बिहार के समस्तीपुर के किसान सुधांशु कुमार के खेत में अलग-अलग फसल के करीब डेढ़ लाख पौधे लगे हैं, और वो उससे करीब 3 करोड़ रुपये सालाना की कमाई करते हैं। उनका खेत पूरा टेक्नोलैब है। खेती से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा उपकरण हो, जो उनके खेत में आपको ना मिले। पिछले कुछ सालों में उनकी खेती को समझने 12000 से ज्यादा लोग उनके यहां विजिट कर चुके हैं।
सुधांशुर कुमार को खेती विरासत में मिली। दादा के बाद पिता ने खेती संभाली और अब इस काम को सुधांशु कुमार बखूबी निभा रहे हैं। जिस राज्य में खेती को लोग मजबूरी का पेशा मानते हैं, उसे इस प्रगतिशील किसान ने करोड़ों की industry बना दिया। बिहार में बागवानी के बादशाह कहे जाने वाले समस्तीपुर के इस किसान के बाग में करीब डेढ़ लाख पौधे लगे हैं। इनमें से 1 लाख पौधे सिर्फ केले के हैं। इसके अलावा स्ट्रॉबेरी, आम, लीची, ड्रैगन फ्रूट, मौसमी, नीबू के पौधे फलों से लदे हैं।

“इसे आप किस्मत कहिए, प्लानिंग कहिए या शिक्षा। जिस काम में हाथ डाला प्रॉफिट ही हुआ। एक हैबिट है, साफ सुथरा तरीके से काम करने की। सारी जानकारी लेकर सिस्टम से चलने की। हम हमेशा किसान को कहते हैं कि, जो पारंपरिक खेती है, उससे आपको आमदनी नहीं हो सकती। आपको लीक से हट कर खेती करनी होगी। अपने देश में खेती को अभी भी हीन भावना से देखा जाता है, लोग इसे अभी भी मजबूरी का व्यवसाय मानते हैं, जबकि ऐसा नहीं है।“
ये वो किसान है जो जामुन और इमली से लेकर कटहल तक की commercial farming की तैयारी कर चुके हैं। बागवानी से आज उनका टर्नओवर करीब 3-4 करोड़ रुपये का है। जिसे आने वाले कुछ सालों में बढ़ाकर 10 करोड़ रुपये करने का उनका टारगेट है।

“हम किसी के कहने से किसी भी फसल पर शिफ्ट नहीं होते। हम पहले उसे लगाते हैं। उसको खा लें, उसको बेच लें उसके बाद ही ये तय करते हैं कि, इसका एक्सपैंशन करना है कि नहीं। इसमें करीब 3-4 साल लग जाते हैं। हमारा सालाना टर्नओवर 3-4 करोड़ हो रहा है, हमारा टारगेट 10 करोड़ तक इसे पहुंचाने का है।“
सुधांशु कुमार की खेती का तरीका बिल्कुल जुदा है। वो खुद कहते हैं, खेती को वो सिर्फ आजीविका का साधन भर नहीं रहने देना चाहते, बल्कि समृद्धि का ऐसा रास्ता बनाना चाहते हैं, जिस पर चल कर हर किसान कामयाबी के शिखर पर पहुंच सके। उपजाने के साथ ही वो marketing पर पूरा फोकस करते हैं। वो कहते हैं जब तक वो किसी फल का टेस्ट चखने के बाद उसके मार्केट को ना टटोल लें, तब तक वो उस फल की कॉमर्शियल फार्मिंग नहीं करते हैं।

“किसान के लिए खेत में कुछ भी उपजाना बाएं हाथ का खेल है। मेन मार्केटिंग है। हमने शुरू में इसे लेकर बहुत स्ट्रगल किया, शायद ही कोई मंडी छोड़ी होगी। हमारा अपना मानना है कि, पहले दो साल आप मोल-भाव मत करिए। जिस रेट पर मांग रहा है, उसे दे दीजिए। उसके बाद फिर करिए क्योंकि, वो तब तक आपके प्रोडक्ट का मुरीद हो जाएगा।“
आप ने शायद ही सुना होगा कभी कि, किसी ने जामुन की बाग लगा रखी है, लेकिन सुधांशु कुमार की दूरदर्शिता तो देखिए उन्होंने जामुन की बागवानी में हाथ आजमाया है। इसके पीछे उनका उनका अपना calculation है।

“हमने जामुन के पेड़ बड़ा नहीं किया है, उसकी ऊंचाई को 10 फीट पर रोका हुआ है। कोशिश होनी चाहिए जामुन की पेड़ की ऊंचाई इतनी हो कि ज़मीन पर खड़े होकर ही आप फल तोड़ लें। हमने जामुन को हाइडेंसिटी में लगाया है। एक एकड़ में लगभग 290 पेड़ लगा है, 10 × 15 के हिसाब से। जामुन का मार्केट बहुत बढ़िया है।“
दूसरे किसानों से 10 कदम आगे की सोच रखने वाले बिहार के इस किसान का बाग सिर्फ खेत नहीं, बल्कि पूरा techno lab है। जहां automatic drip, smart fertigation, sensor based monitoring, cctv, broadband, weather station लगे हैं। सिर्फ एक बटन से खेत को सारा खाद पानी मिल जाता है। वो कहते हैं, थोड़ा साइंस, थोड़ा कैलेंडर, और थोड़ा मेहनत करिए आपकी खेती बदलने लगेगी।

“हमारे खेत में सीसीटीवी लगा है, ब्रॉड बैंड कनेक्टिविटी मिलेगी। थोड़ा साइंस, थोड़ा कैलेंडर, और थोड़ा मेहनत करिए आपकी खेती बदलने लगेगी।“
सुधांशु कुमार खेती को सिर्फ ज़मीन जोतने का काम नहीं मानते, वो इसे विज्ञान की तरह पढ़ते और समझते हैं। उनका मानना है कि, किसी भी फसल को बोने से पहले उसकी sensitivity को जानना जरूरी है, कि वो फसल मिट्टी, तापमान और हवा के किस मिज़ाज में पनपेगी। उनके फार्म में जगह-जगह weather station लगे हैं। वो satellite image तक का इस्तेमाल वो खेत की नपाई के लिए करते हैं। सुधांशु कमार ने सिंचाई के लिए खेत के बीचो-बीच automated irrigation system लगा रखा है। जो बिहार ही नहीं north india का पहला सिस्टम है। इसका फायदा ये है कि, सिर्फ एक बटन पर खेत में लगे हर पौधे को बराबर से खाद-पानी मिल जाता है। पिछले कुछ सालों में उनकी खेती को समझने 12000 से ज्यादा लोग उनके यहां विजिट कर चुके हैं।

“हमारे खेत में वेदर स्टेशन लगा हुआ है। दो साइट हमारी इरीगेशन पूरी तरह से ऑटोमेशन पर है। लीची में मैनुएल है। हमारे सारे खेत में जैन का ही माइक्रो इरीगेशन है। सब कुछ उन्हीं का है एग्रोनॉमिस्ट, प्लांट, सब कुछ जब इतना गुड क्वालिटी प्रोडक्ट मिल जाए तो फिर कहीं और क्यों ही जाना है। अनाज में जैसे आप थोड़ा साइंस और टेक्नोलॉजी की तरफ जाएंगे तो आमदनी डेढ़ गुना हो जाएगी, लेकिन जैसे आप बागवानी की तरफ आएं तो और बेहतर आमदनी होगी। सारी फसलों में एक माइक्रे इरीगेशन का इस्तेमाल होता ही है“
ये पेड़ 90 साल पुराना है। और इसे अपनी तकनीक से उन्होंने नया बना दिया है। दरअसल पेड़ इतना बड़ा हो गया कि, इस पर स्प्रे वगैरह करने में दिक्कत आ रही थी। कीड़ा बहुत ज्यादा लग रहा था। उन्होंने इस पेड़ के 6 फीट पर उसकी सारी शाखाओं को काट दिया, लेकिन उससे पहले उन्होंने पेड़ की सेहत का टेस्ट किया। इस पेड़ को काटे हुए 2 साल हो गया है, उनका मानना है कि, 3 साल होते-होते ये पेड़ बिल्कुल नया हो जाएगा।

पश्चिम बंगाल में Darjeeling के sent paul’s से schooling और दिल्ली के हंसराज कॉलेज से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाले सुधाशुं कुमार के खेती में आने की कहानी भी उनके खेती करने के तरीके की ही तरह बहुत दिलचस्प है। पिता चाहते थे बेटा IAS बने, लेकिन बेटे को तो किसान बनना था, जिसके लिए उन्होंने अग्नि परीक्षा पास की। उन्होंने आम के उस बाग से 1.35 लाख का प्रॉफिट पिता जी को निकाल कर दिया, जिससे कभी 15 हजार रुपये की आमदनी नहीं होती थी।

“मेरा दिल था गांव में। पिताजी को बिल्कुल पसंद नहीं था, हम गांव वापस आएं। उनका मन था कि, हम IAS अफसर बनें। हमारा मन था कि, गांव में ही जाकर काम करें।बचपन से बहुत मन लगता था गांव में। तो ये बात दिमाग में प्ले करता था कि, हमें अपने गांव में ही रहना है।“
शुरू के दिनों में सुधांशु भी पारंपरिक खेती करते थे, लेकिन जल्द उन्हें समझ आ गया कि धान-गेहूं मक्का में पैदावार और कमाई की एक सीमा है.. कुछ खास करना है तो बागवानी में जाना ही होगा। आज बिहार का ये प्रगतिशील किसान एक खेती की दुनिया का बादशाह बन गया है।
सुधांशु कुमार की वीडियो स्टोरी यहां देखें: