किसानों और उर्वरक सेक्टर के लिए बड़ी खबर है। इफको की नैनो तरल डीएपी को केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है। इफको के मुताबिक एक बोरी डीएपी का काम आधा लीटर की बोतल करेगी।
नई दिल्ली। दुनिया की पहली नैनो तरल यूरिया के बाद नैनो डीएपी Nano DAP जल्द किसानों को उपलब्ध होगी। नैनो डीएपी के उत्पादन का रास्ता साफ हो गया है। केंद्र सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (इफको) द्वारा नैनो तकनीक पर विकसित नैनो तरल डीएपी को फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर में शामिल कर लिया है। मंत्रालय ने स संबंध में 2 मार्च, 2023 को गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। एफसीओ की मंजूरी मिलने के बाद इफको नैनो डीएपी का व्यवसायिक उत्पादन कर शुरु कर सकेगा।
नैनो डीएपी को मंजूरी मिलने की सूचना देते हुए इफको के प्रबंध निदेशक और सीइओ डॉ. यूएस. अवस्थी ने ट्वीट किया, “बहुत ही गर्व की बात है कि इफको नैनो डीएपी को भारत सरकार से मान्यता मिल गई है। शानदार परिणामों के कारण इसे उर्वरक नियंत्रण आदेश FCO के अंतर्गत अधिसूचित किया गया है। भारतीय कृषि एवं अर्थव्यवस्था के लिए तुरुप का इक्का साबित होनी वाली नैनो डीएपी का उत्पादन इफको करेगी।”


इफको के मार्केटिंग डायरेक्टर योगेंद्र कुमार के मुताबिक, “कृषि के क्षेत्र में भी विश्व के कई देशों में नैनो तकनीकी का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन पहली बार अपने देश या विश्व में नैनो यूरिया तरल को अपने वैज्ञानिकों से स्वदेशी तकनीक से बनाया है। नैनो यूरिया के आने से देश रसायन मुक्त खेती का मार्ग खुला है। उर्वरक आधारित पोषण का तरीका नैनो आधारित बनने वाला है।”
नैनो यूरिया और नैनो डीएपी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत और आत्मनिर्भर कृषि के तहत देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साल 2019 में लाल किले की प्राचीर से देश में रासायनिक उर्वरकों की मात्रा को कम करने की अपील की थी।

उत्तर प्रदेश में इफको के State Marketing Manager अभिमन्यु राय के के मुताबिक साल 2021 में भारत सरकार ने नैनो यूरिया को फर्टीलाइजर कंट्रोल ऑर्डर में शामिल किया था, जिसके बाद इसका कमर्शियल प्रोडक्शन शुरु हुआ। आज तक नैनो को 4.90 लाख बोटल बिक चुकी हैं।
देश की सबसे बड़ी उर्वरक कंपनी इफको का गठन 3 नवंबर 1967 को हुआ था। उस समय केवल 57 सहकारी समितियां सदस्य थीं। अभिमन्यु राय बताते हैं, “आज हमारी 36000 से ज्यादा समितियां सदस्य हैं, जिनके माध्यम से 5.5 करोड़ किसानों इफको से सीधे जुड़े हैं। इफको इस समय संस्सार की सबसे बड़ी उर्वरक बनाने वाली संस्था है। देश के कुल उर्वरक उत्पादन और विपणन में इफको की हिस्सेदारी करीब 22 फीसदी है।”

भारत में ज्यादातर खेती यूरिया, डीएपी आधारित है। यूरिया के बाद सबसे ज्यादा मांग और खपत डाई आमोनियम फास्फेट की है। किसान डीएपी का उपयोग फसल बोने के दौरान मिट्टी में करते हैं। कृषि क्षेत्र में दी जाने वाली सरकारी सब्सिडी का बड़ी हिस्सा उर्वरक सब्सिडी के रुप में जाता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में नाइट्रोजन और फास्फेटिक उर्वकों और कच्चे माल में काफी तेजी आ गई थी। जिसके चलते सरकार को यूरिया और डीएपी पर भारी सब्सिडी देनी पड़ रही थी। मौजूदा वित्त सत्र में सरकार को 2.25 लाख करोड़ रुपए की उर्वरक सब्सिडी देनी है।
पिछले दिनों इलाहाबाद में नैनो यूरिया के प्लांट का उद्घाटन करते हुए केंद्रीय उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा था, “नैनो फर्टीलाइजर वैकल्पिक उर्वरक है। हम सालों तक पैदावार बढ़ाने के लिए डीएपी-यूरिया डालते रहे हैं आज ये नौबत आ गई है कि उत्पादन में स्थिरता आ गई है। जो यूरिया (दानेदार) हम खेत में डालते हैं वो 35 फीसदी नाइट्रोज फसल को मिलता है बाकि पानी में मिलकर चला जाता है मिट्टी को बिगाड़ता है। नैनो यूरिया हमारी मिट्टीको बचाने के लिए है। हमें वैकल्पिक फर्टीलाइजर पर जाना बहुत आवश्यक है।”