ICRISAT ने विकसित की अरहर की नई किस्म, जो भीषण गर्मी में भी देगी अच्छा उत्पादन

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ICRISAT यानी इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स ने अरहर की एक नई किस्म ‘आईसीपीवी 25444’ विकसित की है। अरहर की यह किस्म भीषण गर्मी को झेल सकती है। इतना ही नहीं यह फसल मात्र 125 दिनों में तैयार हो जाती है, जो भारत को दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लाने में कारगर साबित होगी। स्पीड ब्रीडिंग तकनीक से विकसित अरहर की यह नई किस्म दुनिया की पहली गर्मी-रोधी अरहर है, जो किसानों को जलवायु संकट से लड़ने में मदद करेगी।

आपको बता दें कि ‘आईसीपीवी 25444’, भारत की पहली गर्मी-रोधी अरहर की किस्म है। अरहर की यह नई किस्म भीषण गर्मी यानी 45 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को झेल सकती है। ICRISAT के मुताबिक यह किस्म अब तक कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना में सफलतापूर्वक किए गए परीक्षण में दो टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन दे चुकी है।
अब तक अरहर की खेती केवल खरीफ के मौसम तक ही सीमित थी, क्योंकि यह तापमान और दिन की लंबाई (फोटोपीरियड) के प्रति संवेदनशील होती है। लेकिन अरहर की इस नई किस्म ने इस सीमा को तोड़ दिया है। यह फसल गर्मी में भी अच्छी उपज दे सकती है। ऐसे में अरहर को साल भर बोया जा सकेगा।

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घरेलू उत्पादन बढ़ाने के दो तरीके
ICRISAT के मुताबिक यह क्रांति स्पीड-ब्रीडिंग तकनीक से मुमकिन हुई। इक्रीसेट ने 2024 में दुनिया की पहली अरहर स्पीड-ब्रीडिंग प्रणाली विकसित की थी, जिसकी मदद से साल में चार पीढ़ियां उगाई जा सकती हैं। इससे नई किस्म विकसित करने में लगने वाला समय 15 साल से घटकर महज पांच साल रह गया है।
ICRISAT के मुताबिक नई किस्म की मदद से सरकार घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए दो रणनीतियों पर काम कर सकती है: पहला खरिफ के 50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों का उपयोग करना। दूसरा गर्मी व रबी के सीजन के खाली पड़े खेतों में जहां सिंचाई की व्यवस्था है वहां इस नई किस्म की बुआई करना। यह नई किस्म के गर्मी सहने की क्षमता और जल्दी पकने की वजह से संभव हुआ है।

डेढ़ से दो टन प्रति हेक्टेयर तक उपज
वैज्ञानिकों के अनुसार गर्मी सहने वाली अरहर की नई किस्मों में भारत में खेती के विस्तार की अपार संभावनाएं हैं। खासकर पानी की कमी वाले इलाकों में यह फसल अच्छी पैदावार और ज्यादा आय दे सकती है। यह वह क्षेत्र हैं जहां दूसरी फसलों की पैदावार आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं होगी। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह किस्म डेढ़ से दो टन प्रति हेक्टेयर तक उपज देकर किसानों की आमदनी में 20,000 रुपए प्रति हेक्टेयर तक बढ़ोतरी कर सकती है। इतना ही नहीं रिमोट सेंसिंग और जीआईएस जैसी तकनीकों की मदद से सही जगह इसका उपयोग और बेहतर कृषि तकनीक और बीज प्रणाली के साथ इसे 10 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है।

आपको बता दें कि भारत में सालाना 35 लाख टन अरहर (तुअर) का उत्पादन होता है, जो घरेलू मांग को पूरा करने के लिए 15 लाख टन कम है। इस वजह से हर साल करीब 80 करोड़ डॉलर की अरहर की आयात करनी पड़ती है।

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