एकड़ अमरुद, कई तरह की लीची और केले की खेती होती है, वो भी बिल्कुल हाईटेक तरीके से। गन्ने की खेती वाले इस क्षेत्र में फलों की खेती करने का आइडिया कमलजीत सिहं का है वो नई फसलों और नई तकनीक के साथ खेती करने के लिए जाने जाते हैं। कमलजीत सिंह का ये फार्म उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 225 किलोमीटर दूर है।
फार्म के मैनेजर प्रताप सिंह बताते हैं, “शुरु में यहां पर सिंचाई और खाद देने में महीने में 70-80 लेबर लगते थे, लेकिन अब ये आटोमोशन प्लांट करता है। लेबर की समस्या बढ़ती जा रही है, इसके साथ ही पूरे फार्म को एक साथ समान मात्रा में पानी और खाद दोनों मिल जाते हैं।”
बिक्रम बन फार्म के मैनेजर प्रताप सिंह के मुताबिक कमलजीत सिंह खेती में नए प्रयोग और नए तकनीक अपनाते रहते हैं। कभी नई किस्म लगाते हैं कभी नई तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इस फार्म में हर एक पौधा रेज बेड पर है, जिससे पौधा पानी में डूबे न और न ही जड़ों का नुकसान होता है।
टेक्नालॉजी को पसंद करने वाले सरदार कमलजीत सिंह ने इस फार्म को अपने खून पसीने की मेहनत से तैयार किया है। कमलजीत सिंह ने फार्म पर खेती को इतना हाईटेक बिना दिया है कि मजदूरों को भी उतना पसीना नहीं बहाना पड़ता, दरअसल 90 एकड़ का ये फार्म एक लैपटॉल से कंट्रोल होता है। न सिंचाई के लिए मजदूर फावड़ा उठाते हैं और न खाद डालने के लिए उर्वरक की बोरियां ढोते हैं। पौधों को सिंचाई, खाद और न्यूट्रेशन देने का काम ये आटोमेशन प्लांट करता है।
तकनीकी का उपयोग सिर्फ इरीगेशन और फर्टीगेशन के लिए ही नहीं होता है, बाग लगाने में भी इस बात का ध्यान रखा गया है कि साल के हर सीजन में किसी न किसी फसल की हर्वेस्टिंग चलती रहे। बरसात सीजन के अमरुद तोड़े जा रहे हैं तो सर्दियों के लिए पौधों की प्रूनिंग और फलों पर क्रॉप कवर लगाए जा रहे। मॉनसून और सर्दियों में अमरुद तो गर्मियों में लीची और केला होता है। एक बड़े इलाके में अमरुद के साथ लीची की इंटरक्रॉपिंग की गई है। जब अमरुद के पेड़ बूढ़े हो चुके होंगे, लीची के जवान पेड़ मुनाफे के फल देंगे। बाग में कोई जोखिम आया तो दूसरी फसल नुकसान की भरपाई करेगी।
बिक्रम बन फार्म, जागीर मनोर रिजार्ट का हिस्सा भी है। देश-विदेश के पर्टयकों के लिए दुधवा के जंगल के साथ ही तराई का ये बाग भी किसी टूरिस्ट प्लेस से कम नहीं है। फार्म के मैनेजर प्रताप सिंह कहते हैं, खेती भी अब एडवांस तरीके से होने लगी है। हमारे बॉस को खेती को शौक है, उन्हें मिट्टी, जमीन, प्रकृति से लगाव है, वो दिल्ली में रहते हैं रोज-रोज खेत नहीं आ सकते। लेकिन तकनीक है कि वो वहां बैठकर मोबाइल पर पूरा फार्म देखते हैं।
फार्म की देखभाल करने वाले रविंदर सिहं कहते हैं, हम लोगों ने खुले में सिंचाई बिल्कुल बंद कर रखी है। हमारे तराई इलाके में फिलहाल पानी की कमी नहीं हैं। लेकिन देश के बहुत सारे इलाके में लोग बूंद-बूंद पानी को तरसते हैं, हम पानी तो किसी के पीने के काम आएगा। खुले में सिंचाई और खाद डालना, भूमिगत पानी, उर्वरक सबकी बर्बादी है।
रविंदर सिंह आगे कहते हैं, मुश्किलें हर फील्ड में है। खेती का मतलब ही चलेंज है, लेकिन एडवांस तकनीक और मशीनीकरण ने किसानों की काफी मुश्किलों हल भी किया है। फिर जो मजा खेती मे है वो कहीं नहीं, क्योंकि आप यहां अपने मन के राजा हैं।
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तकनीक से तरक्की सीरीज – न्यूज पोटली और जैन इरिगेशन की जागरुकता मुहिम है, सीरीज में उन किसानों की कहानियों को शामिल किया जा रहा है, जो खेती में नए प्रयोग कर, नई तकनीक का इस्तेमाल कर मुनाफा कमा रहे हैं। ड्रिप इरिगेशन, आटोमेशन, फर्टिगेशन सिस्टम आदि की विस्तृत जानकारी के लिए संपर्क करें-
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तकनीक से तरक्की सीरीज- पार्ट- खेती से रोज की कमाई का फार्मूला